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7/19/10
इश्क-विश्क, हाय रब्बा
सावन आ गया है. झमाझम बारिश हो रही है. लोग भीगते ही रोमांटिक हो रहे हैं, मन का रेडियो गुनगुनाने लगा है, कहीं नई कविता आकार ले रही है तो कहीं पुरानी ‘कविता’ याद आ रही है. बारिश में भीगते ही यंगस्टर्स को कालिदास का मेघदूतम याद आने लगता है और वे यक्ष और यक्षणियों के रोल में आ जाते हैं. तो इश्क-विश्क, प्यार-व्यार की बातें हो जाएं.
वैसे तो इश्किया टाइप ब्लॉगर्स के रोल माडल हैं गुलजार. लेकिन कुछ ऐसे ब्लॉगर भी हैं जिनकी शैली थोड़ी जुदा है और वो सावन की नम हवाओं की तरह तन मन को भिगो जाती है. ऐसी ही एक ब्लॉगर हैं पूजा उपाध्याय. वो भी गुलजार, बशीर बद्र और दुष्यंत कुमार की फैन हैं. उनके ब्लॉग लहरें में एक पोस्ट है - इश्क की बाइनरी थीसिस. पूजा का लिखने का अंदाज बेहतरीन है. सीधी सरल भाषा लेकिन गहराई सागर सी. जैसे- ‘किसी प्रोफाइल में गूगल उससे पूछता है बताओ ऐसा क्या है जो मैं तुम्हें नहीं बता सकता...वो बंद आंखों से टाइप करती है ‘वो मुझे याद करता है या नहीं?’ गूगल चुप है. पराजित गूगल अनगिनत तसवीरें उसके सामने ढूंढ लाता है. बर्फ से ढके देश, नीली पारर्शी सुनहली बालुओं किनारों के देश. उनकी तस्वीरें बेतरह खूबसूरत होती हैं. वेनिस, पेरिस, विएना कुछ शहर तो इश्क की दास्तानों में जीते लगते हैं आज भी. उसकी आवाज सुन कर आज भी वो भूल जाती है कि क्या कर रही थी. हां, वो गूगल से पूछ रही थी, बताओ दिल के किसी कोने में मैं हूं कि नहीं, क्या कभी दिन के किसी समय वह मुझे याद करता है कि नहीं. गूगल खामोश है. वह गूगल को नाराज भी तो नहीं कर सकती...आफिस का काम जो है आज रात खत्म करना होगा. ..उसकी उंगलियां कितनी खूबसूरत थीं, और वो जब कम्प्यूटर पढ़ाता था कितना आसान लगता था. उसके जाते ही सब कुछ बाइनरी हो जाता था, जीरो और वन..वो मुझसे प्यार करता है-वन, वो मुझसे प्यार नही करता-जीरो. डेरी मिल्क, उसी ने तो आदत लगाई थी... कि आजतक वो किसी से डेरी मिल्क शेयर नही करती.’
एक और ब्लॉगर हैं प्रवीण पांडे. पहले अतिथि ब्लॉगर थे अब अपना घर बना लिया है. बेहद सेंसिटिव, सरल और पोलाइट. उनके ब्लॉग का नाम है- न दैन्यं न पलायनम्. इसमें उनही एक पोस्ट है 28 घंटे. उसकी कुछ लाइनें- मैं ट्रेन में चढ़ा, तुमने पीछे मुड़ कर नही देखा. एक आस थी कि तुम एक बार पीछे मुड़ कर देख लेती तो 28 घंटे की यात्रा 28 घंटे की ना लगती...खिडक़ी पर बूंदे उमड़ती हैं, लुप्त हो जाती हैं, विंध्य पर्वत के हरे जंगल पीछे छूट रहे हैं, यात्री उत्साह में बतिया रहे हैं..तुम रहती तो दिखाता. तुम नहीं हो पर तुम्हारा मुड़ कर न देखना सारे दृष्य रोक कर खड़ा है, हर क्षण इन 28 घंटों में.
इस तरह की इमोशनल फुहारों का मजा लेना हो तो http://laharein.blogspot.com/2010/07/blog-post_12.html और http://praveenpandeypp.blogspot.com/2010/07/28.html पर क्लिक करें.
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इश्क-विश्क
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बंगलोर के मौसम का असर है, 6 माह बारिश होती है।
ReplyDeleteउत्तर भारत की कड़कती ठंडक व सनसनाती लू में ये भाव दुबक कर बैठ जायें संभवतः।
ham to aksar hi nahate hain yahan...
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी दी आपने ! आभार !
ReplyDeleteप्रवीण जी को तो पढ़ते ही रहे हैं ...
ReplyDeleteआपकी भूमिका और अच्छे लिंक्स की जानकारी ..दोनों ही भाई ...!
बारिश की फुहारों ने अदरक की चाय और पकोड़े याद दिला दिए....वैसे २८ घंटों का सुरूर भी है....
ReplyDeleteपूजा और प्रवीण जी निसंदेह बेहतरीन लिखने वालों में से हैं...आपकी पारखी नज़र को सलाम...
ReplyDeleteनीरज
hmmm nice
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