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5/29/16

जवान होता एक बूढ़ा घर..

मेरा ननिहाल।मिर्जापुर का यह घ्रर बूढ़ा होकर भी जवान है। काेई ढाई सौ साल पुराना। इसका ऊपरी कलेवर बदलता रहता लेकिन दिल वही पुराना वाला।  इस घर के आगे एक नीम का पेड़ हुुआ करता था। वो उम्र पूरी कर चला गया तो उसके बाद एक गुलमोहर  लहलहाता था इस घर के सामने। पीछे एक पोखरी थी ...भटवा की पोखरी..वोभी सूख गई।  पहले बाहर वाला गेट नहीं था, सिर्फ चबूतरा था।  ऊपर टिन शेड।                                                                                                    बगल में एक कूआं था। कूओं अब भी है लेकिन उसमें पानी नहीं। धमाचौकड़ी होती। थी। दलगिरिया की माई..बिल्लाड़ो बो, किलरू साव...बिस्सू ...सेठ,  गोबरहिया गच्च..भटवा की पोखरी,पातालतोड़ कुआं ...उफ..! कितने किस्से,कितनी यादें । पहले गर्मी की छुट्टी की मतलब होता था ननिहाल और ननिहाल का मतलब मिर्जापुर, मतलब मस्ती। रोज गंगा नहाते थे। गंगाजल पीकर आते फिर चार आने की शुद्ध घी की जलेबी खाते। अब न गंगाजी वैसी रहीं न जलेबी। जाने कहां गए वो लोग जो पा..लागी और राम भज...का जवाब जियत रहा बच्चा.. से देते थे।  वो दिन भी क्या दिन थे।

5/23/16

मैं हूं न..!
थोड़ी आस्था, थोड़ी जुबानी, आज सुनाता एक सच्ची कहानी। मेरा एक दोस्त है चंद्रशेखर। बड़ा गुणी। जी न्यूज में कई साल तक मंथन करता रहा। अचानक मन उचटा, नौकरी छोड़ जा बैठा संतों के चरणों में। पूरी तरह बाबा तो नहीं बना लेकिन आजकल बाबाओं पर डाक्यूमेंट्री बनाने की धुन सवार है। जुबान पर सरस्वती जेहन में श्याम, अब यही है उसका नया मुकाम। जब राधे-श्याम हैं तो गृहलक्ष्मी का क्या काम। सो किराए के घर में चंद्रशेखर अकेले ही रहता है। और साथ रहता है माखन चोर श्याम। वैसे एक-दो मोटे चूहे भी हैं साथ देने को। मठ, मंदिर, आश्रम जहां भी जाते माखनचोर श्याम की छोटी सी प्रतिमा हमेशा साथ रहती। एक दिन चंद्रशेखर ने श्याम से पूछ ही लिया.. तुमको साथ लिए घूमता, तुम हो भी या नहीं? श्याम कहां कुछ बोलने वाले थे..।
इसी बीच चंद्रशेखर कुछ दिनों के लिए बाबा के आश्रम गया हुआ था। इस बार श्याम को साथ नहीं ले गया, छोड़ गया था घर की रखवाली को। हालांकि घर में पूंजी के नाम पर तीन लाख का एक कैमरा, एक लाख का कंप्यूटर, लैपटाप और टीवी के अलावा कुछ खास नहीं था।
लेकिन एक रात सूने घर पर चोरों की नजर पड़ ही गई। चोर छत की जाली तोडऩे लगे। पड़ोसी को आहट हुई, उसने चुपके से देखा तो चार चोर जाली तोड़ छत पर पड़ी सीढ़ी लगा आंगन में उतर रहे थे। चोरों ने फटाफट कैमरा, कंप्यूटर सब बांध लिया था , बस पैसे की तलाश में थे। पड़ोसी चुपके से छत पर उतरा। उसने आंगन में लगी सीढ़ी खींच ली और शोर मचाया। पूरा मोहल्ल जमा हो गया। पुलिस भी आ गई । चोर फंस चुके थे। पुलिस घर में घुसी, चोरों की तलाश शुरू हुई। चारों उसी कमरे में बेड के नीचे दुबके मिले जहां श्याम विराजमान थे। चोरों को क्या पता था कि जिस घर में घुस रहे हैं वहां उनसे भी बड़ा एक चोर (माखनचोर)पहले से मौजूद है। एक चोर की सुताई होने लगी तो दार्शनिक अंदाज में बोला- साहेब हम तो झोपड़ी में सोअत रहे, इहां कैसे पहुंचे नहीं पता। चंद्रशेखर को अगले दिन सूचना दी गई। घर आकर देखा तो सारा सामन तहस नहस था। लेकिन श्याम अपनी जगह विराजमान थे.. वैसे ही शांत भाव से मुस्कराहते हुए..जैसे कह रहें हों - मैं हूं न..।
....चंद्रशेखर को जवाब मिल गया था।

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