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12/13/09
मेरा पहला प्यार!
पिछले हफ्ते की ही तो बात है, अपनी प्रिया की सर्विर्सिंग कराई थी. उसका टायर बदलावाया था. नया सीट कवर लगवाया था. कितनी फ्रेश फ्रेश लग रही थी अपनी प्रिया. कुछ यंग सी, कुछ इठलाती सी. एक बार फिर फिर फिदा हो गया था उस पर. मैकेनिक से पूछा आयल-वायल तो चेक कर लिया है ना, कारबोरेटर साफ किया कि नहीं. अरे साहब गाड़ी बिल्कुल मक्खन है. फिर ना जाने क्या सूझा कि उससे पूछ बैठा, अच्छा बताओ कितने में बिकेगी. अरे साहब, बेचने की बात मत कीजिए, बेचना ही होगा तो मुझे दे दीजिएगा. अब ऐसी गाड़ी बनती कहां है. अरे हां, प्रिया का बनना तो कई साल पहले ही बंद हो चुका है. अब खबर आई है कि बजाज कंपनी मार्च के बाद स्कूटर बनाना बंद कर देगी. वेस्पा, लैम्ब्रेटा, प्रिया, बजाज 150, सुपर, चेतक, और इलेक्ट्रानिक, सब बंद हुईं बारी-बारी. अब बजाज कंपनी स्कूटर ही बनाना बंद कर देगी. सुन कर कुछ अच्छा नहीं लगा. इस लिए नहीं कि बाइचांस मेरे पास शुरू से प्रिया ही रही है, बल्कि इस लिए कि वेहिक्ल्स की भीड़ में एक जाना पहचाना चेहरा अब दिखना बंद हो जाएगा. वैसे भी धीरे-धीरे सड़कों पर स्कूटर दिखने कम हो गए हैं. प्रिया और बजाज तो वैसे भी बहुत कम दिखती हैं. लेकिन उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्दी उसे अलविदा कहने का समय आ जाएगा. अचानक मुझे प्रिया पहले से ज्यादा प्रिय, क्यूट और इनोसेंट लगने लगी. याद नही पड़ता कि इसने कभी निराश किया हो. प्रचंड गर्मी, आंधी-पानी, तूफान या वाटर लागिंग, कहीं भी कभी धोखा नहीं दिया, शिकायत नहीं की, कोई डिमांड नहीं की.
मेरे लिए तो खबर बहुत बड़ी थी. पूरा एक जमाना आंखों के सामने घूम गया. स्कूटर से जुड़ी कितनी खट्टïी-मीठी बातें याद आने लगी. कैसा संयोग है कि स्कूटर चलाना मैंने लैम्ब्रेटा से सीखा लेकिन दिल दे बैठा प्रिया को. लैम्ब्रेटी भी लाजवाब थी लेकिन उस समय भी मुझे प्रिया अधिक स्लिम, शोख, चुलबुली और स्मार्ट लगती थी. क्या गजब का पिकअब था. कालेज डेज में दोस्त की बजाज पर ट्रिपलिंग करना तो जैसे आम बात थी. कभी कभी तो शरारत में चार लोग भी लद जाते थे. लेकिन कोई फर्क नही पड़ता था. किसी भी शहर में बजाज स्कूटर पर पूरी फैमिली दिखना आम बात थी. अभी भी याद है कि एक दिन बगल में रहने वाले अंकल कुछ परेशान से आए. उनके बेटे का एग्जाम था और मोटरसाइकिल स्टार्ट नहीं हो रही थी. मैंने कहा था, बस दो मिनट अंकल अभी छोड़ता हूं. ठीक से दो किक भी तो नहीं मारनी पड़ी थी अपनी प्रिया में और गड्डी चल दी थी छलांगा मार दी. इस स्कूटर ने हर परीक्षा की घड़ी को पास किया. कितने ही मौके आए जब वह सिर्फ सवारी नहीं सहारा भी बन कर खड़ी थी. बेटी को स्कूल छोडऩे जा रहा था. रास्ते में पिछला पहिया पंक्चर हो गया. बेटी के चेहरे पर परेशानी के भाव थे. मैंने एक ईंट उठाई, गियरबाक्स के नीचे लगाई स्कूटर टेढ़ी की, बेटी से कहा, बस जरा सा सहारा दिए रहो. सिर्फ दो मिनट लगे थे पहिया बदलने में. अगले पल दौड़ रही थी प्रिया फर्राटे से. बेटी के चेहरे पर मुस्कान थी. ऐसे लम्हे तो कई हैं जब हम कभी प्रिया पर इतराए, कभी मुस्कराए तो कभी शरमाए. बात कुछ साल पहले की है. स्कूटर की डेंटिंग-पेंटिंग और ओवरहालिंग कराई थी. बिल्कुल नई नवेली दुल्हन की तरह लग रही थी. स्कूल में बच्चों की छुट्टी होने वाली थी. गेट के पास ही मेरी स्कूटर के पास आर्मी ट्रक भी खड़ा था. बच्चों के साथ लौटा तो फौजी ड्रेस में चार-पांच सरदारजी उसे घेरे खड़े था. मैंने संभल कर पूछा, क्या हुआ? उनमें से एक बोला, सर जी आपकी स्कूटर तो गजब की मेंटेन्ड है, इसके आगे मेरे सीओ साहब की स्कूटर भी फेल है.
एक बार स्कूटर से जा रहा था. पीछे से हार्न बजाते एक्टिवा पर सवार एक 'स्मार्टी' अचानक बगल में आकर बोली, अंकल साइड क्यों नहीं देते? इसके बाद वो ये गई-वो गई. क्रासिंग और मोड़ पर तो ऐसा तो अकसर होता है कि बड़ी सी बड़ी चेकिंग में भी पुलिस वाला प्रिया और बजाज की तरफ देखता तक नहीं. मैं मुस्कराता हुआ धीरे से निकल जाता हूं. कहते हैं अब बजाज स्कूटर की सेल बहुत घट गई है इसी लिए इसके प्रोडक्शन को बंद करने का फैसला लेना पड़ा. यंगस्टर्स को तो अब एक्टिवा, काइनेटिक या स्कूटी पंसद है. फ्यूल इफिशिएंसी को जाने दें तो लो मेंटिनेंस प्रिया और बजाज की खासियत इसकी सिम्प्लीसिटी ही थी. लेकिन इस सिम्प्लीसिटी की काम्प्लेक्सिटी को समझना आसान नहीं. फिलहाल इस पोर्टिको के कोने में धूल खाती स्कूटर को चमकाइए और निकल जाइए ज्वायराइड पर.
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मेरी प्रिया
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ReplyDeleteज़िन्दाबाद, ज़िन्दाबाद! ऐ मोहब्बत ज़िन्दाबाद!!
ReplyDeleteसलीम खान
हम भी एक स्वच्छ सन्देश ठेल दें।
ReplyDeleteगियर वाला स्कूटर चलाना हमें कभी न आया। और उसके इतर किसी प्रिया से स्नेह नहीं हुआ। हां, एक बढ़िया साइकल खरीदने की हसरत रखता हूं, पर वह जिसके शॉक एब्जार्वर भारतीय सड़कों का आतन्क झेल सकें!
ये स्कूटर बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर के नारों के साथ भारत में हर परिवार की ज़िंदगी में रचे-बसे रहे हैं..दो दिन पहले ही मैंने अपने प्यारे चेतक स्कूटर पर पोस्ट लिखी थी...टेढ़ा है पर मेरा है...लिंक दे रहा हूं...टाइम हो तो पढ़िएगा...
ReplyDeletehttp://deshnama.blogspot.com/2009/12/blog-post_12.html
जय हिंद...
इसे कहते हैं शुद्ध ब्लॉगरी। इसी अदा से तो हम दीवाने हो गए।
ReplyDeleteबहुत अच्छा नहीं बहुते अच्छा।
आज तक मुझे किसी स्मार्टी ने सड़क पर नहीं हड़काया। अंकल शब्द विचार लायक है। बू हू हू ... एक गैलन आँसू ।
बढिया पोस्ट लिखी है.....आप की पोस्ट पढ़ कर अपना लैम्ब्रेटा याद आ गया......भूली हुई यादो इतना ना सताओ...;)
ReplyDeleteप्रिया और अंकल ! आंटी बेहतर है. अंकल तो बजाज सुपर, चेतक या विजय सुपर हुआ. लगता है इस प्रोडक्ट की लाइफ साइकिल समाप्त हुयी. अवसाद.
ReplyDeleteअच्छी लगी रचना।
ReplyDeleteजितना प्यार अपनी गाड़ियों से करते हैं आप लोग ...उतना ...??
ReplyDeleteइंधन की खपत पर काबू पाने के लिए मोटरसाईकल लेने के बावजूद पतिदेव अपना बजाज स्कूटर छोड़ने को तैयार नहीं है ...मजाल है कोई इसे बेचने की बात कर ले ...आते जाते उसे ऐसी हसरत भरी निगाहों से देख लेते हैं कि बस्स्स्सस....!!
हमने तो सीखा वेस्पा पर, वो भी अब आउटडेटेड हो चला. बाकी आपका नोस्टालजिक होना समझ में आता है स्वाभाविक है.
ReplyDeleteRajiv-Ji
ReplyDeleteKoi baat nahin, aapko zarour ek aur, nayaa pyaar milega!
Cheers,
Giorgia
Sirji
ReplyDeleteGood One, touches emotions and heart that I have one. Apart from a Bajaj Chetak which I am not going to replace like my heart at ANY COST.
Anupam :)
सही याद दिला दी आपने प्रिय स्कूटर की...कभी लाईन में लग कर इसके लिए फार्म भरा था और जिस दिन खरीद के लाया पूरे मोहल्ले में लड्डू बटें थे...अब तो कोई कार खरीद कर भी इतने उत्साह से बात तक नहीं करता...सच प्रिय बजाज का जमाना आम इंसान के खुश रहने का ज़माना था...जब चूहा दौड़ नहीं थी..सिर्फ हमारा बजाज ही था...
ReplyDeleteनीरज
wow great! guzra zamana yaad dila diya......Neeraj ji waali kahani ...hamare ghar ki bhi hai
ReplyDeletesir bahut accha likha hai...aapne nirjeev priya ko itna jivant bana ke usko dil diya ki...poochoo mat...ooo myyy gooooddddd
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