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5/7/10
कान पर जूं
आप कैसे अपेक्षा कर लेते हैं कि अधिकारियों के कान पर जूं रेंगेगी. मेरे भी कान पर कमबख्त जूं नहीं रेंगी तो नहीं रेंगी. जब खूब घने बाल थे तब भी और अब जब चांद की ओर बढऩे की तैयारी है तब भी. जब खोपड़ी में जूं नहीं है तो कान पर रेंगने का सवाल ही नहीं उठता. लेकिन पब्लिक है कि बिना चेक किए कि किसी अधिकारी के सिर में जूं है या नही, अपेक्षा करने लगती हैं कि बात-बात पर उनके कान पर जूं रेंगे. अब जूं तो उड़ती नहीं कि जहां अधिकारी दिखा उड़ कर उसके कान पर रेंगने लगे. वैसे उड़ती तो छिपकली भी नहीं लेकिन एक- दो बार मेरे जूं विहीन सिर पर लैंड कर चुकी है. किसी ने कहा अपशकुन है तो किसी ने कहा ये राजयोग के लक्षण हैं. राजपाट तो मिला नहीं बाल जरूर कम हो गए. वैसे जब घने बाल थे तब भी जूं नहीं पड़ी और मैं जूं बिनवाने के सुख से हमेशा वंचित रहा. एक दो बार सिर में जूं होने का स्वांग किया लेकिन नियमित जूं बिनवाने कभी सफल नहीं हुआ. क्योंकि पारखी लोग लीक (जूं के अंडे) और डैंड्रफ में फर्क आसानी से कर लेते हैं.
जब हम लोग छोटे थे तो बालों में जूं होना (खास कर लड़कियों के) आम बात थी. जूं बीनने का बाकायदा एक सेशन होता था. ये सामाजिकता का प्रतीक था. दिन में जब भी महिलाएं थोड़ी फुरसत में होती तो, एक-दूसरे की जूं बीनने में जुट जातीं. उसमें बहुत धैर्य और एकाग्रता की जरूरत होती थी. जूं खोज-बीन सेशन का अंत ‘ककवा’ फेरने के साथ होता था. ये जूं कैप्चर करने वाली एक खास किस्म की बारीक कंघी होती है. हमारे तरफ उसे ‘ककवा’ कहा जाता है. हाट-बाजार में तो लकड़ी का भी ककवा मिलता है. इस ‘ककवा’ में खोपड़ी को छील देने की क्षमता होती है. एक बार मैं भी खोपड़ी पर ककवा चलवा चुका हूं. फिर कान पकड़ लिया.
जूं पर सिर्फ लड़कियों का एकाधिकार नहीं है. कुछ लीचड़ किस्म के लडक़ों के बालों में भी जूं रेंगती है लेकिन पता नहीं किस बेवकूफ ने कान पर जूं नहीं रेंगने का मुहावरा इजाद किया था. नीले सियार की तरह भला कौन जूं चाहेगी कि वह बालों के घने झुरमुट से निकल कर कान पर रेंगने लगे और आप उसे पट से मार दें. लेकिन कुछ ना कुछ पेंच है जरूर. बिना उड़े और बिना रेंगे जूं एक खोपड़ी से दूसरी खोपड़ी में कैसे ट्रांसफर हो जाती है. ये आज भी रहस्य है. ये भी रहस्य है कि महिला अधिकारी हो या पुरुष, सिर में झौवा भर जूं हो तब भी कान पर जूं नहीं रेंगती. आपको कभी किसी अधिकारी के कान पर जूं रेंगती मिल जाए तो बताइयेगा, ब्रेकिंग न्यूज चला दूंगा.
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इस रचना का सहज हास्य मन को गुदगुदा देता है। आपके पास हास्य चित्रण की कला है। बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteha ha ha
ReplyDeletesahi he bhai
ब्रेकिंग न्यूज में जगह पाने को तो शायद कुछ अधिकारी जूं खरीद कर रेंगवा लें! :)
ReplyDeleteहा हा!! बात सही और मजेदार है.इसी बहाने ककवा की याद आ गई.
ReplyDeleteमाँ ने बहुत सारे ककवा तोड़ डाले मेरे बालों में! मेरे चलते घर में सभी के बालों में जूं आ जाती थी, सभी दुखी! लेकिन सन्डे के सन्डे "मेडीकेयर" ने कुछ राहत दी!
ReplyDelete@चचा - कहीं आप चचा का ककवा न ठेल बैठें :)
मजा आ गया सर ................. अब नाक पर मक्खी बैठने पर भी कुछ लिख डालिए . .................... ऐसा ही कुछ बेहतरीन. ............ इंतज़ार रहेगा .
ReplyDelete.................. आनंद्कामनाएं
ककवा में छील देने की क्षमता होती है: ककवा ना हुआ चार फारवा हर (हल) हो गया :)
ReplyDeleteHa ha ha....what a observation...Mazedaar post hain
ReplyDeletewah ustad wah kya badiya vyang hai ,
ReplyDeletemagar breaking news itnee assani say nahi meelegi.
आजकल यूं भी कमबख्त शैम्पू कंडीशनर जूं को जीने नहीं देते. इंडेंजर्ड स्पीश हो गयी है.
ReplyDeleteहा हा!! बात मजेदार है
ReplyDeleteजूँ पुराण बढ़िया रहा ...
ReplyDeleteअचानक एक बात दिमाग में आई की हमारे यहाँ की जूएँ काली होती हैं, फिर इन गोरी मेमो की जूएँ किस रंग की होती होंगी?
ReplyDeleteऔर हाँ, जूं के परिवार के सदस्य के नाम इस प्रकार है - जूं, किलनी (बेबी जूं) और लीख (जूं के अंडे)
Ha Ha Ha, Stuti rangbhed ki baaten karna mana hai :)
ReplyDeleteab bhala adhikariyon aur bhrasht netaon ke kaan par joon kaise rengegi sir, akhir ye sabhi ek hi prajati ke hain aur khoon choos kar hi to zinda hain :)
ReplyDeleteमजेदार . जूँ की जूँ ।
ReplyDeleteशोध कराकर देख लीजिए, जूं मारने की दवा बेचने वाले ने ही कहावत बनायी होगी.बेहद मजेदार रचना.
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