Featured Post
8/21/10
‘लफंगे’ परिन्दे
ब्लॉगरी के बाजीगरों के करतब देख ये कहावत याद आती है- गए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास. ब्लॉगर की प्रोफाइल में झांकना ही पड़ता है कि आखिर इस मदारी की असलियत क्या है. कई टॉप हिन्दी ब्लॉगरों की प्रोफाइल देखी तो यही कहावत याद आने लगी. इंसान बनना कुछ चाहता है और बन जाता है कुछ और. कई दुर्दांत साइंटिस्ट, इंजीनियर, डाक्टर, गणितबाज और टेक्नोक्रेट्स के ब्लॉग देखिए. ये जिस तरह से हिन्दी में लिखते हैं उससे लगता है कोई साहित्यकार, कोई संस्कृताचार्य तो कोई ज्योतिषाचार्य और भाषा शास्त्री जरूर होगा. जैसे रवि रतलामी को ही लें. पहली बार नाम सुना तो लगा कि रतलाम में नमकीन-सेव बेचने वाले कोई बड़े कारोबारी होंगे. जो गद्दी से लौटने के बाद मन बहलाने के लिए कुछ लिखते हैं. लेकिन पता चला पांच-पांच ब्लॉग हैं, रतलामी सेव की तरह पांच अलग-अलग फ्लेवर वाले. चुपके से उनकी प्रोफाइल पर नजर डाली तो ये तो हार्डवेयर और साफ्वेयर दोनों के धुरंधर निकले. इसी तरह ज्ञानदत्त पांडे इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पढ़ कर रेलगाड़ी की रेलमपेल में फंसे-फंसे किसी गुरुकुल के आचार्य की तरह गंगा तीरे ज्ञान की गंगा बहा रहे हैं. शिवकुमार मिश्र चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं लेकिनअपने ब्लॉग में मनी मैटर और वाणिज्य-व्यापार की बातें कम व्यंगबाण ज्यादा छोड़ते हैं. गिरिजेश राव, प्रवीण पांडे, अभिषेक ओझा, स्तुति पांडे, कितने नाम गिनाऊं, ऐसे साइंटिस्ट-इंजीनियर और टेक्नोक्रेट्स की हिन्दी ब्लॉग जगत में भरमार है. यहां पंकज शर्मा जैसे मैनेजमेंट गुरू भी हैं जो हैं तो बुजुर्ग लेकिन उनकी कलम में टीनएजर्स वाले लटके-झटके है. यहां मनीष कुमार जैसे बिजली बनाने वाले इंजीनियर भी हैं. उनकी कविताओं, गजल और शायरी पढ़ शरीर में करंट दौडऩे लगता है. उनका शौक है लफंगे परिदों की तरह घूमना.
इन सबकी प्रोफाइल देख मुझे मिस्टर क्वात्रा याद आने लगते हैं. मि. क्वात्रा नाम के एक सीनियर आर्किटेक्ट पड़ोस में रहते थे. उनकी ख्याति अपने प्रोफेशन में कम कुंडली बांचने में ज्यादा थी. वो कहा करते थे कि हर इंसान में कुछ गॉड गिफ्टेड टैलेंट होती है और उनके हॉरस्कोप में ग्रह दशा इस ओर इशारा भी करती है. बस जरूरत है इसे पहचानने की. सो मैं भी पहुंचा अपना कुंडली लेकर. हाथ जोड़ कहा, हे आर्किटेक्टाचार्य कृपया इस ‘इमारत’ की अंधेरी कोठरियों पर अपने दिव्य चक्षु से प्रकाश डालें. उन्होंने हॉरस्कोप को ध्यान से देखा. फिर बोले, घोर अनर्थ. मैं डर गया कि कहीं ये हॉरस्कोप देख कोई हॉरर स्टोरी तो नहीं सुनाने जा रहे. वो बोले, आपको साइंटिस्ट होना चाहिए था. मैंने कहा, प्रभू इच्छा तो फौजी बनने की थी, अब देर हो चुकी है अगली बार देखा जाएगा. वैसे सपने तो अब भी आते हैं कि आर्मी सर्विस सेलेक्शन बोर्ड में घूम रहा हूं लफंगे परिंदो की तरह. इन ब्लॉगर्स में भी मुझे कोई घूमता दिखता है ऐसे ही परिंदो की तरह.
(जैसा आई नेक्स्ट में लिखा)
लेबल:
ओटन लगे कपास
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
पत्रकारिता के दायित्व और उसकी जिम्मेदारियां भी किसी आर्मी के जवान से कम नहीं हेाती है राजीव भाई ! लेकिन यह ब्लाग देख कर मजा आ गया। जियो मेरे दोस्त।
ReplyDeleteकुमार सौवीर, महुआ न्यूज, लखनउ
achcha lekh sir..
ReplyDeleteइनमें से कईयों को ओटना तो कपास ही था हरी भजन का लेबल लग गया गलती से :)
ReplyDeleteहमें तो आदरणीय ज्ञानदत्तजी ने ही कपास ओटना सिखा दिया। मेरे व्यक्तित्व के घर को उस ओर से खोल दिया जहाँ से संवेदना और ज्ञान के साथ साहित्य की धारायें उन्मुक्त नर्तन कर रही हैं।
ReplyDeleteहम क्या थे......क्या होंगे अभी।
दूसरी बार टिप्पणी का प्रयास कर रहा हूँ। सुबह जाने क्या हुआ, ग़ायब ही हो गई।
ReplyDeleteइसे मैं खालिश ब्लॉगरी कहूँगा। सुन्दर लेख।
ये आप तकनीकी और विज्ञान बैकग्राउंड वाले ब्लॉगरों की भाषा पर काहें दु:खी हो रहे हैं?:) हमीं लोग तो हैं जो इन्टर्नेट पर भाषा को सहेज रहे हैं। वैसे सही कह रहे हैं - बहुत बार मनुष्य वह नहीं बन पाता जो चाहता है।
ये पंकज जी को जो आप बुजुर्ग कह रहे हैं तो चचा को क्या कहेंगे? :)
bahut badhiyan sir!!! Iska matlab ap bal ki khal tak janch karte hain....
ReplyDelete:D
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमैं तो यहाँ ये सोचकर आया था कि इस बार झंडू बॉम से आप लफंगे परिदे के फिल्म निर्देशक और कलाकारों की मालिश करेंगे। यहाँ आ कर पता चला कि हुज़ूर ने हमें ही लफंगा परिंदा बना दिया है :)
ReplyDeleteऔरों की तो मैं नहीं जानता पर दिन भर आफिस में तकनीकी मसलों को सुलझाते सुलझाते उसी विषय पर लिखने या बात करने का दिल नहीं करता। इसलिए जिंदगी का कुछ समय अपने और अपने शौकों के लिए सुरक्षित रखा है। दरअसल इससे जो उर्जा मिलती है वो हमारे रोज़ के काम में मदद ही करती है।
और राजीव भाई ऐसी गलती मत करिए मैं तो अपनी मनपसंद ग़ज़लकारों कवियों की रचना अपने पाठकों को अपने चिट्ठे के माध्यम से पहुँचाता भर हूँ। खुद लिखने की कूवत होती तो अब तक अपना मेकेनिकल इंजीनियरिंग का प्रोफेशन बदल नहीं लिया होता।
बहरहाल ये सही है कि ज़िदगी में हम सब बहुत कुछ करना चाहते हैं। बचपन से जवानी तक अलग अलग किरदारों में अपने आप को सोचते रहे पर बनना तो कुछ एक ही था ना.
@Manish Kumar: Kaviyon aur unki kritiyon ke vishay me alpgyani hun so aapke madhyam se jo bhi mila vo aap ke matthe :)
ReplyDeleteAisa laga ki jaise bahut jaldi apne topic wind up kar diya ...... abhi aur bhi bahut kuch aap likh sakte hain is topic par....... aap acchhe researcher jo hain.
ReplyDeleteIntezaar rahega 'LAFANGEY' PARINDEY (Part II) ka.
Likhiyega Jaroor!
हम तो लफंगे परिंदे बन खुश हुए......झकास! धांसू! आप तो ब्लोग्गर्स की टी. आर.पी बढ़ा रहे हैं ....लगे रहिये :-)
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeleteधन्यवाद गिरिजेश, मेरी सिफारिश करने के लिये वरना बुजुर्ग पढ़कर ऐसा झटका लगा कि बस पूछो मत. राजीव भाई, टीन से निकलते ही बुजुर्ग हो जाते हैं क्या? खैर बड़ी सही ब्लाग है ब्लागर्स पर.
ReplyDeleteलफंगों के संबंध में पढ़कर अच्छा लगा :)
ReplyDeleteनिकले भी थे कपास ओटने और अब तक ओट भी वही रहे है. :)
ReplyDeleteOtiyane ke liye bhi to kuchh hona chahiye na....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ....कुछ लोगों का परिचय भी मिल गया इस लेख के माध्यम से ..
ReplyDeleteबहुत अच्छा जी ....इस नज़र से देख कर भी मज़ा ही आया !
ReplyDeleteवास्तव में कई लोंग वह नहीं हैं जो प्रोफाइल में नजर आते हैं ..खोजबीन अच्छी की है आपने ..आखिर तो प्रत्रकार की नजर है ...!
ReplyDelete