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7/31/10
कौन हैं ये रात में टिमटिमाते जुगनुओं की तरह
रात में टिमटिमाते जुगनू देखे हैं? पहले बरसात के बाद खूब जगमगाते थे जुगनू. पेड़ों पर, बगिया में, घर के बाहर लगी झाड़ में रोशनी के इन छोटे छोटे बुलबुलों को देख कर लगता था जैसे बारिश के बाद रात जश्न मना रही हो, जैसे शबेरात हो या फिर किसी की बारात हो. कभी तो ये टिमटिमाते जुगनू कमरे में घुस आते थे. जैसे वो खेलना चाहते हों, बात करना चाहते हों. लेकिन अब ये जुगुनू कम ही दिखते हैं. शहरों में अब ना वैसे बाग-बगीचे रह गए ना ही जुगनू. न्यू जेनरेशन में बहुतों ने तो जुगनू देखे भी नहीं हैं बस उनकी बातें किताबों में पढ़ी हैं. कहीं पढ़ा था कि बया चिडिय़ा तो अपने घोसलों को रोशन करने के लिए जुगनुओं को पकड़ लाती है. इसमें कितनी सच्चाई है पता नही लेकिन जुगनू हमेशा से इंसपायर करते रहे हैं अंधेरी सुरंग में आशा की किरण की तरह. तो आइए आज जुगनुओं की बात करें.
बरसात की ऐसी ही एक स्याह रात में थकान दूर करने के लिए मन किया थोड़ा घूम आएं. सोचा चलो आज नेट के किसी गलियारे का चक्कर लगा आते हैं. फेसबुक पर लॉग-इन करते समय उम्मीद कम थी किरात एक-डेढ़ बजे कोई दोस्त, कोई परिचित ऑनलाइन मिलेगा. लेकिन यह क्या, अभी भी इतनी सारी हरी बत्तियां जल रही थीं. लगा कि रात में जुगनुओं की बस्ती में आ गया हूं. इतनी रोशनी, इतनी चहलपहल जैसी आधी रात में लखनऊ का चौक और बनारस का गोदौलिया चौराहा हो. कहीं गप-शप, कहीं चैटिंग-शैटिंग, सब अपनी धुन में मस्त. ध्यान से देखा कि कहीं ये अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया वाले दोस्त तो नहीं, क्योंकि वहां तो इस समय दिन होता है. लेकिन एक-दो को छोड़ कर सब हिन्दुस्तान के दोस्त थे. ज्यादातर यंग. इसमें हाईस्कूल, यूनिवर्सिटी, प्रोफेशनल कालेजों के स्टूडेंट से लेकर एक्जीक्यूटिव और आईटी प्रोफेशनल तक थे. सब को जानता था. डेढ़ बजे रात ये सब आखिर कर क्या रहे थे. जानने के लिए किसी को धीरे से टीप मारी, कुछ को कुरेदा, कुछ के स्क्रैप और कमेंट्स देखे तो फिर जुगनू याद आने लगे, जल कर बुझते, बुझकर जलते, टिमटिमाते से. कहीं किसी के बर्थ डे पर ढेर सारी बधाइयां थीं, ई-गिफ्ट्स और चाकलेट थे तो कहीं कोई उदास था..किसी ने भी उसको बर्थ डे विश नहीं किया था. कोई पेरशान था. उसके मम्मी-पापा शादी कर देना चाहते थे. लेकिन वो पढऩा चाहता था, करियर बनाना चाहता था. कोई बहुत खुश थी, उसकी शादी होने वाली थी. सपनों के राजकुमार के साथ वह कल्पना की जगमगाती दुनिया में उड़ती फिर रही थी.. कहीं कोई यूं ही किसी इनोसेेंट के साथ खेल रहा था, फ्लर्ट कर रहा था. कोई बेअंदाज था तो काई बिंदास. रात की इस बस्ती में हाईस्कूल की एक बच्ची भी थी. पूछा इतनी रात को क्या कर रही हो, पेपर है क्या? उसने चट से कहा, दिन में मस्ती रात में स्टडी, रात में पढऩे में मजा आता है. ढेर सारे टीन एजर्स ऐसे थे जो सिर्फ चैटिंग कर रहे थे. कोई किसी के टैडी की तारीफ कर रहा था तो कोई किसी के नए स्नैप को देख कर कह रहा था वॉव, लुकिंग सो क्यूट.
फेसबुक के इस चौराहे पर कब कौन हैलो कह दे, दोस्ती का हाथ बढ़ा दे, कहा नहीं जा सकता. हैंडसम, ब्यूटीफुल और ग्लैमरस फोटो और शानदार प्रोफाइल देख कर कर ली दोस्ती. फिर खुलने लगते है उस अनजानी किताब के पन्ने. किसी के ग्रेे होते बालों के बावजूद एक यंग साफ्टवेयर इंजीनियर ने उन पर कमेंट किया था, यू लुक सो ब्यूटीफुल और साथ में हार्ट का साइन भी भेज रखा था. माथा ठनका कि कहीं ये ‘वो’ तो नही. लेकिन ऐसा है नहीं. इन कमेंट्स पर सरसरी नजर डाले तो लगेगा कि नेट की बस्ती में जगमगाती इस इस यंग जेनरेशन का ‘आई क्यू’ तो हाई है लेकिन ‘ई क्यू’ यानी इमोशनल कोशेंट में ये कहीं ना कहीं कमजोर है. तभी तो इमोशनल सपोर्ट के लिए इन्हें तलाश है अच्छे दोस्तों की. जैसी भी है ये बस्ती है अपनों की, जहां हर मोड़ पर मिल जाएगा कोई जल कर बुझता, बुझ कर जलता, जुगनुओं की तरह.
लेबल:
गप-शप,
चैटिंग-शैटिंग
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राजीव जी, सही कहा अंतर्जाल पर कब कौन कहाँ मिल जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता।
ReplyDelete…………..
प्रेतों के बीच घिरी अकेली लड़की।
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
मस्त, चकाचक पोस्ट। प्रवाहमयी, सरल, सीधी समझदानी में घुस कर टिम टिम करने वाली ... पहले पैरा में तो एक संगीत सा है! काव्य !!
ReplyDeleteवो सूफी संगीत की रात ऐंकर कौन थीं ? नाम नहीं याद आ रहा। सोच रहा हूँ कि कभी वे इसे मंच से कहें तो कैसा हो !
"रात में टिमटिमाते जुगनू देखे हैं? पहले बरसात के बाद खूब जगमगाते थे जुगनू. पेड़ों पर, बगिया में, घर के बाहर लगी झाड़ में रोशनी के इन छोटे छोटे बुलबुलों को देख कर लगता था जैसे बारिश के बाद रात जश्न मना रही हो, जैसे शबेरात हो या फिर किसी की बारात हो. कभी तो ये टिमटिमाते जुगनू कमरे में घुस आते थे. जैसे वो खेलना चाहते हों, बात करना चाहते हों. लेकिन अब ये जुगुनू कम ही दिखते हैं. शहरों में अब ना वैसे बाग-बगीचे रह गए ना ही जुगनू. न्यू जेनरेशन में बहुतों ने तो जुगनू देखे भी नहीं हैं बस उनकी बातें किताबों में पढ़ी हैं. कहीं पढ़ा था कि बया चिडिय़ा तो अपने घोसलों को रोशन करने के लिए जुगनुओं को पकड़ लाती है. इसमें कितनी सच्चाई है पता नही लेकिन जुगनू हमेशा से इंसपायर करते रहे हैं अंधेरी सुरंग में आशा की किरण की तरह. तो आइए आज जुगनुओं की बात करें."
कभी कभी एकदम जलन से खाक हो जाता हूँ। कहीं कहीं कुछ मात्रा वग़ैरह ...;) समझ रहे हैं न. हाँ... आप को नेट पर भी जुगुनू के फोटो नहीं मिले? कमाल है - आलसी हम हैं कि आप?
नखलौ का सबसे बढ़िया स्टूडियो बताइए। अपनी एक मस्त फोटू खिंचानी है - फेसबुक पर लगाने के लिए। :)
Ha Ha Ha ha... Studio kyun talash rahe hain Sawan me ;-). Bachpan ki foto laga deejiye.
ReplyDeletegood one ojha ji....observaion badhiya hai
ReplyDeleteyaa sir my life is surely like a jugnu,,its great
ReplyDeleteनेट तो 24 घंटे जगने वाला जीव है। यह भी बहुत संभव है कि जब आपको नींद न आ रही हो, कोई नेट पर आपको याद कर रहा हो।
ReplyDeletebahut sunder sir ,
ReplyDeletekya khoobsurati say jugnu kee yad dilai hai,
aur net kee bat chalai .
is khushi may aapko friendship day kee badhai hai.
bahut sundar, pad kar maza aa gaya
ReplyDeleteयाद है बचपन में हमारे घर में एक पंडित जी आते थे शायद गोरखपुर से ......... उनको सब ओझा जी बोलते थे .......... यही समझ में नहीं आया कि वो नाम के ओझा हैं या काम के ओझा?
ReplyDeleteलेकिन सर आप तो कमाल हैं ............... नाम ओझा है लेकिन लिखने में ऐसा जंतर मंतर चलाते हैं कि सचमुच के ओझा क्या करेंगे ....... सर जवाब नहीं ...कितना खूबसूरत वर्णन है मोडर्न जुगनू का ......... सच है नयी पीढ़ी के लोग कहाँ जान पाएंगे असली जुगनुओं कि चमक ........ वो बचपन खो गया है जब हम जुगनू को पकड़ कर एक बोतल में कुछ पत्तियों के साथ बंद कर देते थे और अँधेरे कमरे में देर रात तक उसकी रौशनी पर रिसर्च किया करते थे ...... पर अब ये पढने के बाद जुगनू के साथ का सम्बन्ध जीवित हो गया ....... बचपन लौट आया ....... अब हमेशा लगेगा कि फेसबुक पर लोगिन नहीं कर रहे हैं वरन अपना जुगनू इन कर रहे हैं.
Ha hA ha Guru Anand aap mujhe kaam ka Ojha mante hain ya naam ka :-0
ReplyDeleteभगवान का धन्यवाद की मैंने बहुत जुगनू देखे हैं और कई बार उनके पीछे भागी भी हूँ. सच कह रहे हैं, आजकल के जेनेरेसन वाले बच्चे क्या जाने...पोस्ट पढकर एक पल पुरानी यादों में चली गयी और वाहन से होते हुए अपने फेसबुक के पेज पर. कुछ ऐसी ही चुहलबाजी हम सब भी करते रहते हैं सारा दिन.
ReplyDeletebahut badhiyan sir. Theek kaha apney ei yani ki emitional intelligence aj sabsey badi jaroorat ban gai hai,jis din insaan ye samajh gaya sare problems apney ap hi solve ho jayengey.
ReplyDeletevaha sir!
ReplyDeletewakai kya saafgoi hai sir, aap ki har baat dil ko chhoo jati hai