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3/4/11

लॉयलटी टेस्ट

सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी...सच है दुनियावालों कि हम हैं आनाड़ी....आजकल दुनियादारों के बीच तो पता ही नहीं चलता कि कौन 'अनाड़ी' है और कौन 'खिलाड़ी'- जिसकी लॉयलटी पर शक किया जा रहा है वो या जो शक कर रहा है वो. सोसायटी में लॉयलटी का संकट आजकल कुछ ज्यादा ही है. रिश्तों पर शक, अपनोंंपर शक, प्यार पर शक और यार पर शक. पार्टनर बहुत प्यार उड़ेले तो शक, कटा-कटा रहे तो शक. तभी तो जिसे देखो वही अपने पार्टनर की लॉयलटी को लेकर सशंकित है. दरअसल ये संकट तो हमारा ही खड़ा किया हुआ है. किसी की जिन क्वॉलिटीज को देख हम फटाफट अट्रैक्ट हो जाते हैं, वो क्वालिटीज दूसरों का भी तो आकर्षित कर सकती हैं. अगर वो आपकी लॉयलटी टेस्ट में फेल हो जाता है तो उसका क्या कसूर. आप भी फेल तो हो सकते हैं. 'प्लांड' लायलटी टेस्ट में भला कौन पास हुआ है. हम चाहते हैं कि टेस्ट के पैरामीटर्स हमारे लिए अलग हों और साथी के लिए अलग हों. लड़का है तो उसे खूबसूरत स्मार्ट लड़की चाहिए और लड़की है तो उसका पार्टनर हैंडसम होना चाहिए. 'एक्स फैक्टर' उन्हें करीब लाता है. इसके बाद शुरू होती हैं 'कमिटेड', 'इन रिलेशनशिप' और 'लिव-इन' की स्टेज. कुछ, दिन कुछ महीने या कुछ कुछ साल रिश्ता ठीक ठाक चलता है. फिर वही 'एक्स फैक्टर' प्राब्लम खड़ी करने लगता है. अट्रैक्टशन अब इरिटेट करने लगता है. अचानक हम पज़ेसिव हो जाते हैं. अपने साथी पर कंडीशंस थोपने की कोशिश करने लगते हैं. अब उसका बनठन कर निकलना अखरने लगता है. हम उस पर शक करने लगते हैं. तब शुरू होता है इमोशनल अत्याचार का सिलसिला. क्या है ये इमोशनल अत्याचार?
एक-दूसरे के प्रति इमोशनल कम्पैटबिलटी या अटैचमेंट ना होते ही भी संबंधों को ढोना इमोशनल अत्याचार की कटैगिरी में आता है. किसी भी रिलेशनशिप की शुरुआत अक्सर फिजिकल अट्रैक्शन से होती है. लेकिन कोई रिश्ता तभी परवान चढ़ता है जब पार्टनर्स इमोशनली कम्पैटबल हों. क्योंकि समय बीतने के साथ धीरे-धीरे फिजिकल अट्रैक्शन की जगह इमोशनल अटैचमेंट लेने लगता है. इसमें फेल होने के बावजूद रिश्तों को निभाते जाना ही इमोशनल अत्याचार है. पार्टनर के प्रति मन में शक पैदा हो गया तो समझिए हो गई इस अत्याचार की शुरुआत. फिर लॉयलटी टेस्ट में पास-फेल का कोई मतलब नहीं रह जाता.
आजकल एक टीवी शो में ये टेस्ट बड़ा पॉपुलर है. इस टेस्ट में लड़के हों या लड़कियां, 99 परसेंट लोग फेल हो जाते हैं. सिविल सर्विसेज एग्जाम क्वालिफाई करना आसान है लेकिन लॉयलिटी टेस्ट...तौबा-तौबा. ऐसा इम्तहान जिसमें पास ना करने वाला तो पछताता है ही लेकिन पास होने वाले पर भी सवाल खड़े हो ही जाते हैं कि अरे, यंग एज में साधुओं जैसा व्यवहार, सब ठीक ठाक तो है? ये लॉयलटी टेस्ट एक सेट फारमेट और कंडीशन में किए जाते हैं. यू कहिए कि एक खास तरह की सिचुएशन क्रिएट की जाती है और उसमें 'सब्जेक्ट' को परखा जाता है. 'सब्जेक्ट' यंग होते हैं. अंडरकवर ऐजेंट के रूप में कोई अट्रैक्टिव गर्ल रंभा बन कर 'सब्जेक्ट' को रिझाती है या हैंडसम ब्वॉय 'कामदेव' बन कर सामने खड़ा जाता है. ऐसे में पास होने का संभावना न के बराबर रहती है. क्योंकि इस तरह के लायलटी टेस्ट में भी फिजिक्स और केमिस्ट्र के ही फर्मूले लागू होते हैं. यंगस्टर्स जिनमें हारमोनल चेंजेज उफान पर हों वो भला अपोजिट सेक्स के प्रति क्यों नहीं अट्रैकट होगा, खास कर फेवरेबल कंडीशंस में. ये कंडीशंस नेचुरल हों या क्रिएट की हुई, रिजलट तो सेम होगा. जैसे एच2एसओ4 यानी सल्फ्यूरिक एसिड के दरिया में कूद कर शीतल सरोवर का एहसास कैसे संभव है. इसी तरह अगर कोई टीनएजर इस टेस्ट में साधुओं जैसा व्यवहार करे तो लोग कहेंगे कि यार उसमें केमिल लोचा है. क्योंकि नार्मल केमिस्ट्री तो आपको अपोजिट सेक्स के प्रति अटै्रक्ट करेती है. पहली नजर में जो जैसा होता है अक्सर वो वैसा होता नहीं. इसके लिए कुछ महीने या साल नहीं कुछ दिन में ही असलियत सामने आ जाती है.
हाल ही में एक ऐसे साथी के साथ हफ्ते भर होटल रूम शेयर किया जिससे पहले कभी नहीं मिला था. उसको पहले दिन जैसा समझा था वो सातवें दिन तक कुछ और निकला. पहली मुलाकात में लगा कि वाह, ये तो ब्राडेंड चीजों को पसंद करने वाला एक स्मार्ट स्टायलिश युवा है. वो एक दो-दिन थोड़ा संकोच में था. फिर धीरे धीरे खुला. रात में वो रोज एमटीवी पर रोडीज जरूर देखता. मोटा नहीं था फिर भी रुक-रुक कर खर्राटे लगाता. मेरी नींद खुल जाती तो उसकी नाक में तकिए का कोना डालना पड़ता. पांच मिनट के लिए खर्राटे बे्रक होते तब तक मैं सो जाता. हालांकि उसने भी मेरे ऊपर खर्राटे का इल्जाम लगाया. ये इल्जाम और भी लोग लगा चुके हैं. मेरी नींद कुत्तों की तरह कच्ची है तभी तो कभी-कभी अपने ही खर्राटे से ही खुल जाती है.
बनारसी गंगा स्नान के शौकीन होते हैं लेकिन 7 दिन में उसे नहाने का उपक्रम करते नहीं देखा. वो काम तो बढिय़ा करता था लेकिन थकता जल्दी था. जब तक रूम पर रहता तो वो टीवी देखने में थक जाता और थोड़ी देर आराम करता. फिर नाश्ता करने में थकता और आराम करता, खाना खाने में थकता और आराम करता, थोड़ा आराम करने के बाद थक जाता तो फिर आराम करने लगता. ..उसे देख कर पहले दिन ऐसा नहीं लगा था.
सो इस लॉयलटी टेस्ट-वेस्ट से कुछ पता नहीं चलता. बस अपने पर भरोसा रखिए और इन लाइनों को याद रखें..
...साथ सफर में इतना ही सही,
मिल ही जाएंगे फिर हमसफर
तुम ना मिले कोई और सही.
(जैसा आई नेक्स्ट में लिखा )

7 comments:

  1. बहुत ही कठिन टेस्ट है, बिरले ही पास होते हैं।

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  2. hahaha,,,,, bahut khub bade bhai

    मेरी नींद कुत्तों की तरह कच्ची है तभी तो कभी-कभी अपने ही खर्राटे से ही खुल जाती है

    maza aa gaya

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  3. विचारोत्तेजक आलेख।

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  4. लॉयल्टि टेस्ट से कुछ पता नहीं चलता , खुद में हो तो इस टेस्ट की जरुरत क्या !

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  5. apne khraaton se kisi ki neend khulte pahli baar suna !! hahahah.. loyalty test k mai bilkul favor me hun ..kyunki isi se pata chalta hai ki favorable conditions k baad bhi koi apne pe kitna control kar sakta hai ..

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  6. i knw the banarsi babu whom you are talking about

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  7. plz koi mera bhi loyalty test karwao , test ke bahane hi sahi H2SO4 me kudne ka mauka to mile .... varna to ye zindagi nirmal jal ki sheetalta me hi bitne vali hai shayad .....

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