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6/28/09
लखनऊ का 'बंद' रायबरेली का 'पापा'
चाय के साथ पावरोटी खाने में जो मजा है वो पिज्जा, बर्गर और हॉटडाग में कहां. तभी तो ममता दीदी ने रेल मंत्री बनने के बाद आफिस जाकर सबसे पहले डबलरोटी और चाय का नाश्ता किया. पावरोटी के कई चचेरे भाई हैं रस्क, बंद और जीरा, ये ब्रेड ना मिलने पर वैकल्पिक संतुष्टि के लिए उपलब्ध रहते हैं. बंद के साथ खास बात है कि मक्खन ना हो तो भी चलेगा. इसी तरह रस्क और जीरा भी सेल्फसफिशियेंट हैं. जीरा समझ गए ना सूखी लकड़ी या चैला या नमकीन खाजा टाइप की चीज जिसे चाय में डुबो कर खाया जाता है. यह चाय की आधी कीमत पर मिलता है लेकिन अगर आपने इसे कप में दो बार डुबो दिया तो पूरी चाय सोख लेगा. इसका नाम जीरा शायद इस लिए पड़ा कि इसके मुंह में चाय जीरा समान ही होती है. और इसी तरह बंद भी दो डुबकी में पूरी चाय सुड़क जाता है. अक्सर आधा बंद हाथ में ही रहता है और चाय का पूरा कप खाली. इस लिए बंद खाएं तो एक लोटा चाय लेकर बैठें. पता चला है कि रायबरेली में जीरा का एक फुफेरा भाई 'पापा' भी आ गया है. इस के बारे में लोग अभी कम ही जानते हैं. पता चला है कि बंद जब पुराना होने लगता है तो उसे आंच में सुखा कर 'पापा' बनाया जाता है. चाय सुड़कने में यह बंद और जीरा से भी बड़ा उस्ताद है.
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उस्तादों का उस्ताद
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बहुत ही उपयोगी जानकारी। बन्द और पाव पर भी इतना रुचिकर पोस्ट लिखा जा सकता है! जवाब नहीं आप का। टेस्टी लेख है।
ReplyDeleteभुगतते तो सभी हैं, लेकिन निरीक्षण और फिर संप्रेषण बिरले ही कर पाते हैं। मैंने खुद कितनी बार ही जीरा और बन्द का मेरी चाय के साथ अत्याचार झेला है। लेकिन इस पर लेख भी हो सकता है! कभी नहीं सूझा।
जीरा और पापा में 'फुफेरेपन' को स्पष्ट करें। समझ में न आए (कई बार ऐसा होता है कि अभिव्यक्ति तो एकदम सही होती है लेकिन उसके मर्म समझ में नहीं आते) तो के.पी.सक्सेना के साहित्य देखें। जब मैं लखनऊ आया था तब उन्हें इन्दिरा नगर में देखा था।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया,
ReplyDeleteअसली नाम बन है हर पैकेट पर छपा रहता है पर फिर भी न जाने क्यों इसे बंद कह कर पुकारते हैं?
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चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
बहुत रोचक लिखा है। हमने पापा नहीं देखा, खाया।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
याद आ गया! रतलाम में आता था - नफीस का टोस्ट!
ReplyDelete@ Girijesh : Fufera bhai yani jo aap ke pahle hi sab sudak jaye
ReplyDelete'पापा' तो कभी नहीं देखा !
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