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11/27/09

नाट्य रूपांतर 26/11



हम... हम... सिर्फ हम! सबसे पहले, सबसे बेहतर, सबसे तेज. तुम कौन? अच्छा तुम्हारा कोई अपना शहीद हो गया था 26/11 को. चच्च... अफसोस की बात है...लेकिन मैं बता दूं कि सबसे पहले ये खबर मेरे चैनल ने ब्रेक की थी कि ये आतंकी हमला है. एक साल हो गए 26/11 को. जख्म गहरे हैं. जिनके अपने मारे गए उनके लिए भी और जिन्होंने देखा और सुना उनके लिए भी. लेकिन कुछ लोग इस दिन भी नौटंकी से बाज नहीं आए. कुछ अलग, कुछ हटके नहीं दिखाया तो टीआरपी गई. टीआरपी गई तो नौकरी गई...भोंडा, हास्यास्पद, नाट्य रूपांतर कुछ भी दिखाओ. स्टेज पर रिपोर्टर बात कर रहे हैं...यार याद है ना उस दिन यहीं हम लोग मोर्चा लिए हुए थे तभी दो गोली कान के बगल से निकल गई और दीवार से टन्न से टकराई...अरे मैं तो और भी बाल बाल बचा... एक गोली मेरी टांगों के बीच से निकल कर डिवाइडर से टकराई..तब मुझे अहसास हुआ कि मेरी टांगों का डिवाइडर कितना साफ बचा है. ..एक मिनट आपको रोकना चाहूंगा...एक अहम खुलासा.. इस समय मैं जिस सड़क पर आगे बढ़ रहा हूं एक साल पहले कसाब और उसका साथी यहीं से गूजरे थे. ग्रेनेड और एम्युनिशन के अलावा कसाब के बैग में पिश्ता-बादाम और चिलगोजे भी थे. ये जानकारी सिर्फ हमारे चैनल के पास है...
तभी दूसरे चैनल में रनिंग कमेंट्री शुरू हो जाती है..एक कंट्रोल रूम में कंप्यूटर के सामने वाकी टाकी लेकर थर्ड अंपायर की मुद्रा में बैठे तीन चार दढिय़ल. जबरिया कश्मीरी, पंजाबी एक्सेंट में हुक्म देते हुए..बोलें जनाब... क्या कहा कमांडो...करें करें...क्या करें चचा...फायर करें...मेरे बच्चे अपने को बचाओ...जो भी सामने आए खतम कर दो...ग्रेनेड फेकें...अच्छा अच्छा.. मैंने सोचा ग्रनेड बचा के वापस लाने हैं...चिलगोजे और पिश्ते खाते रहें..ताकत बचा के रखनी है...लेकिन चचा उसके पहले गोली खा गए तो? ..तो जन्नत मिलेगी मेरे बच्चे...अब दो तरफ से फायर आ रहा है...ग्रेनेड से जवाब दें...जनाब मुश्किल आ रही है...एक ही बैग में ग्रेनेड और चिलगोजे नहीं रखवाने थे. ग्रेनेड की जगह पिश्ते आ रहे हैं, जनाब मैंने तो हड़बड़ी में दीवार पर मुट्ठी भर पिश्ता दे मारा..कोई बात नहीं मारें-मारें सब को मारें...तड़ तड़ तड़...!
अब और नहीं..एनफ इज एनफ...मैं...अमिताभ बच्चन...मैं रजा मुराद...और मैं एक आम आदमी...आइए वापस चलते हैं स्टूडियो. अगले साल फिर मिलेंगे इसी चैनल पर इसी समय..कही जाइएगा नहीं..
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8 comments:

  1. तो अगले साल फिर कुछ इसी तरह की घटना की प्रतीक्षा में ...??
    तीखा व्यंग्य .....!!

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  2. इन चैनलों की रोजी रोटी का सवाल है! अन्यथा इस अवसर पर पिछले साल जो पोस्ट हमने ठेली थी, वह या उस जैसी पोस्ट ठेलने का मन ही नहीं कर रहा!
    मोमबत्तियां जलाऊ फिर आयेंगे अगली साल!

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  3. mast hai mast...aaj dikhi full form apki chacha...

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  4. आप की यह पोस्ट सचमुच मुझे दु:खी कर गई है। आगे क्या लिखूँ- आप के मिजाज को शायद पसन्द न आए।
    जिन्दगी ऐब्सर्डिटी का ही नाम है। किसी को पोस्ट देखने का निमंत्रण तो नहीं दिया लेकिन कभी फुरसत में आस पास बिखरी ऐब्सर्डिटी पर मेरी किस्तों में कविता - नरक के रस्ते देखिएगा।

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  5. @गिरिजेश राव: Maine bhi dukhi hokar hi likha hai..aur doosaron ki pasand na pasand me uljhenge to kuch nahi kah payenge...

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  6. क्या व्यंग है!!!!!!!!

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  7. aapney sach likha, electronic media kay news chanel kee khabray dekh kar aisa lagta hai kee media wale har waqat aisee khabar kay intjar may rahtey hai kee kab kuch durghatna ho aur hum first aa jaye

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