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7/3/10

''बहुरूपिया'' ब्लॉगर



शोरूम कितना भी शानदार हो लेकिन उसमें माल घटिया हो तो ग्राहक दोबारा नहीं आता. इसी तरह किसी भी ब्लॉग की लोकप्रियता की पहली शर्त है बेहतर कंटेंट. ब्लॉग के टेम्पलेट्स कितने भी आकर्षक हों, उसे कितना भी सजाया गया हो लेकिन अगर कंटेंट अच्छा नहीं है तो रीडर फिर उस ब्लॉग पर नहीं लौटता. लेकिन अगर ब्यूटी बिद ब्रेन हो यानी अच्छे कंटेंट के साथ प्रेजेंटेशन भी ाूबसूरत हो तो सोने पे सुहागा. इस लिए आज रंगरूप और बहुरूपिया ब्लॉगर्स पर चर्चा हो जाए. आपके शहर के अच्छे पेट्रोल पंप पर तेल और हवा के साथ यूजिक और ठंडे पानी की भी व्यवस्था होती है और पलक झपकते ही कोई लडक़ा आपकी कार पर डस्टर फेर देता है. अब तो बड़े पेट्रोल पंप पर स्टोर और फास्टफूड ज्वाइंट्स भी होते हैं. जमाना प्रजेंटेशन का हो तो ब्लॉगर्स पीछे कैसे रह सकते हैं. जब कोई ब्लॉग जगत में कदम रखता है तो वो बच्चा ब्लॉगर होता. लेकिन बहुत जल्दी ही वो बड़ा और फिर सयाना हो जाता है. वो प्रेजेंटेशन का तरीका सीख जाता है. पब्लिसिटी और प्रमोशन के फंडे भी उसे धीरे-धीरे मालूम पड़ते जाते हैं. इसी लिए हिन्दी ब्लॉग्स की तीन कैटेगरी दिखाई देती हैं- मैनेज्ड, मनपसंद और मस्त.
मैनेज्ड ब्लॉग वो होते हैं जो जितना लिखते हैं उससे ज्यादा उसका ढिंढोरा पीटते हैं. ब्लॉग पर चि_ïाजगत, इंडली ब्लॉगवाणी, ट्विटर, फेसबुक और ना जाने कौन-कौन से एग्रीगेटर और लिंक का जाल फैला रहता है. कई ब्लॉग पर तो इतने आइकॉन चस्पा रहते हैं कि खोपड़ी घूम जाती है कि क्या-क्या देखें. फालोवर्स और पंसदीदा ब्लॉग की सूची तो आम हंै. लेकिन कुछ ब्लॉग पर इतने मीटर और घ्डिय़ां लगे रहते हैं कि लगता है ब्लॉग नहीं किसी हवाई जहाज के कॉकपिट में बैठे हों. रीडर असली पोस्ट भूल जाता है और गली पकड़ कर कहीं का कहीं पहुंच जाता है.
मनपसंद ब्लॉग वो होते हैं जिनके तामझाम कम होता है. टेम्पलेट साफ सुथरे होते हैं और कंटेंट बढिय़ा होता है. लिखने की एक खास शैली होती है. पढऩे वाला उसका मुरीद हो जाता है. ब्लॉग्स की एक और कैटेगरी होती है जिसे हम कहते हैं मस्त. ये ऐसे ब्लॉग हैं जो आपको चौंकाते हैं. इसके कंटेंट को किसी एक शैली या कैटेगरी में नही बांधा जा सकता. ये कभी ह्यूमर, कभी सरोकार तो कभी संजीदगी से भरे होते हैं. कुछ भी लिख देने वाले ये मस्त ब्लॉगर हैं जिन्हें रीडर इग्नोर नहीं कर सकते.
लेकिन बहुरूपिया ब्लॉगर भी कमाल के हैं. यानी प्रोफाइल और फोटो दख उनकी थाह नही पाई जा सकती. कोई अपनी फोटो की जगह गोभी का फूल लगाए हुए है तो किसी ने किसी हीरोइन की फोटो चेंप रखी है. कुछ तो बुढ़ा चले हैं लेकिन जवानी की फोटो लगा रखी है. एक महिला ब्लॉगर ने तो अपनी ऐसी फोटो लगाई है जैसे इंटरनेशनल मॉडल हों लेकिन ऑरकुट पर उनकी एलबम देखने पर पता चलता कि अब तो बहुत मोटी हो चली हैं. पे्रजेंटेशन के जमाने में ये सब करना ही पड़ता है. लेकिन शोरूम का शीशा चमकाते समय भीतर के माल पर भी ध्यान देना जरूरी है नहीं तो ग्राहक, माफ कीजिए रीडर दोबारा नहीं आएगा.

14 comments:

  1. wow! Ojha ji kya minute observation hai....khoob pakdi hai blogger ki nas...Yes agreed to you. content matters. By the way which kind blogger I'm :-)

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  2. Ha ha ha, parametre is there so you decide :-)

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  3. bada hi diplomatic jawab diya aapne....Now I understood ...blogger should be diplomatic and politic too up to some extend

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  4. bahut badhiya, ekdum thik kaha aapne

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  5. बिना बेहतर कटेंट के गुजारा नहीं है. सही कहा आपने.

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  6. कुछ ब्लॉगर ऐसे हैं जिन्हें आक के फूल गोभी के फूल नज़र आते है।
    :)
    एक सचाई यह भी है कि बहुत से अच्छे कंटेंट वाले ब्लॉगों पर लोग पहुँच ही नहीं पाते। एग्रीगेटरों की भूमिका इसीलिए महत्त्वपूर्ण है।

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  7. अरे ओझा जी !
    दो साल पहले चेपें होते तो .....बढ़िया उदाहरण अपना था |
    हँस रहा हूँ ....अपने आप पर ....और आपकी पोस्ट पर !
    समय समय की बात है भैया ......

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  8. ारे भाई क्या करें अब बूढे हो गये तो क्या फोटो लगाने पर भी पाबंदी है क्या? फोटो देख कर ही ब्लाग पर जाते हैं लोग? मगर अपनी तो 2 साल ही पुरानी है हा हा हा। मस्त पोस्ट। शुभकामनायें

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  9. सत्य वचन.
    कबीरा तेरे देश में भाँती भाँती के लोग.

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  10. 'लेकिन कुछ ब्लॉग पर इतने मीटर और घ्डिय़ां लगे रहते हैं कि लगता है ब्लॉग नहीं किसी हवाई जहाज के कॉकपिट में बैठे हों. रीडर असली पोस्ट भूल जाता है और गली पकड़ कर कहीं का कहीं पहुंच जाता है.' hahaha badhia likha...to chacha kahan pahunchey???

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  11. बहुत बढ़िया !
    गज़ब का सत्य लिखते हो यार ! शुभकामनायें !!

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  12. लम्बा चलने के लिये गुणवत्ता बनाये रखना आवश्यक है ।

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