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12/29/09

मार देब चोट्टा सारे...


मेरे पड़ोस में एक अधिकारी रहते थे. आजमगढ़ के रहने वाले थे. छुट्टियों में कभी-कभी उनका एक भतीजा आता था नाम था बंटी. उम्र यही कोई आठ-नौ साल. खाने पीने में थोड़ा पिनपिनहा. मैं और अधिकारी का बेटा अक्सर बंटी को छेड़ते थे, कुछ यूं- बंटी, दूध पी..ब ? नाहीं.. बंटी, बिस्कुट खइब..? ना...हीं... बंटी, चाह पी ब... ना..आं... दू घूंट मार ल...मार देब चोट्टïा सारे. इतना कह बंटी पिनपिनाता हुआ उठ कर चला जाता था. कुछ दिन पहले एक वाक्या बंटी की याद दिला गया.
मैंने सोचा कुछ ब्लॉगर्स जो अच्छा लिखते हैं, उनकी काबिलियत का फायदा अपने पेपर के लिए उठाया जाए. दो-तीन लोग शार्ट लिस्ट हुए. इत्तफाक से सभी हाईफाई प्रोफाइल, हाई सैलरी वाले थे. ब्लॉग में पूरा पुराण लिख मारते हैं तो एक पेज पेपर के लिए लिख ही देंगे. ब्लॉग से शायद ही पैसा मिलता हो लेकिन इन लोगों से अनुरोध कर लिखवा रहा था इस लिए शिष्टाचार में जो टोकन पारिश्रमिक दिया जाता है वो भेजने के लिए उनका पता मांगा गया. कुछ पारिश्रमिक भेज रहे हैं, यह कहने पर एक ने विनम्रता पूर्वक मना कर दिया- इट डज़न्ट मैटर, दूसरे ने चुपचाप रख लिया और दो अच्छे लेख और भेज दिए. लेकिन तीसरा, ब्लॉगरों में 'बंटी' निकला. बड़े मनुहार के बाद लिखा. लेकिन जब पैसे का चेक पहुंचा तो दिन में दो बार फोन किया. पहले कहा कि इसमें से सौ रुपया तो टैक्स कट जाएगा. मैंने कहा ज्यादा सैलरी वालों का तो कटता ही है. शाम को फिर फोन आया. अब गोलबंद प्रवक्ता की तरह, इतना तो मिस्त्री-प्लंबर की एक दिन की पगार है.
अब 'बंटी'नहीं खिसियाने की बारी मेरी थी. कहा, अरे पान में चूना समझ कर चबा जाइए. तो ही ही करने लगे जनाब, अरे मैं तो मजाक कर रहा था. दिन में दो दो बार फोन कर कोई पिपिनाए और फिर कह दे मैं तो मजाक कर रहा था. ऐसे में 'बंटी' तो याद आएगा ही.

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