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6/21/09
कलुआ का बाऊ
रात के डेढ़ बजने को हैं और फिर मन में धुक-धुकी लगी है कि साला कलुआ फिर बैठा होगा अपने गैंग के साथ मेरी ताक में. पहले कलुआ के बाऊ (बाबू) से त्रस्त था अब उसके बेटे से त्रस्त हूं. बाप भी काला बेटा भी काला, तन से भी और मन से भी. ऐसे डबल कैरेक्टर वाला जीव आज तक नहीं देखा. दिन में इतना शरीफ और निरीह जैसे रात में कुछ हुआ ही नहीं. कई बार बंद और डबलरोटी खिलाई लेकिन कोई असर नहीं. डाटो तो भी भीगी बिल्ली बना रहता है और उसके साथी भी बड़े दोस्ताना अंदाज में मिलते हैं और रात को दुश्मन बन जाते हैं. पुलिस वाले भी मदद नहीं करते, कहते हैं मेरे महकमे का मामला नहीं है. क्षेत्र के दबंग कारपोरेटर से भी मदद की गुहार लगाई, उसने भी हाथ खड़े कर दिए. कहा शाम छह बजे के बाद संबंधित विभाग कार्रवाई नहीं कर सकता, संसाधनों की कमी है. मेरे घर के रास्ते में कलुआ का इलाका पड़ता था. कमबख्त मेरी स्कूटर की आवाज पहचानता था. हेड लाइट देखते ही पूरा गैंग एलर्ट हो जाता था. मैं स्कूटर आराम से चलाने का आदी हूं सो जब बहुत करीब आ जाता तभी अचानक पूरा गैंग झपट पड़ता. दहशत में एक-दो बार गिरते-गिरते बचा. उसका हमला होते ही अनायास एक्सीलेटर बढ़ा देता. कलुआ के साथी पीछे छूट जाते लेकिन कलुआ गली के छोर तक खदेड़ता था. दूसरी रणनीति आजमाई कि जब कलुआ का गैंग झपटे तो खड़े हो जाओ लेकिन इसमें जोखिम ज्यादा नजर आया. लगा कि न जाने कलुआ के मन में क्या हो. सो गति में ही ज्यादा सुरक्षा महसूस हुई. कलुआ का इलाका करीब आते ही स्कूटर की गति बढ़ा देता था कि देखें कितनी तेज भागता है स्प्रिंटर की औलाद. रणनीति कारगर लग रही थी. कुछ दूर दौडऩे में उसकी हफनी छूट जाती थी और मैं विजयी भाव से फिनिश लाइन पार कर जाता था. लेकिन ये ज्यादा दिन नहीं चला. कलुआ ने भी इसकी काट निकाल ली. स्कूटर की आवाज सुनते ही कलुआ पहले से ही स्कूटर वाली दिशा में आगे-आगे दौडऩे लगता, उसी तरह जैसे रिले रेस में पीछे से आ रहे साथी का बैटन लेने से पहले ही टीम मेंबर स्टार्ट ले लेते हैं. और स्कूटर करीब आते-आते कलुआ अच्छी स्पीड में होता. मुझे स्वभाव के विपरीत स्कूटर और तेज गति से भगानी पड़ती. एक-एक रात मुश्किल से कट रही थी. लेकिन एक रात कलुआ ने नहीं दौड़ाया, उसके साथी भी नहीं दिखे. सुखद एहसास, आतंक का खत्मा. तो क्या कलुआ युग का अंत हो गया? सुबह आफिस जाते समय नजर इधर उधर कलुआ को खोज रही थीं तभी सड़क किनारे कलुआ लेटा दिखा. पास गया, कोई हरकत नहीं. कलुआ की सांसे नहीं चल रहीं थीं. किसी वाहन ने उसे टक्कर मार दी थी. उसका मुंह खुला हुआ था. लग रहा था वह हंस रहा है और मुझसे कह रहा, क्यों बच्चा खा गए ना गच्चा. कुछ महीने सब शंाति से चला लेकिन फिर एक नया कलुआ पैदा हो गया और आजकल फिर मुझे दौड़ा रहा है.
अब आप समझदार हैं जान ही गए होंगे कलुआ कौन था और कौन है. फोटो से भी नहीं समझ आया तो इंतजार करिए.. कलुआ के बेटे की कहानी.. का
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जान है तो जहान है
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बढ़िया, अब बेटे की कहानी की बारी..
ReplyDeleteकलुआ तो खतरनाक है भई..अब बेटे की बताओ!!
ReplyDelete@"ऐसे डबल कैरेक्टर वाला जीव आज तक नहीं देखा. "
ReplyDeleteआप सकल मनुष्य जाति का अपमान कर रहे हैं। डबल कैरेक्टरी में हमें कुत्ते कैसे पछाड़ सकते हैं? मानुष जाति से क्षमा माँगिए अभी।
कलुआ को श्रद्धांजलि.
वैसे उसके गले में पट्टा किसने डाला था? स्पष्टीकरण दें।
बाइक के जमाने में स्कूटर पर क्यों चल रहे हैं? अजायबघर के जीव पर तो कुत्ते दौड़ेंगे ही।
@ गिरिजेश.... वैसे वफादारी में कुत्ता मनुष्यों से कहीं आगे है इस लिए अपमान तो उसकी बिरादरी का हुआ . और जिसे आप पट्टïा कह रहे हैं वो पट्टïा नहीं मोहल्ला कुत्ता समिति का मेडल है जनाब. और जिसे आप स्कूटर कह रहे हैं वो तो मेरी प्रिया है. वैसे आप जैसे कई बाइक सवारों को कलुआ रगेद कर धूल चटा चुका है. इस लिए बाइक पर मत इतराइए.
ReplyDeletebahut khub pad kar mazaa aa gaya
ReplyDeleteहा हा ! कुछ बैग में ढेला-वेला लेकर चला कीजिये :)
ReplyDeleteढेला लेकर चलने का आइडिया बढिया है। इँटकोहा भी साथ में रख लीजिएगा ताकि मारक क्षमता और अच्छी हो जाय।
ReplyDeleteक्या बात करते हैं. ढेला और गुम्मा डिग्गी में रखेंगे क्या? जब तक डिग्गी खोलेंगे तब तक कलुआ अपना काम कर जाएगा और अगर हाथ में ढेला लिए रहेंगे तो गाड़ी कौन चलाएगा. व्यावहारिक सॉल्यूशन सुझाइए
ReplyDeleteभाई इस रगेदा रगेदी को स्पोर्तिन्गली क्यूं नहीं लेते . कभी कलुआ ने किसी को काटा भी ? ये तो इन्सान हैं जो बिना भूंके दौडाए काट जाते हैं . ये कलुये तो बस आपके साहस , बुद्धि और स्कूटर चालन की महारत परख करते हैं . निश्चिंत रहिये .
ReplyDelete@ RAJ SING: Aap to serious ho gaye. Yahan khel hi chal raha hai , gali-mohalle ka T-20 and isme abhi tak koi retired hurt nahin hua hai.
ReplyDeleteवाह राजा इलाहाबादी अमरूद। का बात हौ... पूरा बेढबै हो रहल हउआ मालिक। अब कलुआ क किस्सा खतम हो गयल त इलाज का बताना नाहीं त ठेठ बनारसी इलाज त हमरे पल्ले कई ठे हउवन। नवेंदु से भी एक बार त पूछने क फर्ज रहल। देखा.. ओन का बतावैलन.. आखिर कलुआ से पहली मुलाकात क साथी ठहरलन...
ReplyDeleteओह!
ReplyDeleteहंसाते हुए गंभीर कर दिया आखिर में आपने
सुंदर लेखन शैली
बी एस पाबला