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2/16/11

‘आओ फिर से खेलें ..’



वैसे तो फरवरी पढ़ाई का महीना होता है. एग्जाम सिर पर होते हैं. लेकिन मौसम के लिहाज से फरवरी बोले तो फन. फरवरी में आता है बसन्त और बौर. इसी महीने वैलेन्टाइन्स डे भी पड़ता है. इस खुशनुमा मौसम में एक अजीब सी खुशबू रहती है कुछ-कुछ शरारती कुछ-कुछ संजीदा, कभी उमंग तो कभी उचाट सा रहता है मन. आइए बसन्त और बाबा वैलेंटाइन के मौसम में एक नए और नॉटी ब्लॉगर की
बहकी-बहकी बातों का मजा लें। इन नए ब्लॉगरों में अच्छी बात होती है कि ये अपनी बात बिना किसी लाग-लपेट के कहते हैं. इनकी पोस्ट कैम्पस की शरारतों का अहसास कराती हैं तो कभी चंद लाइनों में इतने गहरे अर्थ छिपे होते हैं कि विश्वास ही नहीं होता कि ये लोग जिंदगी और रिश्तों के बारे में इतनी संजीदगी से भी सोचते हैं. इनके ब्लॉग का नाम है नीम चढ़ा. करैला वाला नीम चढ़ा नहीं. जो ब्लॉगर ने अपना नाम बताने में नखरा करें उसे उन्हें नकचढ़ा ही तो कहेंगे. जनाब ने ब्लॉग में अपना नाम लिखा है एच2एसओ4. वैसे इनका असली नाम है गौरव आसरी और भाई साहब कुछ दिन पहले तक आरजे थे अब फिर से स्टूडेंट बन गए हैं. ब्लॉगरी में ये अभी नए हैं, चंद पोस्ट ही हैं इनके शो-रूम में. लेकिन हर पोस्ट का अलग ही फ्लेवर. एच2एसओ4 की कई पोस्ट तो सिर्फ चार लाइन की हैं लेकिन वो दूसरों की चालीस लाइनों पर भारी हैं.
ऐसी ही एक पोस्ट है ‘हॉर्न ओके टाटा प्लीज’. इसमें एक
फोटो और चार लाइन की फाइंडिग्स ने बड़े-बड़े सर्वे की वॉट
लगा दी है. कुछ यूं हैं ये लाइंस...‘एक हजार लड़कियों पर रिसर्च
करने के बाद मेरी आखें इस निष्कर्ष पर पहुंची हैं कि 90 प्रतिशत
लड़कियां सिर्फ पीछे से अच्छी लगती हैं. और उन 90 प्रतिशत में से भी
केवल 30 प्रतिशत ही उम्मीदों पर खरी उतरती हैं, यानी आगे से
अच्छी निकलती हैं...’
असके ठीक उलट एक पोस्ट है ‘आओ फिर से खेलें ’. छोटी सी इस पोस्ट में समुन्दर सी गहराई
है. कहानी अंग्रेज के साथ खेलते एक कुत्ते से शुरू होती है...‘ये मेरे इंस्टीट्यूट में पढ़ता है. नहीं कुत्ता नहीं, ये अंग्रेज. ये पालतू नहीं है. नहीं अंग्रेज नहीं कुत्ता. पर ये बड़ा मस्त कुत्ता है. इस फोटो में ये अंग्रेज के खेल रहा है. शायद इस लिए कि इसे बात करने के लिए भाषा की जरूरत नहीं पड़ती. अंग्रेज एक लकड़ी फेंक रहा था, कुत्ता उसे मुंह में उठा कर ला रहा था...इस कुत्ते के सामने आप जो भी फेंको ये तुरन्त उसे मुंह में उठा कर ले आता है. और आपके पास आकर जिद करेगा कि फिर से फेंको. ये आपके साथ खेलते रहना चाहता है. अगर आपका मूड नही है खेलने का तो ये बुरा नहीं मानता. चुपचाप चला जाता है. अगले दिन फिर ये आपसे उसी तरह प्यार से मिलेगा. ये आपकी नाराजगी या डांट याद नहीं रखता, प्यार याद रखता है। हम ऐसा नहीं कर पाते. किसी के मुंह से एक बार कुछ निकल जाए, तो उसे कभी नहीं भूलते ...उदास रहते हैं, दुखी भी रहते हैं, कभी उस से फिर से जाकर नहीं कह पाते, ‘आओ फिर से खेलें..’ कुछ समझ आया, नहीं? तो क्लिक करें neemchadha.blogspot.कॉम

3 comments:

  1. .

    बहुत सुन्दर प्रसंग ! सरलता और सादगी का संदेश देती बेहतरीन प्रस्तुति ।

    लेबल में लिखा है एक हज़ार लड़कियों पर रिसर्च । कुछ समझ नहीं आया लेख और लेबल में समन्वय । कृपया स्पष्ट करें ।

    .

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  2. पर मुँह से निकल जाना खलता है।

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  3. Naye blogger ki nadani se uska blog hi delete ho gaya.. revive karne ki koshish kar raha hai baechara ;(..

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