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2/19/10
...और फैल गया रायता
ये रायता क्यों फैला है भाई. बारात तो विदा हो गई लेकिन शादी के पंडाल के किनारे ये गाय, कौवे और कुत्ते किस ढेर पर मुंह मार रहे हैं. अच्छा-अच्छा कल रात में यहां भोज था. भुक्खड़ लोग जिस तरह भोजन पर टूट पड़े थे उसे देख कर रात में ये कुत्ते शरमा कर भाग खड़े हुए. अब फैले रायते का आराम से आनंद ले रहे हैं. अभी भी इन सबका पेट भ्रने के लिए यहां बहुत कुछ है. पुलाव, कचौडिय़ां, मटर पनीर, रायता और भी बहुत कुछ, सब गड्ड-मड्ड .
इस तरह का रायता फैलाने वाले लगता है अखबार नही पढ़ते. हाल ही में एक खबर थी कि लोग शादी-समारोहों में खाना बहुत बर्बाद करते हैं. भोज के बाद ढेर सारा खाना फेंका जाता है. यहां बचे हुए खाने की बात नहीं हो रही. वह तो 'प्रजा' में खप ही जाता है . यहां मामला प्लेट में छोड़ दिए गए खाने का है . 'कुक्कुरभोज' के बाद इस खाने को कुक्कुर ही खाते है. अखबार के उसी पेज पर एक और खबर थी जिसमें ग्राफ के जरिए बताया गया था कि गन्ना, चीनी, दाल, गेहूं और तिलहन के प्रोडक्शन में कमी आई है लेकिन मशीनों के प्रोडक्शन में इजाफा हुआ है . फिर भी लोग खाना बर्बाद करते हैं. मैंने कुक्कुर भोज में 'पार्टिसिपेट' करने वालों को ऑब्जर्व किया और पाया कि -
१. भोजन के पहले लोग चाउमीन, चाट-पकौड़े इतना भर लेते है कि 'मुख्य भोजन' के लिए पेट में जगह ही नही रह जाती फिर मन है कि मानता नहीं की तर्ज पर लोग थोड़ा-थोड़ा हर व्यंजन प्लेट में रखते जाते है. अब प्लेट भर जाने पर रायता तो फैलेगा ही.
२.सामूहिक भोज में लोगों को लगता है कि कहीं कोई आइटम खतम ना हो जाए सो दोबारा लेने के बजाय एक बार में ही प्लेट में पहाड़ बना लेते हैं. तभी तो लगता है जैसे प्रीतिभेज में लेाग हाथ में गोवर्धन पहाड़ उठाए घूम रहे हों.
३.भीड़ की रेलम पेल में कुछ लोग जोखिम ना उठाते हुए एक ही बार में सारा कुछ प्लेट में डाल लेते हैं. फिर आधा खा कर बाकी डस्टबिन के हवाले.
काश लोग थोड़ा कम खाते, गम खाते, कुक्कुरों पर नहीं खुद पर तरस खाते. लेकिन जब तक 'बीपी अंकल' और 'डायबिटीज आंटी' से इन्हें डर नहीं लगेगा तब तक इसी तरह रायता फैलता रहेगा.
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अरे! वाह.... बहुत शानदार पोस्ट...
ReplyDeleteरायता फ़ैल गया से कजरारे वाला गाना याद आ गया... :)
ReplyDeleteसचमुच यह बड़ी समस्या है। परोस कर खिलानेवाली दावतें ज्यादा बेहतर थीं। मनुहार भी हो जाता था और खाना भी बेकार नहीं जाता था.
ReplyDeleteमजेदार प्रविष्टि ! शानदार -
ReplyDelete"लगता है जैसे प्रीतिभेज में लोग हाथ में गोवर्धन पहाड़ उठाए घूम रहे हों."
जबरदस्त प्रेक्षण
ReplyDeleteआदरणीय राजीव सर प्रणाम,
ReplyDeleteआज ब्लॉग पर कुछ खोज रहा था की, खोजते, खोजते आपके ब्लॉग पर पहुँच गया, पहले तो यकीन ही नहीं हुआ, फिर जब और गहराई से देखा तो आपका ही ब्लॉग था, सर पहली बात तो ये की उम्र का कोई असर ही नहीं है आप पर, बल्कि आप पहले से भी ज्यादा जवान दीखते हैं ब्लॉग की फोटो में, और आपकी प्रिया स्कूटर वाली पोस्ट पढ़ी , किस नामुराद लड़की ने आपको अंकल कहा, अरे आप तो अभी भी क्या जवान दीखते हैं सर, मजा आया आपका ब्लॉग देखकर, दरअसल सर ब्लॉग का बुखार लोगों में पहले पहले तो चढ़ता है फिर ठंडा हो जाता है, लेकिन आपने लगातार ब्लॉग लिखना जारी रखा है, उसे अपडेट भी करते हैं बहुत शानदार चीज है, आपने अपनी मुस्कराहट नहीं छोड़ी है, बड़ी शानदार चीज है, मुश्किल आपकी जिंदगी में भी होंगी लेकिन आप वैसे ही अल्हड, मस्त, तरीके से ब्लॉग लिखते हैं, वैसे ही जिंदगी जीते हैं, बहुत अच्छा लगा देखकर, अब तो अक्सर आपके ब्लॉग पर आता रहूँगा,
उम्मीद करता हूँ, आप मस्त होंगे, परिवार मजे में होगा, दरअसल आप जैसे लोग जहाँ रहते हैं वहीँ माहौल में जान डाल देते हैं, बस यूँही मस्त रहिये, ब्लॉग लिखते रहिये.....आपको एक बात बताना चाहता हूँ, आपके ब्लॉग में एक समीर लाल उर्फ़ उड़नतश्तरी कमेन्ट करते हैं, ये हम सारे ब्लागरों के आका टाइप हैं, हिंदी ब्लॉग जगत में इनका नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है, कनाडा में रहते हैं और हिंदी के बड़े पुराने ब्लागर हैं, और ये उन्ही ब्लॉग पर टिप्पड़ी करते हैं जो स्तरीय होते हैं आपके ब्लॉग पर कई कमेन्ट इनके हैं, इसका मतलब ही ये है की आपका ब्लॉग कितना बेहतरीन होगा...बहुत खूबसूरत ले आउट, बहुत खूबसूरत लिखा है, सर दरअसल आप लोग जबरदस्त लिक्खाड़ हैं, प्रिंट में आपसे बेहतर कौन होगा....बस ऐसे ही जारी रखिये लिखना...हम पढ़ते रहेंगे...
आपका
हृदयेंद्र
चीफ कॉपी संपादक
तहलका हिंदी
नयी दिल्ली
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ये प्रतिक्रिया हृदयेंद्र जी ने जीमेल पर भेजी है. जाहिर है उम्र तो मेरी भी बढ़ रही है. मैं कोई वेताल थोड़े ही हूं. लेकिन जब एक लड़की ने पहली बार मुझे अंकल कहा था तो मुझे केशव की ये लाइने याद आ गई थीं- चंद्रवदन मृगनयनी बाबा कहि कहि जाए.. हृदयेंद्र जी ने मुझे फोटो में और मन से युवा मना है, उनका हृदय से आभार. दरअसल ऐसी टिप्पणियां 'एंटी ऑक्सीडेंट्स' काम करती हैं और एजिंग प्रासेस को स्लो कर देती है. :-)
राजू भाई,
ReplyDeleteएजिंग प्रासेस को स्लो करने वाले 'एंटी ऑक्सीडेंट्स' की मुझे भी सख्त दरकार है...इसलिए आज से बेगानी शादियों में भुक्खड़ अब्दुल्ला बनना बंद...
भाई हृदयेंद्र की टिप्पणी--- उड़न तश्तरी...ये नाम कुछ सुना-सुना सा लगता है...ब्लॉगर भाइयों, आप ने भी क्या ये नाम पहली बार सुना है...
जय हिंद...
baarat bahut jaa rahe hai sir...
ReplyDeletemaza aa gaya pad kar, lagta hai pichle dino aap kisi shadi me late pahunche the
ReplyDeleteशानदार पोस्ट!!
ReplyDeleteबहुत गज़ब फैला. मैं रायते की बात कर रहा हूँ...:-)
अलग अलग समयों में अलग अलग कहावतें या मुहावरे ज्यादा चलन में रहते हैं आजकल ये रायते वाली मुहावरा काफी फैला हुआ है। आपने भी फैलाने की शुरूआत तो अच्छी की है, वैसे काफी जगह और बाकी थी।
ReplyDeleteऐसे भोजों में तो डोंगा समेत लूट कर खाते देखे हैं गिद्ध!
ReplyDeleteमेरा सुझाव आपकी इसी पोस्ट से उपजा है
ReplyDeletevakeee mein hum log रायता फ़ैलaane mein janwaron se bhi gaye beete hain.
ReplyDeleteVicharniya post.