ना.. लो ‘यूथ’ के प्राण रे....
आज बात करते हैं यूथ सिंड्रोम की. यानी यूथ के नाम पर आप जो करते हैं,
खाते, पीते, पहनते और बोलते हैं, वही सही है. जो
जरूरत से ज्यादा टेक्नो सैवी है, गैजेट के चक्कर में क्रेजी-वेजी है वही
यूथ है. वही यूथ है जिनका बिहेवियर हॉस्टल रूम और पब्लिक प्लेस पर एक
जैसा होता है, स्लैंग और एब्यूसिव लैंग्वेज जिनकी जुबान पर और दुनिया
ठेंगे पर होती है. जो टीन एज में तोरई, लौकी और कद्दू से 'हेट' करता है,
दूध से दूर भागता है पर
कोल्ड ड्रिंक का वेट करता है. वो अक्सर पैटीज से पेट भरता है. बर्गर,
बिरयानी और पास्ता से है उसका वास्ता.
माना कि इंडिया में आधी आबादी युवा है लेकिन जिसको देखो वही
'यूथ' को डिफाइन करने पर तुला है. जब खास किस्म का 'स्टेट ऑफ माइंड'
बुद्धि और विवेक पर डॉमिनेट करने लगता है तो वो 'सिंड्रोम' बन जाता है.
यूथ सिंड्रोम से ग्रस्त बंदा हमेशा अपने को युवा और दूसरों को अंकल या
आंटी समझता है भले ही वो उससे
पांच-छह साल ही बड़े हों. ये सिंड्रोम बड़ा इंफेक्शियस होता है. वैसे तो
अंकल-आंटी बड़ा सम्मान सूचक शब्द है लेकिन आजकल जिस तरह से इस बाण का
प्रयोग हो रहा, उससे तो अच्छे खासे यूथफुल लोगों के प्राण भी बॉडी से
निकलने को आते हैं. अगर नहीं निकले तो वो ना चाहते हुए भी 'अंकल-आंटी
सिंड्रोम' से ग्रस्त हो जाते हैं. सब्जीवाला, दूधवाला, कबाड़ीवाला,
परचूनिया उम्र
में बराबर या बड़ा होने पर भी आपको आंटी बोले तो चलता है लेकिन कोई
हमउम्र यंग सेल्समैन, बैंक एग्जीक्यूटिव या कोई हैंडसम 'गाय' या गर्ल
आपको अंकिल बोले तो..?
बची खुची कसर टीवी पर तरह-तरह के ऐड ने पूरी कर दी है. जैसे ग्रे हेयर
वाले को एक लड़की अंकल बोलती है तो वो डिप्रेशन में आ जाता है और अगले
दिन हेयर डाई लाकर उसी लड़की को रिझाता है. इसी तरह स्मार्ट फोन वाली
लड़की, पुराना फोन यूज कर रहे एक
सज्जन को 'अंकल' कह कर चिढ़ाती है. जब रिस्पेक्ट वाली 'आंटी' युवाओं के
लिए चिढ़ाने वाली 'आंटी' बन जाए तो इसे सिंड्रोम ही कहेंगे. यूथ जब
उम्रदराज हो जाता है तो यूथफुल जाता है. इसकी वजह से 'यूथ' और 'यूथफुल'
में एक तरह का पर्सनालिटी क्लैश शुरू
हो गया है. यूथ, यूथफुल लोगों को युवा मानने को तैयार नहीं और यूथफुल
अपने को बजुर्ग मानने को तैयार नहीं. इसी क्लैश का नतीजा है 'डीके बोस'
और अब 'तेरी मां की यूथ'.
क्या जिसकी जुबान पर बात बात पर गॉली या डबल मीनिंग वाले वड्र्स हों वही
यूथ है? और जवाब में सफेद बालों के बावजूद अपनी हेयर स्टाइल और टैटू
जडि़त शरीर के कारण यूथफुल दिखने वाली सपना
भवनानी जब सलमान खान को 'तेरी मां की यूथ लिखा' टी-शर्ट भेंट करती है
तो इसे क्या माना जाए? वो यूथ को क्या मैसेज देना चाहती हैं?
पहले इस तरह के द्विअर्थी शब्द गली मोहल्ले में सुनाई पड़ते थे. लोग
उन्हे इग्नोर कर जाते थे. लेकिन अब ये अपमार्केट और ग्लोबल हो गए हैं. अब
इग्नोर नहीं कर सकते. सुन कर हूट या ट्वीट नहीं किया तो आउट फैशन्ड और
स्टीरियो टाइप माने जाएंगे. ये स्टीरियो भी अजब बला है स्टीरियोफोनिक हुए
तो मार्डन और स्टीरियो टाइप हुए तो बोरिंग. सब बजाने और सुनने का फर्क
है. सिचुएशन बड़ी का प्लेक्स्ड है और इसमें नुकसान सबका हो रहा
है. कभी सोचा है कि जिन्हें हम 'यूथ' कह कर डिफाइन कर रहे हैं वो रूरल और
सेमी अर्बन को जाने दें, खालिस अर्बन यूथ के एक चौथाई हिस्से को भी
रिप्रेजेंट नहीं करते. क्या शहरों में रहने वाले बाकी तीन चौथाई युवा,
यूथ नहीं हैं. जो शालीन, संजीदा और करियर को लेकर कांशस हैं. वो भी
मार्डन है और आगे बढऩे की सोचते हैं. जो सोचते हैं अपने देश और सिस्टम के
बारे में, करप्शन उन्हें परेशान करता है. लेकिन वो 'यो-यो'
टाइप नहीं या बियर कैन लेकर पब्लिक प्लेस पर हुल्लड़ नहीं मचाते,
लड़कियों को नहीं छेड़ते, तोडफ़ोड़ नहीं करते. वो भी नेट सैवी हैं, नए
गैजेट-शैजेट पसंद करते हैं, पार्टी में जमकर इंज्वाय करते हैं लेकिन
दूसरों की कीमत पर नहीं. ढिंडोरा पीटने, स्लोगन लिखने या चीखने से कोई
युवा या यूथफुल नहीं हो जाता. ये भी एक स्टेट ऑफ माइंड है. इस 'यूथ
सिंड्रोम' के शोर में आपके शहर का दो तिहाई यूथ क्या चाहता है इसकी फिक्र
किसी को नहीं.
आज बात करते हैं यूथ सिंड्रोम की. यानी यूथ के नाम पर आप जो करते हैं,
खाते, पीते, पहनते और बोलते हैं, वही सही है. जो
जरूरत से ज्यादा टेक्नो सैवी है, गैजेट के चक्कर में क्रेजी-वेजी है वही
यूथ है. वही यूथ है जिनका बिहेवियर हॉस्टल रूम और पब्लिक प्लेस पर एक
जैसा होता है, स्लैंग और एब्यूसिव लैंग्वेज जिनकी जुबान पर और दुनिया
ठेंगे पर होती है. जो टीन एज में तोरई, लौकी और कद्दू से 'हेट' करता है,
दूध से दूर भागता है पर
कोल्ड ड्रिंक का वेट करता है. वो अक्सर पैटीज से पेट भरता है. बर्गर,
बिरयानी और पास्ता से है उसका वास्ता.
माना कि इंडिया में आधी आबादी युवा है लेकिन जिसको देखो वही
'यूथ' को डिफाइन करने पर तुला है. जब खास किस्म का 'स्टेट ऑफ माइंड'
बुद्धि और विवेक पर डॉमिनेट करने लगता है तो वो 'सिंड्रोम' बन जाता है.
यूथ सिंड्रोम से ग्रस्त बंदा हमेशा अपने को युवा और दूसरों को अंकल या
आंटी समझता है भले ही वो उससे
पांच-छह साल ही बड़े हों. ये सिंड्रोम बड़ा इंफेक्शियस होता है. वैसे तो
अंकल-आंटी बड़ा सम्मान सूचक शब्द है लेकिन आजकल जिस तरह से इस बाण का
प्रयोग हो रहा, उससे तो अच्छे खासे यूथफुल लोगों के प्राण भी बॉडी से
निकलने को आते हैं. अगर नहीं निकले तो वो ना चाहते हुए भी 'अंकल-आंटी
सिंड्रोम' से ग्रस्त हो जाते हैं. सब्जीवाला, दूधवाला, कबाड़ीवाला,
परचूनिया उम्र
में बराबर या बड़ा होने पर भी आपको आंटी बोले तो चलता है लेकिन कोई
हमउम्र यंग सेल्समैन, बैंक एग्जीक्यूटिव या कोई हैंडसम 'गाय' या गर्ल
आपको अंकिल बोले तो..?
बची खुची कसर टीवी पर तरह-तरह के ऐड ने पूरी कर दी है. जैसे ग्रे हेयर
वाले को एक लड़की अंकल बोलती है तो वो डिप्रेशन में आ जाता है और अगले
दिन हेयर डाई लाकर उसी लड़की को रिझाता है. इसी तरह स्मार्ट फोन वाली
लड़की, पुराना फोन यूज कर रहे एक
सज्जन को 'अंकल' कह कर चिढ़ाती है. जब रिस्पेक्ट वाली 'आंटी' युवाओं के
लिए चिढ़ाने वाली 'आंटी' बन जाए तो इसे सिंड्रोम ही कहेंगे. यूथ जब
उम्रदराज हो जाता है तो यूथफुल जाता है. इसकी वजह से 'यूथ' और 'यूथफुल'
में एक तरह का पर्सनालिटी क्लैश शुरू
हो गया है. यूथ, यूथफुल लोगों को युवा मानने को तैयार नहीं और यूथफुल
अपने को बजुर्ग मानने को तैयार नहीं. इसी क्लैश का नतीजा है 'डीके बोस'
और अब 'तेरी मां की यूथ'.
क्या जिसकी जुबान पर बात बात पर गॉली या डबल मीनिंग वाले वड्र्स हों वही
यूथ है? और जवाब में सफेद बालों के बावजूद अपनी हेयर स्टाइल और टैटू
जडि़त शरीर के कारण यूथफुल दिखने वाली सपना
भवनानी जब सलमान खान को 'तेरी मां की यूथ लिखा' टी-शर्ट भेंट करती है
तो इसे क्या माना जाए? वो यूथ को क्या मैसेज देना चाहती हैं?
पहले इस तरह के द्विअर्थी शब्द गली मोहल्ले में सुनाई पड़ते थे. लोग
उन्हे इग्नोर कर जाते थे. लेकिन अब ये अपमार्केट और ग्लोबल हो गए हैं. अब
इग्नोर नहीं कर सकते. सुन कर हूट या ट्वीट नहीं किया तो आउट फैशन्ड और
स्टीरियो टाइप माने जाएंगे. ये स्टीरियो भी अजब बला है स्टीरियोफोनिक हुए
तो मार्डन और स्टीरियो टाइप हुए तो बोरिंग. सब बजाने और सुनने का फर्क
है. सिचुएशन बड़ी का प्लेक्स्ड है और इसमें नुकसान सबका हो रहा
है. कभी सोचा है कि जिन्हें हम 'यूथ' कह कर डिफाइन कर रहे हैं वो रूरल और
सेमी अर्बन को जाने दें, खालिस अर्बन यूथ के एक चौथाई हिस्से को भी
रिप्रेजेंट नहीं करते. क्या शहरों में रहने वाले बाकी तीन चौथाई युवा,
यूथ नहीं हैं. जो शालीन, संजीदा और करियर को लेकर कांशस हैं. वो भी
मार्डन है और आगे बढऩे की सोचते हैं. जो सोचते हैं अपने देश और सिस्टम के
बारे में, करप्शन उन्हें परेशान करता है. लेकिन वो 'यो-यो'
टाइप नहीं या बियर कैन लेकर पब्लिक प्लेस पर हुल्लड़ नहीं मचाते,
लड़कियों को नहीं छेड़ते, तोडफ़ोड़ नहीं करते. वो भी नेट सैवी हैं, नए
गैजेट-शैजेट पसंद करते हैं, पार्टी में जमकर इंज्वाय करते हैं लेकिन
दूसरों की कीमत पर नहीं. ढिंडोरा पीटने, स्लोगन लिखने या चीखने से कोई
युवा या यूथफुल नहीं हो जाता. ये भी एक स्टेट ऑफ माइंड है. इस 'यूथ
सिंड्रोम' के शोर में आपके शहर का दो तिहाई यूथ क्या चाहता है इसकी फिक्र
किसी को नहीं.
कुछ नही हो सकता इस यूथ का ये सब बहुराष्ट्रीय देन है
ReplyDeleteसबकी अपनी प्रायोजित जिन्दगी, यूथ की। कुछ दिन का गुबार है, ढल जायेगा..
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