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12/6/11

दोस्त-वोस्त...यार-व्यार...!


साहित्य समाज का आइना होता है लेकिन लगता है आजकल समाज का आइना सोशल नेटवर्किंग साइट्स भी हैं. सो आज उन लोगों की बात जो किसी ना किसी की फ्रेंड लिस्ट में हैं. हर फ्रेंड जरूरी होता है चाहे वो फेक, फ्रस्ट्रेटेड, फ्लर्ट, फाल्तू, फ्रैंक, फुरसत में या फेंकने वाले ही क्यों ना हों. कुछ दिन पहले किसी फेसबुकिया ने कमेंट किया था, गुरू... तुम्हारी फ्रेंड लिस्ट में गल्र्स की लम्बी लाइन है. उसे बताना पड़ा कि दोस्त ये गल्र्स की नहीं फ्रेंड्स की लिस्ट है और इसमें 13 साल के बच्चों से लेकर 73 साल की बुजुर्ग भी हैं. ये लिस्ट इससे कई गुना लम्बी होती, लेकिन वीड्स की छंटनी और सूखे ठूंठनुमा लोगों को हटाते रहने से ये मैनेजेबल है. कौन फ्रेंड हैं और कौन फ्रॉड, ये तो कुछ दिन साथ-साथ चलने पर पता लगता है. दोस्त के कमेंट के बाद सोचा चलो इन चेहरों के पीछे के चेहरे को पहचानने की कोशिश करते हैं. उनको रुक्रैच करने पर एक अलग ही दुनिया सामने आई. फीमेल मेंबर्स से पूछा कि अगर आप मेरी फ्रेंड लिस्ट में हो तो मेरी क्या हुई? सब ने कहा.. फ्रेंड. फिर पूछा, अगर फ्रेंड फीमेल हैं तो गर्लफ्रेंड हुई ना...? कुछ ने टप कहा ...बिल्कुल नो प्रॉब्लम- ये था फ्रैंक चेहरा. लेकिन कुछ लड़कियां तुरन्त हॉय, हाऊ आर यू, आई एम फाइन वाला फॉरमैट बदल कर बाय... कैच यू लेटर वाले मोड में आ गईं और आगे कुछ पूछ पाता, इसके पहले ही ऑफ लाइन. कुछ दिन तक वो ‘देखते ही निकल लो’ वाले मोड में रहीं और फिर कंट्रोल डिलीट एंड- ये था फाल्तू चेहरा.
लिस्ट में एक पेयर भी था. लडक़ा-लडक़ी बचपन से एक दूसरे को जानते थे और पढ़ाई के बाद शादी करने का पक्का इरादा था. अचानक लडक़ी का ब्वॉयफ्रेंड मेरी लिस्ट से गायब हो गया. लडक़ी से पूछा सब ठीक-ठाक तो? एक सपाट सा जवाब था, फॉरगेट दैट. अरे... क्या हो गया. कुछ नहीं... मुझे क्या करना है, कौन सा कैरियर चुनना है, ये मैं तय करूंगी. कोई जरूरत से ज्यादा पजेसिव हो ये भी बर्दाश्त नहीं. मुझे लगा वो मेरा फ्रेंड कभी था ही नहीं- ये था कांफिडेंट चेहरा.

अब बारी थी फ्रेंडलिस्ट की एक ऐसी फीमेल की जिसकी इंगेजमेंट हो चुकी थी और वो अपने को इंडिपेंडेंट कहती थी. उसके करियर अभी शुरुआती दौर में था. उससे भी यही सवाल किया. जवाब ऑन लाइन नहीं आया बल्कि आधा दर्जन एसएमएस आ गिरे एक के बाद एक. पढऩे के बाद लगा कि मैसेज उसके मंगेतर के पास जाने थे लेकिन हड़बड़ी या गड़बड़ी से मेरे नंबर पर दे मारे. पहले मैसेज में परमीशन मांगी गई थी कि ..फलां पूछ रहे हैं, क्या आंसर दूं. दूसरे में लिखा था...मतलब? मैं तुम्हें बता रही हूं ना.. जो लगा वो पूछा, इसमें गलत क्या है? फिर तीसरा मैसेज... उन लोगों ने मुझे टच भी नही किया...फलां बहुत सीधे हैं. ओके और हम..मैं तुम्हें बता क्या रही हूं और तुम क्या समझ रहे हो? बीवी हूं तुम्हारी. उसको जब चेताया कि ये क्या दनादन भेजे जा रही हो. इसके बाद सफाई देते हुए 4-5 मैसेज कि वो गलती से आपको चला गया. असल में हमारे रिलेशन पर बात हो रही थी. क्यूंकि हमारे परिचित का पांच साल बाद ब्रेकअप हो गया है तो हम डिस्कस कर रहे थे. फिर कहाकि मेरी तो इंगेजमेंट हो चुकी है ब्वाय फ्रेंड का क्या करूंगी. फिर कहा, ब्वाय फ्रेंड और गर्लफ्रेंड वही नहीं होते जिनसे हम शादी करें. वैसे मैं पर्सनली मानती हूं कि जो ब्वायफ्रेंड हो वही हसबैंड भी. अब तक दिमाग का दही जम चुका था और सवाल वहीं का वहीं था- ये था कन्फ्यूज्ड चेहरा.

लिस्ट में हाल में शामिल एक मेंबर ने तीसरे ही कनवर्सेशन में इतना खुल गया कि दिमाग की लाल बत्ती जल गई. जब कहा कि तुम्हारी फीमेल आडेंटिटी पर डाउट है तो ‘डीके बोस’ वाली लिंगो पर आ गया- ये था फेक चेहरा. थर्टी प्लस की ओर बढ़ रही मेंबर को जब ‘जीएफ’ का ऑफर दिया तो लगा वो धन्य हो गई. ...अच्छी फमिली से हो, जॉब है, शक्ल-सूरत भी खराब नहीं तो शादी क्यूं नही कर लेती. बस फिर क्या था उसके दिल का दर्द सामने आ गया. बोली जीने का दिल नहीं करता इस दुनिया से मन ऊब गया है- ये था फ्रस्ट्रेटेड चेहरा।
लेकिन ढेर सारे ऐसे लोग भी थे जो शुरू में हिचके लेकिन बाद में अच्छे दोस्त साबित हुए. इतने सारे लोगों से बात करने के बाद फ्रेंड लिस्ट फिर लम्बी लगने लगी थी. लेकिन कंट्र्रोल डिलीट एंड की पर बढ़ती उंगलियां ये सोच कर रुक गईं कि जब सोसायटी में विश्वास का संकट बढ़ रहा रहा है तो सोशल नेटवर्किंग साइट्स इससे अलग कैसे हो सकती है. यहां भी तो विश्वास का संकट है. जरा रुकिए...एक और फ्रेंड रिक्वेस्ट आ गई...हेलो.. ग्लैड टू मीट यू.. आई एम राजीव..!

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