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6/6/10

‘जहर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा’



लोगों को सिगरेट पर सिगरेट फूंकता देख बशीर बद्र का ये शेर बरबस याद आने लगता है-
‘मैं खुदा का नाम लेकर पी रहा हूं दोस्तों,
जहर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा’

दवा कितनी है ये तो पता नहीं लेकिन टोबैको के अर्ज के मर्ज में लोगों की जिंदगी तेजी से खर्च हो रही है. लेकिन वो नहीं सुधरेंगे. ऐसे लोगों को आगाह करने के लिए ही पिछले मंडे को वल्र्ड नो टोबैको डे मनाया गया. कुछ साल पहले तक कुछ गिनेचुने ‘डे’ होते थे. जैसे इंडिपेंडेंस डे, रिपब्लिक डे, टीचर्स डे और मे डे. लेकिन अब महीने में दो-तीन बार कोई ना कोई ‘डे’ मना ही लिया जाता है. कोई भी डे क्यों मनाया जाता है? सब के कारण अलग-अलग हैं. किसी बड़ी ऐतिहासिक घटना या महापुरुष के जन्मदिन या फिर किसी बड़ी समस्या या बीमारी के खिलाफ अभियान और अवेयरनेस के लिए खास ‘डे’ मनाया जाता है. बहुत सारे ‘डे’ तो यह बताने के लिए मनाए जाते हैं कि संभल जाइए वरना आपके डेज पूरे होने जा रहे हैं. लेकिन कुछ ‘डे’ ये बताने के लिए भी मनाए जाते हैं कि डोन्ट वरी, रोजी डेज आर अहेड. जैसे वैलेंटाइन्स डे, फ्रेंडशिप डे, चाकलेट डे वगैरह. कोई डे ना हो तो जब मन करे हॉलीडे मना लेना चाहिए.
डेज कोई भी हों, ये सब की सेहत की बेहतरी के लिए होते हैं. ये डेज किसी ना किसी रूप में इंसपायर करते हैं. कोई शक नहीं की टोबैको सेहत को तबाह कर देता है. फिर, सिगरेट के कश में ऐसी कौन सी कशिश है कि लोग जानते हुए भी कश पर कश खीचते हुए हर फिक्र को धुंए में उड़ाते चलते हैं. लेकिन ये धुंआ तो सदियों से उड़ाया जा रहा है. राजा-महराजा के जमाने में भी तम्बाकू की तलब लगती थी. तब लोग चिलम और स्टाइलिश हुक्का गुडग़ुड़ाते थे. हुक्का हैसियत और सोशल एक्सेप्टबिलिटी का प्रतीक था. तभी तो बात-बात पर हुक्का-पानी बंद करने की धमकी दी जाती थी. उस समय सगरेट नहीं था. हां, हुक्के की बहन बीड़ी जरूर मौजूद थी लेकिन तब भी उसे बहुत डाउन मार्केट ही समझा जाता था. भला हो गुलजार जी और मार्डन इंटलेक्चुअल्स का जिन्होंने कारपोरेट कल्चर में बीड़ी का बेड़ा गर्क होने से बचाए रखा है. गुलजार जी ने बीड़ी जलइ ले...गाना क्या लिखा लोगों के जिगर में सुलग रही चिंगारी आग की तरह धधक उठी. यंगस्टर्स तो सिगरेट भी बीड़ी जलइले के तर्ज पर ही सुलगाते हैं. लेकिन मार्डन सोसाइटी में बीड़ी दो ‘एक्स्ट्रीम’ पर ही सुलगती दिखती है. एक बिल्कुल डाउन मार्केट मजदूर और लेबर तबका में और दूसरा बिल्कुल हाई इंटलेक्चुअल्स में. इनमें रंगकर्मी, आर्टिस्ट, क्रिटिक या सोशल एक्टिविस्ट्स कोई भी हो सकता है. किसी ने बताया कि हाई सोसाइटी में ‘समथिंग डिफरेंट’ के बहाने कुछ लोग ‘बीड़ी जलइले’ की तर्ज पर बीड़ी फूकतेे हुए जताने की कोशिश करते हैं कि उनके जिगर में कितनी आग है.
वैसे इंटलेक्चुअल्स हों या कॉमनमैन, मोटर मैकेनिक हो या मैनेजमेंट गुरू, थोड़ी सी माथा-पच्ची करते ही उनकी बाडी में निकोटीन की अर्ज बढ़ जाती है. और अर्ज पूरा करने का फर्ज तो निभना ही पड़ेगा. इसके लिए कोई सिगरेट सुलगाता है, कोई पानमसाला फांकता है तो कोई मुंह में खैनी दबा लेता है. सवाल उठता है कि निकोटीन की अर्ज पैदा होने की नौबत आती ही क्यों है? कई चेन स्मोकर्स और खैनीबाजों से बात की कि गुरू ये लत लगी कैसे? सब आहें भरते बताते हैं कि शुरूआत तो शौकिया की थी. किसी ने स्टाइल मारने के लिए, किसी ने गल्र्स को इंप्रेस करने के लिए तो किसी ने माचो लुक के लिए सिगरेट सुलगाई थी. कुछ लोगों ने टाइमपास के लिए तम्बाकू का पाउच मुंह में रखा था तो कुछ ने टेंशन रिलीज करने के लिए. टेंशन कितनी दूर हुई ये तो पता नहीं लेकिन निकोटीन की अर्ज पूरी ना होने पर उनका टेंशन जरूर बढ़ जाता है. अर्ज का मर्ज कहीं इतना ना बढ़ जाए कि टाइमपास के चक्कर में हार्ट बाइपास की नौबत आ जाए. सो टोबैको छोडऩे में क्या हर्ज है.

12 comments:

  1. जानकारी भरी रोचक प्रस्तुति ......शुक्रिया !

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  2. अर्ज का मर्ज कहीं इतना ना बढ़ जाए कि टाइमपास के चक्कर में हार्ट बाइपास की नौबत आ जाए...काश!! ये सार समझ आ जाये!!


    बहुत बढ़िया पोस्ट!!

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  3. bilkul ji khule aam law ka infringement ho raha hai.....Lekin jo nahi peete wo bhi ho jaate hain shikaar bimaari ka....time pass karke bahut log pass bhi ho jaate hain

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  4. पिछले कुछ सालों में इस लत को लोग छोड़ रहे हैं. हमारे ऑफिस में ही कितने ही प्राउड चेन स्मोकर्स ने इस चेन से अपने को आजाद कर लिया है. आपके लेख इसे और गति देगे. आदर.

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  5. उम्दा पोस्ट.
    हम भी भयंकर पनखब्बू हैं. तीन दांत उखड चुके ..हर बार दांत उखड वाते वक्त कहा कि अब बस.. अब नहीं खाएंगे. जब ठीक हो गया तो फिर से पान घुलाना शुरू.
    आप लोगों ने डरा-डरा कर मजा किरकिरा कर दिया है ..! छूटता तो है नहीं बस भय बन गया जेहन में.

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  6. शरीर के लिये सेहत से बड़ा कोई स्वाद नहीं ।

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  7. kash ki logon ko ye samajh a jata ki koshishen hi kamyabi ki or kadam badhati hain. Insaan drindh sankalp ke sath koshish karey to kya nahi ho sakta

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  8. जहर भी अगर इसमें होगा दवा हो जाएगा ...
    पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए ...
    फिर भी ...
    अर्ज का मर्ज कहीं इतना ना बढ़ जाए कि टाइमपास के चक्कर में हार्ट बाइपास की नौबत आ जाए. सो टोबैको छोडऩे में क्या हर्ज है. ..

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  9. पीने में क्या मजा है ये तो पीने वाले ही बता सकते हैं. हम आप क्या जाने ! :)

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