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1/14/09

बहाने खुश होने के


बहुत दिन हो गए हो गए फीलगुड का जिक्र नहीं हुआ। इस लिए इस पर बात करनी जरूरी है. केवल खुश होने के लिए ख्याली फीलगुड नहीं, वास्तव में गुड-गुड फील करने के कुछ वैलिड रीजंस हैं. रेसेशन या इकोनॉमिक स्लोडाउन के बीच कई ऐसे मौके आए जब हमे खुश होना चाहिए था लेकिन फीलगुड का हमें एहसास नहीं हुआ. उस पर चर्चा भी नहीं हुई. पेट्रोल के दाम घटे, देश की प्रमुख एअरलाइंस ने एअर फेयर घटाने की घोषणा की, बैंको ने होमलोन्स सस्ते किए, बिल्डंग मटीरियल्स सस्ते हुए, यहां तक कि कारें भी सस्ती हो गईं. आजकल होटल्स में भी मारा-मारी नहीं है. उनमें आधे दामों पर रुका जा सकता है. अब फिर खबर गर्म है कि तेल के दाम एक बार और कम हो सकते हैं. यह भी कहा जा रहा है कि रेसेशन की शॉक वेव्स को इंडिया कहीं बेतर ढंग से झेल रहा है. विदेशी कंपनियों को जाने दें, इंडियन कंपनीज में रिट्रेंचमेंट की तलवार कम, रैशनल एक्सपेंडीचर की हवा ज्यादा बह रही है. इंडियन्स मेजोरिटी को अभी भी ट्रेडिशनल सूत्र वाक्य 'सेव समथिंग फार हार्ड टाइम्स याद है लेकिन वे इस हार्ड अन्र्ड मनी से एंज्वाय करना भी खूब जानते हैं. फील लगुड का एक और बड़ा कारण है- इंडियंस में सेविंग टेंडेंसी के एनकरेजिंग आंकड़े. शेयर मार्केट भले ही क्रैश कर गए हों लेकिन पोस्ट ऑफिसों और बैंकों के आंकड़े बताते हैं कि आम इंडियंस ने सेविंग ग्राफ को बढ़ाया ही है. ये आंकड़े मेट्रोज के नहीं बल्कि मीडियम साइज और स्मॉल सिटीज के हैं. वे एक तरफ सुरक्षित भविष्य के लिए मनी सेव कर रहे हैं रहे और इस मनी से सेलिब्रेट भी कर रहे हैं. गौर करने की बात है कि लोग अब सेविंग करने के साथ खर्च करने के गुर और बेहतर ढंग से सीख गए हैं. शहरों के लोगों का मूलमंत्र है कि जम कर सेव करो और और खुल कर सेलिब्रेट करो. लोगों ने प्रापर्टी, गोल्ड, म्युचअल फंड, बैंक एफडी, पीपीएफ एकाउंट में जमकर इन्वेस्टमेंट किया है और कर रहे हैं. इन सब सेविंग टेंडेंसीज के बावजदू क्लब, रिसार्ट, वीकेंड पार्टी और और लग्जरी कारें भी इनकी लाइफ स्टाइल का हिस्सा हैं. आम शहरी का रुझान अभी भी कम मुनाफे वाले लेकिन सेफ इनवेंस्टमेंट की ओर है. इसी लिए इनके सेविंग आप्शन डायवर्सिफाइड हैं. से सब पैसा शेयरों, म्यूचुअलफंड, डाकघर या बैंकों में नहीं डालते. लोगों ने थोड़ी थोड़ी पूंजी इनमें लगा रखी है. इससे रिस्क फैक्टर कम हो जाता है. इसी लिए तो मंदी में आम इंडियन मस्त नहीं तो त्रस्त भी नहीं है. क्या यह फीलगुड नहीं? और अगर आप शेयर में कुछ लगाने ही चाहते हैं तो इससे बेहतर मौका फिर नहीं मिलेगा. इस समय कुछ बहुत बड़ी और अच्छी कंपनियों के शेयर उनकी भौतिक परिसंपदा के मूल्य से भी कम मूल्य पर उपलब्ध हैं. इनवेस्टमेंट का ऐसा मौका कम ही मिलता है.

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