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1/10/11

ठंड में हुए छुहारा


हफ्ते दस दिन ठंड और रहेगी, झेल लीजिए. बिना वजह हल्ला मचा रखा है. हर साल ये होता है. चैनल वाले चीखे जा रहे हैं बर्फ दिखा-दिखा कर. कोई पांच साल, कोई 15 साल तो कोई 25 साल का हाड़तोड़ ठंड का रिकार्ड तोड़े डाल रहा है. ठंड में सब छुहारा हुए जा रहे हैं. क्रिसमस तक जब खास ठंड नही पड़ी तो लोग अधीर हुए जा रहे थे ठंड के बिना और जब ठंड पड़ रही है तो मरे जा रहे हैं पारा नापते-नापते. तुम्हारे यहां कितना, हमारे यहां इतना. ये देखो हमारा शहर शिमला से भी ठंडा और देखो पत्तों पर बर्फ जमी है. नहीं दिखी अरे छू के देखो. अरे चिल्लाने से ठंड कम तो होगी नहीं सो मजा लीजिए ठंडी का. गर्मियों में कितना भी अच्छा एसी हो, वैसी नींद नहीं आती जो छोटी सी कोठरी में अपनी रजाई में दुबक कर आती है. और एक-आध दिन नहाने से कल्टी मार जाने पर भी कोई पकड़ नहीं पाता कि पांडे जी ने आज कउआ स्नान नहीं किया है. बड़े बाबू तो कुर्ता-पजामा के ऊपर ही पैंट और जैकेट चढ़ा के आफिस चले आते हैं माजल है कोई भांप ले. ऐसी फेसेलिटी गर्मी या बरसात में मिलती है भला?
हाड़ कंपाने वाली पूस की रात कोई पहली बार तो आई नहीं है. पहले चैनल-वैनल तो थे नहीं और ना ही मौसम विभाग हर घंटे पारे का हिसाब रखता था. ब्लोअर और हीटर के बिना पूस की रातों में मड़ई या ओसारे में कौड़ा (आग) तापते लोग लंठों की तरह ठंड पर चर्चा जरूर करते थे लेकिन हल्ला नहीं मचाते थे. पूस की रात में दूर कहीं जब कानी कुकुरिया भूंकती तो हाड़ कंपाती सर्दी में मास्टर जी को मुंशी प्रेम चंद याद आने लगते और ओसारे में पड़ा बुधिया कौड़ा को पलका (भडक़ा) कर फिर गठरी बन जाता. ..और आप हैं कि जरा सी ठंड में छुहारे की इज्जत उतारने पर तुले हैं.

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