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4/8/12

कोटि कोटि परनाम चल गयी दूकान


इन दिनों काफी एनर्जाइस्ड महसूस कर रहा हूं. अरे बसंत-वसंत का चक्कर या
व्रत का कमाल नहीं है. लेकिन बात कुछ खास है कि रात बारह बजे के आसपास
अचानक मूड फ्रेश हो जाता है, सारी थकान दूर हो जाती है और पूरे शरीर में
करेंट सा दौडऩे लगता है. ये सब होता है बिल्कुल फ्री. न, न आप बिल्कुल
गलत समझ रहे हैं. ना मैं किसी मसाज पॉर्लर में जाता हूं ना ही बॉर में.
सामने टीवी और हाथ में रिमोट. दिन में खबरों का लेकर चीखने वाले कुछ
खबरिया चैनल रात होते ही तरह-तरह की ऊर्जा वाले 'प्राश' बेचने लगते हैं.
'प्राश' समझ गए होंगे, अरे वही च्यवनप्राश का कजिन. हमने तो बचपन में
बहुत च्यवनप्राश खाया है. लेकिन अब तो नए पैकेज वाले एनर्जी पैक्ड
'प्राश' आ गए हैं. किसी में सोना, किसी में चांदी का भस्म. अब समझ में
आया कि सोना- चांदी के दाम क्यूं बढ़ रहे हैं. मिडनाइट बाजार के इन
प्रॉडक्ट्स में एक और खास बात होती है कि हमेशा अपने एक्चुअल प्राइस से
काफी कम दामों में उपलब्ध रहते हैं. इन 'प्रॉश' का प्रजेंटेशन इतना
शानदार होता है कि नजरें प्रॉडक्ट से शिफ्ट होकर प्रेजेंटर के
'पावरप्वाइंट' पर जा टिकतीं हैं. इनमें ह्यूमर भी होता है. बस आपको
थोड़ा एमैजिनेटिव होना पड़ेगा.
रात होते ही टीवी शो एकदम पावर पैक्ड हो जाते हैं. जड़ी-बूटी का कमाल तो
देखिए कि लाठी टेक कर चलने वाले लोग टेनिस खेलने का दावा करने लगते हैं.
चाहे 'प्रॉश' हो या बूटी, सबका प्रजेंटेशन एक जैसा- आगे की लाइन में बैठे
जाने-पहचाने स्टार और सेलेब्रिटी टाइप पेशेंट. सब के पास चमात्कारिक
क्योर की कहानी. वैसे रात के पैकेज में और भी बहुत कुछ है- रहस्य-रोमांच,
रुहानी ताकतों से रूबरू कराने वाले ताबीज, शैतानी शक्तियों से बचाने वाले
कवच, तरह तरह के यंत्र और मंत्र.
आधी रात को अलग अलग चैनल्स पर अलग डॉक्टर अपनी-अपनी माइक्रसकोप लिए आपकी
'पावर' को परखते मिल जाएंगे. तम्बाकू से काले पड़ गए दांत लिए जबरन
अंग्रेजी बोलने की कोशिश करने वाले ये डाक्टर पहले आपको किसी 'सब्जबाग'
में घुमाएंगे और बताएंगे कि कैसे आपकी 'पावर' बढ़ाने वाली जड़ी-बूटियों
को उनकी देखरेख में निजी बगीचे में उगाया जाता है. वो बार-बार माइक्रसकोप
से क्या देखते हैं पता नहीं. लेकिन ऐसा हर डाक्टर अपने ग्राहकों से
बार-बार ये तस्दीक जरूर करता है कि असली डाक्टर वही हैं बाकी सब नकली
हैं. वो ये भी बताते हैं कि 24 घंटे उनकी एम्बुलेंस स्टेशन के बाहर खड़ी
रहती है ग्राहकों, सॉरी पेशेंट्स की ताक में. अब सोचिए कीजिए जरा. स्टेशन
से निकल रहे किसी अजनबी को एम्बुलेंस वाले कैसे पहचानते होंगे कि गुरू,
बस यही है यौन रोगी, दगोच लो. और अचानक नीलीबत्ती चमकाते, सायरन बजाते
एम्बुलेंस उसके सामने आ रुकेगी, स्ट्रेचर लिए दो लोग उसमें से कूदेंगे और
उस अजनबी को हाथ-टांग पकड़़ स्ट्रेचर पर लिटाया जाएगा और सर्र से
एम्बुलेंस दौड़ पड़ेगी क्लीनिक की ओर जहां एक डाक्टर माइक्रसकोप लिए उसके
इंतजार में बैठा होगा. वो उसकी बेल्ट खुलवाएगा, कुछ टटोलेगा और फिर गंभीर
होकर माइक्रसकोप में कुछ देखने लगेगा.
इसी तरह आपको याद होगा कि कुछ महीनें पहले तक सर्वे कंपनियों की भरमार
थी. जिसे देखो सर्वे भर रहा था और साथियों को बता रहा था कि तुम भी भरो,
हमने तो इतना कमाया. लोगों ने बिना सोचे-समझे गाढ़ी कमाई लगा दी और अचानक
सब कंपनियां फरार. टीवी चैनल्स पर आजकल ऐसे ही कुछ प्रोग्राम्स चल रहे
हैं. दिन-रात और शाम के प्राइम टाइम में भी. खचाखच भरा बड़ा सा हाल,
सिंहासन पर विराजमान बाबा. भक्त बीच-बीच में खड़े होकर अपनी समस्या बताते
हैं. कुछ फिर ये भी बताते हैं कि बाबा की कृपा से वो मालामाल हो गए. बाबा
बीच-बीच में प्रवचन औश्र आशीर्वाद देते रहते हैं. शो के दौरान टीवी
स्क्रीन पर मैसेज आता है कि आप किस खाते में पैसा जमा कर इस जमात में
शामिल होने के लिए अपनी बुकिंग करा सकते हैं. साथ में ये भी मैसेज चलता
है कि चार महीने तक बुकिंग फुल है और आप अगर टीवी पर भी बाबा का
प्रोग्राम देखेंगे तो भी कल्याण होगा. ये है पैसे के साथ टीआरपी का भी
जुगाड़. भविष्य में बाबा के प्रोग्राम में कमर्शियल ब्रेक भी आने लगे तो
आश्चर्य नहीं. इस मिडनाइट बाजार से आपको पावर, प्लेजर या इंटरटेनमेंट में
से क्या मिलता है, ये इस बात पर डिपेंड करता है कि आप विवेक का इस्तेमाल
कितना करते हैं. ..तो समझने वाले समझ गए हांगे, जो ना समझे वो अनाड़ी है.


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