पॉजिटिव थिंकिंग
कहा जाता है कि खुशदिल लोग जल्दी बूढ़े नहीं होते. फिजिकली और मेंटली, दोनो. इसी तरह जीवन के प्रति सकारात्मक नजरिया और पॉजिटिव थिंकिंग, जिंदगी के सफर को सहज और सरल बनाने में मदद करती है, लाख मुश्किलों, अड़चनों और अनसर्टेनिटी के बावजूद. लेकिन अगर जीवन में खुशियां ही खुशियां हों या फिर एकरूपता आ जाए तो इससे भी ऊब पैदा होती है. एकरूपता से ऊबना हमारा स्वभाव है. यह हर क्षेत्र में लागू होता है. इंटरटेनमेंट के क्षेत्र में भी. जो बातें आज मनोरंजक लगती हैं या इंटरेस्ट जगाती हैं, लगातार परोसे जाने पर वही उबाऊ हो जाती हैं. टीवी के प्रमुख चैनलों पर दिखाए जा रहे कई लोकप्रिय सीरियलोंं के साथ भी यही हो रहा है. जो सीरियल पहले चैनलों की टीआरपी के ध्वजवाहक थे, अब लोकप्रियता की निचली पायदान पर खिसक रहे हंै. क्यूंकि सास भी कभी बहू थी, कहानी घर घर की और कुमकुम जैसे सीरियलों की लोकप्रियता अब पहले जैसी नहीं रह गई है. यहां तक तो गनीमत हैं. लेकिन जब ये समाज को बीमार करने लगें तो हमें एलर्ट हो जाना चाहिए. कई शहरों से ऐसी खबरें आ रही हैं कि लव ट्रायंगल, एकस्ट्रा मैरिटल अफेयर, बिट्रेयल, कांसपिरेसी, अंधविश्वास और विश्वासघात के मसालों से भरपूर ये सीरियल समाज में निगेटिव थाट्स को बढ़ा रहे हंै. महिलाएं इनसे विशेष रूप से प्रभावित हो रही हैं. इन सीरियलों को लगातार देखने वाली महिलाओं में डिप्रेशन के मामले बढ़ रहे हैं. ये सीरियल अब न केवल बोर कर रहे हैं बल्कि तनाव भी बढ़ा रहे हैं. डाक्टर भी इस बात को स्वीकारते हैं. वे सास-बहू के झगड़ों, अनैतिक रिश्तों और भूत-प्रेत वाले हॉरर सीरियलों को छोड़ कर हेल्दी ह्यूमर से कार्यक्रम देखने की सलाह देते हैं. लखनऊ, आगरा रांची और पटना जैसे शहरों में हर महीने औसतन दो से चार ऐसे मामले आ रहे हैं जिनमें इस तरह के सीरियल देखने वाली महिला डिप्रेशन को शिकार हो गईं. मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकोंके अनुसार सीरियल देखने वाला व्यक्ति उसके किरदार से खुद को जोड़ लेता है और उसी तरह सोचने लगता है. इससे शरीर में कई तरह के रासायनिक बदलाव होने लगते हैं जा ेधीरे-धीरे तनाव का रूप ले लेते हैं. इसी तरह आत्मा और पुनर्जन्म के की थीम वाले सीरियल देख हमारे मन में दकियानूसी विचार आने लगते हैं.
aapke byaktitwa ka ye sabse sundar paksha hai. aap hamesa sakaratmak urja se sinchit hon aur bindas rahen. yahi life ka funda hona chahiye.
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है, खूब लिखें, नियमित लिखें, शुभकामनायें…
ReplyDeletebaat to aapne solho aana sahi kahi hai
ReplyDeleteसही कहा आपने भाई लिखते रहें।
ReplyDeleteहिन्दी चिट्ठाकारी में आपका स्वागत है. शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteआपका हार्दिक स्वागत है....
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ReplyDeleteनकारात्मक भाव वाले ये सीरियल अपनी ही मौत मर तो रहे हैं, मगर काफी जहर फैला चुके होने के बाद. स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी. (gandhivichar.blogspot.com)
ReplyDelete"सीरियल देखने वाला व्यक्ति उसके किरदार से खुद को जोड़ लेता है और उसी तरह सोचने लगता है." संस्कृत साहित्य में कहा गया है दर्शक नाटक के पात्रों से स्वयं को एकाकार कर लेता है,यही नाटक की सफलता है.टीवी सीरियल्स न केवल निगेटिव थिंकिंग और अंधविश्वास अपितु परिवार में संवादहीनता की स्थिति को भी जन्म दे रहे है.
ReplyDeleteशुभकामनाओं सहित.