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9/14/09

यूं ही कोई गुजर गया यारों

हर्षित और गगनदीप आईईटी लखनऊ के होनहार छात्र थे. बीटेक थर्ड ईयर के इन छात्रों के आंखों में सपने थे कुछ बनने के, कुछ कर दिखाने के. दोनों रोबोट का मॉडल बननाने में जुटे थे. देर रात चाय की तलब लगी. कैम्पस की कैंटीन रात आठ बजे ही बंद हो जाती है सो रात दो बजे दोनों बाइक से दो किलोमीटर दूर एक ढाबे तक गए थे चाय पीने. लौटते समय किसी वाहन की चपेट में आकर दोनों की जान चली गई. वो तो चले गए लेकिन कुछ सवाल छोड़ गए हैं हमारे आपके लिए. कहा जा रहा है कि हॉयर एजुकेशन के क्षेत्र में हमने तेजी से प्रगति की है. हर नए सेशन में हर बड़े शहर में कई नए प्रोफेशनल कॉलेज और इंस्टीट्यूट्स खुल जाते हैं. इन कालेजों की फीस अच्छी खासी होती है फिर भी इनमें स्टूडेंट्स की कमी नहीं रहती. पैरेंट्स काफी पैसे खर्च कर अपने बच्चों को यहां भेजते हैं कि उनके लाडलों को अच्छी शिच्छा मिल सके और करियर बन सके. जब हम क्वालिटी एजुकेशन की बात करते हैं तो इसका मतलब सिर्फ अच्छी फैकल्टी और स्टूडेंट्स ही नहीं होता. क्वालिटी एजुकेशन का मतलब अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर, माहौल और कैम्पस भी होता है. स्पेशियस कैम्पस, बेहतर हॉस्टल और शहर से अच्छी कनेक्टिविटी को ध्यान में रखकर नए इंस्टीट्यूट्स अक्सर शहर के आउटस्क्ट्र्स पर हाईवे के किनारे होते हैं. किसी भी बड़े शहर से लगे हाईवे पर निकल जाइए आपको हर रोड पर ऐसे दर्जन भर कालेज मिल जाएंगे. लेकिन क्या खेतों में खड़ी इनकी शानदार बिल्डिगों में हम क्वालिटी एजूकेशन के साथ एक आइडियल कैम्पस की अपेक्षा कर सकते हैं? सरकारी कालेज हों या प्राइवेट इंस्टीट्यूट्स, सभी अच्छे हास्टल और फूडिंग-लॉजिंग फैसिलिटी का दावा करते हैं. इनमें से कुछ के दावे सही भी होते हैं. लेकिन इनमें से कितने हैं जो हास्टल्स में चौबीसों घंटे प्योर ड्रिंंिकंग वॉटर और लेटनाइट स्नैक्स और टी-काफी की फेसिलिटी से लैस हैं? शायद एक भी नहीं. भूलना नहीं चाहिए कि यहां स्टूडेंट्स टफ काम्पटीशन के बाद प्रोफेशनल कोर्सेज को पढऩे आते हैं. उपके लिए पढ़ाई के चौबीस घंटे भी कम होते हैं. ऐसे में ब्रेक के लिए उन्हें देर रात एक-दो कप चाय की तलब होती है तो उन्हें कैम्पस के बाहर किसी ढाबे में जाना पड़ता है. तीन रुपए की चाय के लिए रात में अगर स्टूडेंट्स को तीन किलोमीटर दूर जाना पड़े और इसकी कीमत जान देकर चुकानी पड़े तो यह उस कालेज के क्वालिटी एजुकेशन के दावे पर सवाल खड़ा करता है.

4 comments:

  1. यह बेहद चिंतनीय है. इन प्रोफेशनल कॉलेज और इंस्टीट्यूट्स की फीस सुनते हैं तो कान खडे हो जाते हैं. आसमान छूती फीस और सुविधायें रसातल में. इतने कॉलेज फिर भी कई बार माता पिता इनके बंधक जैसे दिखते हैं.

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  2. जब ट्यूशन और कोचिंग पढ़ाने वाले बड़े बड़े इंस्टीट्यूट्स खोलने लगेंगे तो शिक्षा का स्तर क्या होगा। इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। रही बात दो चिरागों के बुझने की। तो इन शिक्षा के सौदागरों को इससे कोई मतलब नहीं होगा। उनकी तो दो सीटे खाली हो गई होंगी। उनकी कमाई में कुछ लाख रुपये और इन रिक्त हुई सीटों पर होने वाले दाखिले से बढ़ जाएंगे।
    आपने अच्छा इश्यू उठाया है।

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  3. अब क्या कहें। बिट्स में हम भी नूतन मार्केट जाते थे देर रात चाय पीने। बढ़िया संस्थान पर देर रात चाय तो नहीं मिलती थी।

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  4. हमारे संसथान में रात २ बजे तक तो सब कुछ मिलता था पर उसके बाद भी चले जाते थे चाय पीने. पर आपकी बात तो सही है. बिजनेस हो गया है अब तो.

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