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3/8/09

फर्क सिर्फ नजरिए का


आज महिला दिवस है. मीडिया में आज महिलाओं पर ढेर सारी सामग्री है. बातें लगभग एक जैसी कहीं सबला, कही अबला. कहीं अत्याचार तो कहीं आत्म विश्वास की कहानी. मेरी कहानी थोड़ा फर्क है. कहानी है ब्रा या कस्बाई भाषा में बाडी की. कई दिनों से सोच रहा था कि लिखूं या न लिखूं. लेकिन आज एक बड़े इंग्लिश डेली में ब्रा का एक बड़ा सा ऐड देखा जिसमें एक माडल ने इसे पहन रखा है. बस तय कर लिया कि बाडी पर चर्चा हो जाए. पहले साफ कर दूं यह कोई अश्लील बातें नहीं हो रहीं. मैं महिलाओं का बहुत सम्मान करता हूं. ...तो कहानी कुछ यूं है कि एक बाडी कई दिनों से मेरे आफिस जाने के रास्ते में पड़ी है. बिल्कुल मैली-कुचैली. लेकिन देख कर लगता है कि कभी किसी कोठी में रही होगी. फिर पुरानी पड़ गई होगी. इस पर शायद होली भी खेली कई होगी और फिर इससे डस्टर का काम लिया गया और अब यह लावारिस पड़ी है मेरे रास्ते में. सडक़ के किनारे घास में पड़ी इस बाडी पर आफिस जाते समय मेरी नजर पड़ ही जाती है. हिन्दी में अंग वस्त्र या चोली और अंग्रेजी में ब्रेजियर या ब्रा तो समझ में आता है लेकिन इसका नाम बाडी कैसे पड़ा पता नहीं. गांव-कस्बों में यही नाम ज्यादा प्रचलित है. साप्ताहिक हाट मेले में ढेर सारी बाडी टंगी मिल जाएंगी दुकानों में. ब्रा या बाडी हमेशा चर्चा में रहती हैं. कभी महिला मुक्ति के प्रतीक के रूप में तो कभी पुरुष वर्चस्व वाले समाज में सस्ते मनोरंजन के माध्यम के रूप में. सुना है कि नारी अधिकारवादी महिलाएं इसे नहीं पहनती. गांव में तो महलाएं इसे अकसर नहीं पहनतीं? मेरी मामी भी नहीं पहनती थीं. प्राइमरी मेंं था तो एक दोस्त ने रुमाल से ब्रा बनाना सिखा दिया. उत्साह में रुमाल की ब्रा बना कर मैं घर में घूम गया. तुरन्त मुझे दो थप्पड़ मिले. तभी से बाडी के मसले पर काफी सतर्क रहने लगा. ननिहाल में कई मामा-मामी थे. गर्मी की छुट्टियां वहीं बीतती थी. वहां नाना का हुक्म चलता था. उनसे सब बच्चे डरते थे. मैं नहीं डरता था. ननिहाल में दो बातें अटपटी लगती थीं. एक- नाना और बड़े मामा को देख मामियां एक हाथ का घूंघट खींच लेती थी लेकिन ऐसा करते समय अक्सर वे ब्लाउज भी नहीं पहने होती थीं. दो- आंगन के किनारे रसोईं थी. वहां बैठी मामियों के सामने ही मामा लोग लंगोट पहने आंगन में गगरे से नहाते थे. लंगोट ऐसी कि पीछे से मामा लोगों को देख कर पूर्ण नग्नता का आभास होता था. मेरा बाल मन तब इस पर्दे और नग्नता को समझ नहीं पाया था. अब समझ में आता है. अब समझ में आता है कि ब्रा पहन कर ऐड में खड़ी नारी और बिना ब्रा और ब्लाउज के घूंघट काढ़े मामी में फर्क सिर्फ नजरिए का है. आखों में अश्लीलता है तो बाडी बेचारी क्या कर लेगी भले ही यह लोहे के बख्तरबंद की क्यों न हो. फिलहाल समस्या रास्ते में पड़ी बाडी की है. सोचता हूं कि इसे खुद हटा दूं लेकिन किसी ने देख लिया तो किस-किस को सफाई देता फिरूंगा. इसका नाम बाडी कैसे पड़ा, हो सके ता बताइयेगा.

6 comments:

  1. फर्क सिर्फ नजरिए का है. आखों में अश्लीलता है तो बाडी बेचारी क्या कर लेगी भले ही यह लोहे के बख्तरबंद की क्यों न हो.
    एकदम सही बात है सर।
    नजरिया साफ़ हो जाए तो चीज़ें इतनी क्लिष्ट न रह जायें ।
    साफ़ निगाहें हों चाहिए बस....

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  2. height hai sir bus itna hi likh sakta hoon...height hai

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  3. सच में अश्लीलता का पैमाना तो देखने वाले की आंखों में है। बस्तर की बालिकाओं में स्तन खुला होना अश्लील नहीं है पर कोई पर पुरुष उनके कंधे पर हाथ रख दे तो चण्डी रूप देखिये!

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  4. Bahut achha ....tarif ke kabil ....continuty barqrar rahi pure lekh main...is visay par charcha jaroori hai....aise visay par phir likhiye....

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  5. Very refined way to jujde human aspect of Sex, but it veries people to people and Society to Society, we can not predict or say that one's eyes are sexually inspired or its by Love the one to whome he is seeing... A famous Quote goes like that " Beauty Lies in The Eyes of Beholder".

    It's the way how and what you see and not the way you percieve of some one...

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  6. बाडी नाम अंग्रेजी के bodice से पडा जिसका अर्थ होता है - अंगिया, कन्चुकी, चोली आदि

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