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7/31/11

फ्रेंच किस!



आज थोड़ा वॉक करते हैं. जिंदगी को करीब से देखने और समझने के लिए पैदल चलना जरूरी है. पैदल चलने का मतलब पैदल होना कतई नहीं है, यहां तो बस कुछ दूर पैदल चलने की बात हो रही. पैदल होने और पैदल चलने में बड़ा फर्क है. ऐसा भी नहीं कि आपको कार या टू व्हीलर से नहीं चलना चाहिए. ये सब नहीं होगा तो लोग कहेंगे कि पैदल है. लेकिन वाहन होते हुए भी अगर आप कुछ दूर पैदल चलेंगे तो जिंदगी को और करीब पाएंगे. घबराइए नहीं, यहां वॉकिंग के फायदे, स्वस्थ जीवन और मोटापा कम करने के टिप्स या प्रवचन देकर पकाने का इरादा नहीं है. बस गुजारिश है कि आइए थोड़ी दूर पैदल चलते हैं, जिंदगी को थोड़ा और करीब से देखते हैं.
छुट्टी का दिन और शाम का खुशनुमा मौसम सो चल दिए पैदल. वही रास्ते, वही बिल्डिंग्स और वही दुकानें, लेकिन अहसास नया. पता चला कि स्पीड ब्रेकर्स सिर्फ वाहन वालों को ही नहीं झटके देते, पैदल चलने वालों को भी झकझोरते हैं. तभी सामने दिखा स्पीड ब्रेकर- फुटपाथ पर डब्लूडब्लूएफ के दो फाइटर्स नजर आए. पत्नी से कहा पटरी बदलो, इन सांड़ों के मूड का क्या ठिकाना. थोड़ी दूर आगे निकला तो दूसरा स्पीड ब्रेकर मिला- चटपट-चटपट की आवाज और सोधीखुशबू. मैं फिर ठिठक गया. ठेले पर भुट्टे भूने जा रहे थे और चार-पांच लोग अपने भुट्टों के इंतजार में जले-भुने से खड़े थे. पत्नी ने घुड़का, इस तरह तो पहुंच चुके अम्बेडकर पार्क. मन मारकर हम बढ़ चले. पहली बार महसूस किया कि बारिश के बाद फुटपाथों पर उग आए घास में भी खुशबू होती है. पार्क करीब था कि तभी आ गया एक और स्पीड ब्रेकर-कुछ लेडीज और बच्चों से घिरा गोलगप्पे का एक ठेला. गोलगप्पे वाला धकाधक जलजीरा में बताशों को यूं डुबकी लगवा रहा था जैसे कोई पंडा जजमानों को गंगा में स्नान करवाता है. मुंह में पानी आ गया. आंखें सिर्फ एक 'पत्तेÓ की गुजारिश कर रहीं थी लेकिन साथी का रिस्पांस निगेटिव था, सो बढ़ चला पार्क की ओर.
पार्क के भीतर थी छुट्टी की परफेक्ट पिक्चर. चारों तरफ हरी घास, बीच-बीच में फौव्वरे, लाइट्स और मस्ती करते ढेर सारे लोग. कुछ कपल्स फव्वरे की फुहारों में तनमन भिगो रहे थे. थोड़ी दूर पर एक लड़की ईयरफोन लगाए बड़ी देर से ना जाने किससे बतिया रही थी. हमने भी एक खाली टीला तलाश ही लिया. उसके ऊपर एक बाड़े में पीपल का पेड़ रोपा गया था. हम उसकी ढलान पर बैठ दूब की खुशबू को महसूस करने लगे...और भी बहुत सी इधर-उधर की बातें. शाम ढल रही थी. अचानक पीपल के उस पार एक कपल पर नजर पड़ी. उम्र होगी यही बीस-इक्कीस साल. एक-दूसरे में खोए हुए. दोनों किसी कॉलेज के स्टूडेंट लग रहे थे. वाइफ से कहा देख रही हो ना लव बड्र्स, वो दोनों जो कर रहे हैं उसे 'फ्रेंच किस' कहते हैं. इसके साथ ही अपनी टीनएज की फ्लैशबैक रील चलने लगी. 'फ्रेंच किस' तो दूर स्टूडेंट लाइफ में 'नार्मल किस' का मौका भी नहीं मिला. किस पर डिस्कशन तो बहुत होते लेकिन उस 'पप्पी' और इस 'किस' में बड़ा फर्क है. किस से ना जाने कितने पुराने किस्से याद आने लगे. वाइफ की तरफ देखा.. कहीं फिर झिड़की ना मिले कि यही सब देखने आते हो. लेकिन वो थोड़ा कंसन्र्ड दिखी...अंधेरा होने को है, ये लड़की घर से क्या बता कर निकली होगी? शायद यह कह कर निकली हो कि कोचिंग में एक्स्ट्रा क्लास है. हो सकता है गल्र्स हॉस्टल या फिर पीजी में रहती हो. वहां तो नौ बजे रात तक की छूट होती है. फ्रेंच किस में मशगूल ये टीनएजर्स कितने सीरियस हैं अपनी रिलेशनशिप को लेकर, आर दे मेच्योर एनफ? फ्रेंच किस की बात पर वाइफ पैरेंट के रोल में आ चुकी थी और मैं फैंटसी की बाइक पर सवार बीते दिनों के चक्कर लगा रहा था. तभी उसने कहा अच्छा, अब चलो, घर में बच्चे अकेले हैं...फिर झटका लगा.. स्पीड ब्रेकर आ गया था. फैंटसी खत्म और रियल लाइफ शुरू. अब हम दोनों घर लौट रहे थे. मैं भी पैरेंट के रोल में आ चुका था. फ्रेंच किस के फीचर्स की जगह उस टीन कपल्स को लेकर कंसर्न था...पता नहीं वो दोनों वहां कब तक बैठे रहेंगे, जरूर उनके पैरेंट्स इंतजार कर रहे होंगे या शायद उनको पता ही ना हो...हमारा घर आ गया था. कॉलबेल बजी, आवाज आई...पापा आ गए...पता नहीं क्यों लगा कि पार्क वाली वाली वो लड़की भी शायद घर पहुंच गई होगी.


5 comments:

  1. आप रोज घूमने जाया कीजिये, न जाने कितने वृत्तचित्र निकल आयेंगे।

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  2. बदःइया है। रोचक।

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  3. bahut khoob aajkal park k chakkar lagaye ja rahe hain bade bhai,,,,,,,,,

    aapki baat sunkar muje apna chandigarh ka time yaad aa gaya,,,,,,

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  4. सुन्दर चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  5. bahut behtarin chitran kiya gaya hai...........,,, mujhe apne purane din yaad aa gaye... :P :P

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