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12/11/12

ओ..त्तेरी की...

ओ..त्तेरी की...

तुम भी बड़े वाले हो...माइंड ब्लोइंग, ओ...त्तेरी की...लग गई वॉट...इट इज हॉट...
चक्कर क्या है? जिसे देखो वही इन शब्दों को दाग रहा है और इनको रचने वाले कॉमनमैन ही हैं. वैसे भी आजकल कॉमनमैन इन-फैशन है. जैसे पहले फिल्मों की 'इमोशनल '  कर देने वाली कहानी उनके हिट होने की गॉरन्टी हुआ करती थी और उसमें मुख्य किरदार अक्सर कॉमनमैन ही निभाता था. हीरो होकर भी वो निरीह कॉमनमैन था. ये अलग बात है कि वो अक्सर अपना दिल हवेली में रहने वाली हीरोइन से लगा लेता था. अगर हीरो अमीर तो हीरोइन आपके मोहल्ले की कॉमन गल्र्स की तरह होती थी. इसके बाद तो आंसुओं का जो दरिया बहता उसमें आम दर्शक तीन घंटे डूबता-उतराता और फिक्चर हाल के बाहर वो 'पैसा वसूल ' वाले अहसास के साथ निकलता. इसके बाद कुछ दिनों उस दर्शक रूपी कॉमनमैन में हीरो-हीराइन समाए रहते और फिल्म हिट. आजकल भी यही हो रहा. कोई मुद्दा हो, प्राब्लम हो, उसे कॉनमैन से जोड़ दो. बस मामला हिट. लेकिन कौन कहता है कि कॉमनमैन बेचारा होता है. कॉमनमैन अब सयाना हो गया है. वो जितना बेचारा दिखता है उतना है नहीं. जिस तरह शब्द, समय के साथ चोला बदलते रहते हैं उसी तरह ये 'कॉमनमैन ' का चोला बदलता रहता है. कॉमनमैन के शब्द भी बदलते रहते हैं, अर्थ बदलते रहते हैं या यूं कहिए वो नए-नए शब्द गढ़ते रहते हैं. एक जमाना था जब 'गुरु ' शब्द की बड़ी रिस्पेक्ट थी. अब तो कहा जाता है.. अरे वो बड़ी 'गुरू ' चीज है. गुरु, गुरूघंटाल हो गया. 'उस्ताद ' का भी यही हाल है. पहले उस्ताद की बड़ी रिस्पेक्ट थी अब किसी से कहिए कि उस्तादी दिखा रहे तो वो बुरा मान जाता है. इसी तरह आजकल 'कॉमनमैन ' का एक बड़ा हिस्सा भी गुरू या उस्ताद हो गया है. समझ गए ना वही ', 'बड़े वाले '. और कॉमनमैन का माइंड तो डिफेक्टिव कुकर की सीटी का तरह जब-तब ब्लो करता रहता है. बात-बात पर 'माइंड ब्लोइंग '. पहले जो धत् तेरी की था वो अब 'ओ त्तेरी की ' हो गया है. जब कुछ ऐसा हो जाए जिसमें एम्बैरेसमेंट के साथ मजा भी आए तो समझिए हो गया 'ओ त्तेरी की '. जैसे गर्लफ्रेंड के साथ आप फिल्में देखने गए और इंटरवल में पता चले कि अगली रो में आपका बॉस अपनी फ्रेंड के साथ बैठा है तो इसमें मुंह से निकलेगा.. ओ त्तेरी की. पहले जहां खाट खड़ी होती थी अब वॉट लगती है. क्योंकि अब खाट का चलन कम हो गया है. और हां, जिसे देखो वही हॉट है इंडक्शन चूल्हे की तरह, जो टच करने से गर्म नहीं लगता लेकिन सम्पर्क में आते ही स्टीम बनने लगती है. इंजन और मौसम को गरम होते सुना था. कभी-कभी मिजाज भी गरम हो जाता है लेकिन अब जिसे देखो वही 'हॉट ' है. 'हॉट 'होना काम्प्लीमेंट है.
वैसे इन शब्दों को कॉमनमैन मुंह में मसाले की तरह भरे घूमता रहता है. और जहां मौका मिला..पिच्च. वो फिफ्टीज-सिक्स्टीज की फिल्मों के कॉमनमैन की तरह निरीह नहीं, थोड़ा चालू किस्म का है, थोड़ा-थोड़ा करप्ट भी है और अक्सर नियम-कानून भी तोड़ता है. सिस्टम को कोसता है लेकिन अकसर दफ्तर लेट पहुंचता है. कहीं भी कूड़ा फेंक देता है, कहीं भी मसाला खाकर थूक देता, फिर गंदगी के लिए नगर निगम को कोसता है. नो पार्किंग पर बाइक खड़ी करता है फिर ट्रैफिक जाम के लिए पुलिस को भला-बुरा कहता है. अपने वाहन के पेपर्स दुरुस्त नहीं रखता फिर वसूली का आरोप लगाता है. अपने घर के कूड़े की पॉलिथीन पड़ोसी के दरवाजे के सामने फेंक कर सिविक सेंस पर लेक्चर पिलाता है. पॉवर कट पर बिजली वालों को पानी पी-पी कर बुरा-भला कहता है लेकिन मीटर खराब करवा कर या कटिया मार एसी चलाता है. रेलवे से तो उसका सास- बहू वाला रिश्ता है, मजाल है कभी रेलवे की तारीफ कर दे लेकिन मौका मिलने पर 'डब्लू टी ' सैर का मजा लूट आता है लेकिन फिर भी वो 'निरीह ' कॉमनमैन कहलाता है. लेकिन मार्डनिटी और ट्रेडिशन तो साथ-साथ चलते हैं सो अभी भी ढेर सारे 'कॉमनमैन ' पुराने वाले फॉरमैट में जी रहे हैं जो कानून को मानते है, नियमों का पालन करते हैं और उनको ऐसा करते देख सयाना कॉमनमैन बोलता है..ओ त्तेरी की...

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