आगे भगवान मालिक!
ब्लागरी करने वालों को देख पहले तो श्रद्धा उपजती है फ़िर खीज कि मेरे पास लिखने सुनांने को इतना है लेकिन कमबख्त टाइम ही नहीं । और लोग हैं कि लिखे ही जा रहे हैं वो भी एक दो पाव नहीं पसेरी भर। ब्लोगेर्स मुझे किसी बाजीगर या बावले ले कम नही लगते । रचना अच्छी बात है लेकिन रोज़ सोलह घंटे काम करने या लिखते रहने के बाद ब्लागरी का बी भी लिखने के लिए हिम्मत जुटानी पड़ती है । कभी लगता है कि ब्लागरी अफीम कि तरह है और ब्लॉगर अफीमची । ब्लॉग पर कुछ तो सटीक टिप्पणी करते हैं लेकिन कुछ खाम खाँ के शामिलबाजा बन जाते हैं। जैसे भीड़ का बे वजह कोई दे रहा हो ताली पे ताली लेकिन भेजा है खाली है। वैसे यहां मैं भी शामिल बाजा की तरह टपक पड़ा हूं। मैं झेंल रहा तो आप भी झेलिये। आगे भगवान मालिक!
पंसेरी भर? नहीं रोज खांची भर लिख रहे हैं। बहुत कुछ स्वांत सुखाय नहीं, आत्मप्रदर्शनाय है। पर जो भी है - रोचक है और अपने को सस्टेन कर ले रहा है।
ReplyDelete(वर्ड वेरीफिकेशन का झमेला हटालें जो ज्यादा मुफीद रहेगा टिप्पणी करना।