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1/16/09
आह और आउच्
हंगामा है क्यूं बरपा थोड़ी सी जो सर्दी है. लेकिन लोग खा-म-खां शोर मचा रहे हैं. जिस मुद्दे और जिस प्रॉब्लम को लेकर शोर मचाना चाहिए था, उस पर कोई नहीं बोलता और जिसका स्वागत होना चाहिए था उसे लेकर आह और आउच् सुनाई पड़ रहा है. ठंड न पड़े तो आफत और ठंड पड़े तो आफत. ठंड हर साल पड़ती है, हर बार कुछ दिन के लिए कोहरा लेकर आती है, हर बार कोल्ड वेव का दौर आता है और हर बार लोगों को दौरा पड़ता है शोर मचाने का. इस बार भी कुछ नया नहीं हो रहा, कुछ अनोखा नहीं हो रहा. नार्दर्न इंडिया में दिसंबर के लास्ट वीक से मकर संक्रांति तक कड़ाके की ठंड पड़ती है. इस बार उतनी नहीं पड़ी. थोड़ी ठंड और पडऩी चाहिए थी. एक-दो दिन थोड़ी ठंड और कोहरा क्या पड़ गया, लगा जैसे लोगों पर बर्फ का पहाड़ टूट पड़ा हो. अब इसमें मौसम विभाग क्या करे, रेलवे और एविएशन वाले क्या करें और कितना करें. सवाल उठता है कि इस सिचुएशन के लिए हम कितने प्रिपेयर्ड हैं, प्लानिंग और एग्जीक्यूशन, दोनों लेवल पर. कई बार खबरें आ चुकी हैं कि रेलवे ऐसे डिवाइस डेवलप कर रहा है जिसमें फॉग में भी सिंग्नल बेहतर दिखाई देेगा. इसी तरह एअरपोट्र्स को ऐसे इक्यूपमेंट्स और डिवाइसेस से लैस किया जा रहा है जिससे धुंध में भी प्लेन आसानी से लैंड कर सकेंगे. लेकिन ये सब उपाय एक लिमिट तक ही कारगर होते हैं. डेंस फॉग में जब विजिबिलटी बहुत कम हो जाती है तो इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं होता. इसका कारण अनप्रेडिक्टेबल मौसम ही है. इस समय मौसम ऐसा ही रहता है, यह हमें पता है तो इसके एकॉर्डिंग हम अपनी ट्रवेल क्यूं नहीं प्लान कर सकते. हां, कहीं अचानक जाना पड़ जाए तो बात अलग है. लेकिन उसमें भी मौसम का अंदाजा लगा हम अपने ट्रवेल शेड्यूल को मॉडीफाई कर सकते हैं. जिस ट्रेन से हम जा रहे हैं और उसी ट्रेन से लौटना है, अप-डाउन दोनों टे्रनें घंटों लेट हैं तो कैसे एक्सपेक्ट किया जा सकता है कि लौटते समय ट्रेन राइट टाइम होगी. लाख डिसटर्बेंस के बावजूद नेचर अभी तक हम पर मेहरबान है इसके लिए में उसका शुक्रगुजार होना चाहिए. कुछ देर से और कुछ दिन के लिए ही सही कड़ाके की ठंड पड़ रही है, पहाड़ों पर बर्फ गिर रही है. मनाइए कि पहाड़ों पर और बर्फ गिरे. अगर कड़ाके की ठंड नहीं पड़ी पहाड़ों पर जोरदार बर्फबारी नहीं हुई तो असली आफत तो ठंड जाने के बाद आएगी. जब पहाड़ों पर बर्फ नहीं रहेगी, ग्लेशियर नहीं रहेंगे तो नदियों में पानी कहां से आएगा. कहीं पढ़ा था कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर अब पहले से ज्यादा नंगी चट्टाने नजर आने लगी हैं. ज्यादा ऊंचाई वाले इलाकों में मौसम ज्यादा तेजी से बदला है. इस लिए दुआ कीजिए कि इन दिनों खूब बर्फ गिरे तभी साल के बाकी दिनों हम सुकून से रह सकेंगे. बर्फ के पहाड़ टूटते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब हमारे ऊपर आफत के पहाड़ टूट पड़ेंगे.
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सब मौसम प्रचुरता से समय पर आयें, इससे बड़ी नियामत क्या हो सकती है?
ReplyDeleteकोहरा में यातायात धीमा हो जाता है, उसका अपना आतंक है। पर कोहरे का अपना आनन्द भी है।