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11/27/09

कुछ जज्बात जंगली से!


कुछ जज्बात जंगली से!
चलिए आज आपको सच का सामना कराते हैं झूठ की स्टाइल में. मैं आज आप से एक शर्त लगाता हूं. आपने अब तक कम से कम एक हजार बार झूठ जरूर बोला होगा, छोटा या बड़ा और आपकी लाइफ में हजार बातें ऐसी होंगी जिसे आप आजीवन किसी से शेयर नही करेंगे, अपने डियरेस्ट और नियरेस्ट से भी नहीं. ये झूठ-सच किसी पाप या अपराध की श्रेणी में नहीं आते. इनको शेयर ना करने से किसी का भी नुकसान नहीं. ये हमारी लाइफ के ऐसे छिपे ट्रेजर हैं जो हमें डिप्रेशन और लोनलीनेस से बचाते हैं. ये कभी खुशनुमा एहसास हैं, कभी मुस्कान हैं, कभी मीठी चुभन हैं, कभी अधूरे अरमान हैं और कभी बस ऐसी यादे हैं जो हमें एनर्जी से भर देती हैं और एहसास कराती हैं कि जिंदगी का सफर अभी जारी है.

ढेर सारे सच और उन्हें छिपाने के लिए बोला गया झूठ हमारे जीवन की ऐसी हिडेन फाइल्स हैं जो सामने आ जाएं तो हो सकता है हंगामा खड़ा हो जाए और ये भी हो सकता है कि बेस्ट सेलर बन जाएं. आप ही बताएं बेस्ट सेलर क्या होता है? कुछ ऐसा जो हर पढऩे वाले को अपना लगे. उसे लगे कि अरे...ये तो मेरी कहानी है, ऐसा तो मैंने भी किया है, ऐसा तो मेरे साथ भी हुआ है. किसी भी किताब के ऑथर को किताब लिखते समय क्या पता होता है कि वो धमाल मचा देगी. कभी कोई कांट्रोवर्शियल बात, कोई रहस्योद्घाटन, कोई सच या कोई फैंटसी किसी बायोग्राफी, नॉवेल या बुक को बेस्टसेलर बना देती है.


हमेशा कहा जाता कि सच का सामना करो, सच बोलो लेकिन अप्रिय सच मत बोलो. तो क्या झूठ बोलो, प्रिय झूठ बोला? थोड़ा दार्शनिक अंदाज में कहें तो सच का वजूद ही झूठ पर टिका है जैसे अंधेरे के बिना प्रकाश का वजूद नहीं है. गम है तभी खुशियों का मतलब है.
शरारत के बिना शराफत को एक्स्प्लेन नहीं किया जा सकता. बचपन में ही क्यों इंसान तो जिंदगी भर शरारत करता रहता है, बचपन में खुलेआम तो बड़े होने पर चोरी छिपे या शराफत से. जरा याद कीजिए, आप अब भी ऐसे छोटे-मोटे झूठ जरूर बोलते होंगे, बेवजह. उससे ना उससे आपको कोई फायदा हुआ ना दूसरे को कोई नुकसान. लेकिन कई ऐसे मौके भी आए होंगे जब आप सच बोलते तो आपको या किसी दूसरे को नुकसान हो जाता. सो ऐसा झूठ बोलने में मेरे हिसाब से कोई हर्ज नहीं है जो प्रिय है और उससे किसी का नुकसान नहीं होता. याद कीजिए किसी डिसट्रेस्ड की काउंसिलिंग के समय या किसी परेशान को ढ़ाढस बंधाते समय हम कई बार ऐसे झूठ का सहारा लेते हैं, कभी किसी को ट्रॉमा से उबारने के लिए झूठा दिलासा देते हैं. और तो और हम कभी कभी अपनेआप से झूठ बोलते हैं. ऐसा करते समय हम अक्सर फैंटसी की दुनिया में चले जाते हैं उन सपनों को पूरा करने जो रीयल लाइफ में पूरे होते नहीं लगते. कुछ ऐसे सवाल होते हैं जिसका जवाब इमैजिनेटिव वल्र्ड में ही पाया जा सकता है. तो आइए इस संडे थोड़ी शरारत हो जाए लेकिन शराफत से.


पहले आपकी हिडेन फाइल्स से झेड़छाड़ करते हैं. आपको पता है कि उन फाइलों को हैक करना सबसे आसान है जो आपने अपने मन की हार्ड डिस्क में छिपा कर या सहेज कर रखी हैं. वैसे इनका पासवर्ड एक की होता है-कुछ कुछ होता है. एडॉलिसेंस, टीन एज, ग्रोनअप एज और उसके बाद की उम्र में भी हमें कुछ-कुछ होता रहता है और हम सब कुछ ना कुछ करते हैं. ये सब गुड ब्वॉय और गल्र्स ने भी किया है और बैड गॉइज और रोडीज तो करते ही हैं. स्कूल, कालेज, यूनिवर्सिटी कैंपस और फिर वर्किंग प्लेस हर जगह लोग बड़े चाव से अपने या अपने किसी साथी के बारे में बताते फिरते हैं कि कितने अफेयर्स थे, मैंने कितनों के साथ फ्लर्ट किया है, कितनों के साथ स्टडी डेज में 'गोइंग स्टडी' चला है. पिक्चर हॉल में क्या हुआ जब आपको किसी प्रिटीगर्ल के बगल में सीट मिल गई थी, क्या निहायत शरीफ बने बैठे आप के मन में शरारत नहीं सूझ रही थी.
घर में अकेले हों और कोई आ जाए. शालीन, पोलाइट और आइडियल होस्ट बने आपके मन में अचानक वाइल्ड थॉट नहीं आए थे क्या? भले ही आप उस समय उसे दबा ले गए हों और ये भी हो सकता है कि फैंटसी की दुनिया में आपने वो सब किया हो जो उस समय नहीं कर पाए थे. आप लाख ना कहें इसका उत्तर हमें पता है कल्पना लोक में आप जो भी करते हैं, उससे हमें संतुष्टिï मिलती है लेकिन दूसरों को कोई फर्क नहीं पड़ता. अगर ऐसा ना हो तो अराजकता फैल जाए. फैंटसी, समाज को बहुत बड़े संकट से बचाए हुए है. अच्छा पिंकी, प्रियंका, नेहा, प्रिया या सुप्रिया, या आप जो भी हों बताएं, आपको 'वो' अच्छा लगता था ना, 'उसके' बारे में आप ये सब ... सोचतीं हैं ना. आपका भी मन करता है ना शरारत करने को...कभी-कभी फ्लर्ट करने को...एटलीस्ट फैटसी की दुनिया में. अच्छा आपको टाइट जींस और ब्लैक टाप पहनना अच्छा लगता है, क्यों? टीन एज का वो वाकया आप या हम कैसे भूल सकते हैं जब में पड़ोस की ... को देख कुछ हो जाता था. आप कल्पना की दुनिया में क्यों चले जाते थे. उपमन्यु चटर्जी की एक किताब पढ़ी थी - 'इंग्लिश अगस्त, ऐन इंडियन स्टोरी'. किताब के पन्ने पलटते हुए लग रहा था कि ऐसा ही कुछ तो हम भी सोचते हैं और हमारे साथ भी होता है. फिर आपके साथ क्यों नहीं होता होगा.

अगर आप हेल्दी हैं, एनर्जेटिक हैं, आपकी हारमोनल ग्रोथ ठीक है तो अपोजिट सेक्स के प्रति अट्रैक्शन नेचुरल है. याद रखिए इमैजिनेशन, क्रिएशन की नींव है, वाइल्ड इमैजिनेशन भी. अगर ऐसा नहीं होता है तो कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. आपके घर के पास वो शोख लड़की रहती थी ना जिसे आप चुपके से निहारते थे. आपके दोस्तों के बीच रोज उसकी चर्चा भी होती थी ना. आखिर उसमें ऐसा क्या था कि रोज एक से एक मसालेदार किस्से... मोहल्ले की उस 'बब्ली' की चर्चा में वो 'बंटी' भी शामिल थे जिनकी छवि पढऩे वाले राजा बेटा वाली थी. और 'बब्लीÓ भी कभी-कभी मुस्करा देती थी. बाकी काम तो आपके वाइल्ड थॉट्स करते थे. अगर ऐसा ना हो तो सब बावले हो जाएं. सो नो टेंशन सच-झूठ के इस खेल में कितनी ही बातें, कितने ही फसाने हैं, इस शहर में तुम जैसे हजारों हैं.

नाट्य रूपांतर 26/11



हम... हम... सिर्फ हम! सबसे पहले, सबसे बेहतर, सबसे तेज. तुम कौन? अच्छा तुम्हारा कोई अपना शहीद हो गया था 26/11 को. चच्च... अफसोस की बात है...लेकिन मैं बता दूं कि सबसे पहले ये खबर मेरे चैनल ने ब्रेक की थी कि ये आतंकी हमला है. एक साल हो गए 26/11 को. जख्म गहरे हैं. जिनके अपने मारे गए उनके लिए भी और जिन्होंने देखा और सुना उनके लिए भी. लेकिन कुछ लोग इस दिन भी नौटंकी से बाज नहीं आए. कुछ अलग, कुछ हटके नहीं दिखाया तो टीआरपी गई. टीआरपी गई तो नौकरी गई...भोंडा, हास्यास्पद, नाट्य रूपांतर कुछ भी दिखाओ. स्टेज पर रिपोर्टर बात कर रहे हैं...यार याद है ना उस दिन यहीं हम लोग मोर्चा लिए हुए थे तभी दो गोली कान के बगल से निकल गई और दीवार से टन्न से टकराई...अरे मैं तो और भी बाल बाल बचा... एक गोली मेरी टांगों के बीच से निकल कर डिवाइडर से टकराई..तब मुझे अहसास हुआ कि मेरी टांगों का डिवाइडर कितना साफ बचा है. ..एक मिनट आपको रोकना चाहूंगा...एक अहम खुलासा.. इस समय मैं जिस सड़क पर आगे बढ़ रहा हूं एक साल पहले कसाब और उसका साथी यहीं से गूजरे थे. ग्रेनेड और एम्युनिशन के अलावा कसाब के बैग में पिश्ता-बादाम और चिलगोजे भी थे. ये जानकारी सिर्फ हमारे चैनल के पास है...
तभी दूसरे चैनल में रनिंग कमेंट्री शुरू हो जाती है..एक कंट्रोल रूम में कंप्यूटर के सामने वाकी टाकी लेकर थर्ड अंपायर की मुद्रा में बैठे तीन चार दढिय़ल. जबरिया कश्मीरी, पंजाबी एक्सेंट में हुक्म देते हुए..बोलें जनाब... क्या कहा कमांडो...करें करें...क्या करें चचा...फायर करें...मेरे बच्चे अपने को बचाओ...जो भी सामने आए खतम कर दो...ग्रेनेड फेकें...अच्छा अच्छा.. मैंने सोचा ग्रनेड बचा के वापस लाने हैं...चिलगोजे और पिश्ते खाते रहें..ताकत बचा के रखनी है...लेकिन चचा उसके पहले गोली खा गए तो? ..तो जन्नत मिलेगी मेरे बच्चे...अब दो तरफ से फायर आ रहा है...ग्रेनेड से जवाब दें...जनाब मुश्किल आ रही है...एक ही बैग में ग्रेनेड और चिलगोजे नहीं रखवाने थे. ग्रेनेड की जगह पिश्ते आ रहे हैं, जनाब मैंने तो हड़बड़ी में दीवार पर मुट्ठी भर पिश्ता दे मारा..कोई बात नहीं मारें-मारें सब को मारें...तड़ तड़ तड़...!
अब और नहीं..एनफ इज एनफ...मैं...अमिताभ बच्चन...मैं रजा मुराद...और मैं एक आम आदमी...आइए वापस चलते हैं स्टूडियो. अगले साल फिर मिलेंगे इसी चैनल पर इसी समय..कही जाइएगा नहीं..
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