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1/16/09

सोमालिया के पाइरेट्स

बचपन में सिंदबाद द सेलर और फैंटम के ढेर सारे कॉमिक्स पढ़े थे, समुद्री लुटेरों की अनगिनत कहानियां पढ़ी थी. इनके कैरेक्टर फैसिनेट करते थे. एक था रेडबीयर्ड, दूसरा था एक आंख वाला लुटेरा जो बैसाखी से चलता था और उसके कंधे पर एक तोता बैठा रहता था. इनमें फैंटसी थी, रोमांच था और पढऩे वाला था कल्पनालोक के महासागर में गोते लगाने लगता था. इन फैक्ट एक समुद्री पोत पर पाइरेट्स के हमले के बाद ही 'फैंटमÓ कैरेक्टर का जन्म हुआ था कभी यह सबकुछ कितना फैंटास्टिक था लेकिन अब फीयरफुल नाइटमेयर साबित हो रहा है. हाईसीज का जिक्र आते ही एक अनजान सा खौफ घेर लेता है. उन परिवारों से पूछिये जिनके घर का कोई सदस्य महासागर में किसी शिप पर सवार होता है. जब तक वह सकुशल घर नहीं लौट आता, घर वालों को ठीक से नीद नहीं आती. यह स्थिति पैदा हुई है समुद्री आतंकवाद की बढ़ती घटनाओं के कारण. इस वर्ष अभी तक अदन की खाड़ी और आसपास मालवाहक शिप्स पर अब तक करीब सौ हमले हो चुुके हैं. कभी खबर आती है कि किसी कार्गो शिप या आयल टैंकर को पाइरेट्स ने हाईजैक कर लिया और उसके क्रू को बंधक बना लिया. फिर खबर आती है कि लुटेरों ने बड़े रैन्सम की डिमांड की है. उनसे निगोशिएट करने में हफ्तों बीत जाते हैं. तब तक बंधकों के परिजनों की धड़क़ने बढ़ी रहती हैं. इन लुटेरों के चंगुल में इंडियन भी आ रहे हैं और दूसरे देशों के नागरिक भी. ये समुद्री लुटेरे नहीं हैं बिल्क यह हाईसीज में उभरते आतंकवाद का नया चेहरा है और इसके निशाने पर कोई खास देश नहीं बल्कि हर वो शिप है जो अनप्रोटक्टेड है. केवल इंडिया ही नहीं दूसरे देशों को भी इस समस्या ने परेशान कर रखा है और इनसे निपटना अकेले इंडिया के वश की बात भी नहीं है. अब सवाल उठता है कि इस समस्या के पनपने का कारण क्या है इससे कैसे निपटा जाए. दरअसल पाइरेट्स का बहुत बड़ा ग्रुप अदन की खड़ी में आपरेट कर रहा है. क्लाशनिकोव, हैंडग्रनेड, एमएमजी, आरपीजी जैसे घातक हथियारों से लैस ये लुटेरे फास्ट स्पीड बोट्स पर सवार रहते हैं और कोई टैंकर या बड़े कार्गो शिप की तलाश में रहेते हैं. चूंकि बड़े पोत ज्यादा स्पीड मेें नहीं चल सकतेइस लिए इनकी बोट्स पलक झपकते ही वहां तक पहुच जाती हैं. अपहरण के बाद ये लुटेरे करोड़ों की फिरौती मांगते हैं. इनके अड्डे सोमालिया में हैं. सोमालिया में अराजकता का राज है. वहां कोई कोई सक्षम सरकार नहीं है. ऐसे में इस समस्या से निपटने में वहां की सरकार से भी मदद नहीं मिल पा रही है. कुछ दिनों पहले इंडियन नेवी के आईएनएस तबर ने पाइरेट्स के एक मदर बोट को डुबो दिया था. फिर भी इनके हौसले पस्त नहीं हुए. अब फिर तीन भारतीयोंं को बंधक बनाए जाने की खबर है. इंडियन नेवी ने दूसरे देशों की नौ सेना से सहयोग की अपील की है. पाइरेट्स की एक-दो बोट डुबो देने से या कुछ लुटेरों को पकड़ लेने भर से समस्या का हल निकने वाला नहीं. जरूरत देशों के बीच बेहतर कोआर्डिनेशन और कम्बाइंड आपरेशन की है.

आह और आउच्

हंगामा है क्यूं बरपा थोड़ी सी जो सर्दी है. लेकिन लोग खा-म-खां शोर मचा रहे हैं. जिस मुद्दे और जिस प्रॉब्लम को लेकर शोर मचाना चाहिए था, उस पर कोई नहीं बोलता और जिसका स्वागत होना चाहिए था उसे लेकर आह और आउच् सुनाई पड़ रहा है. ठंड न पड़े तो आफत और ठंड पड़े तो आफत. ठंड हर साल पड़ती है, हर बार कुछ दिन के लिए कोहरा लेकर आती है, हर बार कोल्ड वेव का दौर आता है और हर बार लोगों को दौरा पड़ता है शोर मचाने का. इस बार भी कुछ नया नहीं हो रहा, कुछ अनोखा नहीं हो रहा. नार्दर्न इंडिया में दिसंबर के लास्ट वीक से मकर संक्रांति तक कड़ाके की ठंड पड़ती है. इस बार उतनी नहीं पड़ी. थोड़ी ठंड और पडऩी चाहिए थी. एक-दो दिन थोड़ी ठंड और कोहरा क्या पड़ गया, लगा जैसे लोगों पर बर्फ का पहाड़ टूट पड़ा हो. अब इसमें मौसम विभाग क्या करे, रेलवे और एविएशन वाले क्या करें और कितना करें. सवाल उठता है कि इस सिचुएशन के लिए हम कितने प्रिपेयर्ड हैं, प्लानिंग और एग्जीक्यूशन, दोनों लेवल पर. कई बार खबरें आ चुकी हैं कि रेलवे ऐसे डिवाइस डेवलप कर रहा है जिसमें फॉग में भी सिंग्नल बेहतर दिखाई देेगा. इसी तरह एअरपोट्र्स को ऐसे इक्यूपमेंट्स और डिवाइसेस से लैस किया जा रहा है जिससे धुंध में भी प्लेन आसानी से लैंड कर सकेंगे. लेकिन ये सब उपाय एक लिमिट तक ही कारगर होते हैं. डेंस फॉग में जब विजिबिलटी बहुत कम हो जाती है तो इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं होता. इसका कारण अनप्रेडिक्टेबल मौसम ही है. इस समय मौसम ऐसा ही रहता है, यह हमें पता है तो इसके एकॉर्डिंग हम अपनी ट्रवेल क्यूं नहीं प्लान कर सकते. हां, कहीं अचानक जाना पड़ जाए तो बात अलग है. लेकिन उसमें भी मौसम का अंदाजा लगा हम अपने ट्रवेल शेड्यूल को मॉडीफाई कर सकते हैं. जिस ट्रेन से हम जा रहे हैं और उसी ट्रेन से लौटना है, अप-डाउन दोनों टे्रनें घंटों लेट हैं तो कैसे एक्सपेक्ट किया जा सकता है कि लौटते समय ट्रेन राइट टाइम होगी. लाख डिसटर्बेंस के बावजूद नेचर अभी तक हम पर मेहरबान है इसके लिए में उसका शुक्रगुजार होना चाहिए. कुछ देर से और कुछ दिन के लिए ही सही कड़ाके की ठंड पड़ रही है, पहाड़ों पर बर्फ गिर रही है. मनाइए कि पहाड़ों पर और बर्फ गिरे. अगर कड़ाके की ठंड नहीं पड़ी पहाड़ों पर जोरदार बर्फबारी नहीं हुई तो असली आफत तो ठंड जाने के बाद आएगी. जब पहाड़ों पर बर्फ नहीं रहेगी, ग्लेशियर नहीं रहेंगे तो नदियों में पानी कहां से आएगा. कहीं पढ़ा था कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर अब पहले से ज्यादा नंगी चट्टाने नजर आने लगी हैं. ज्यादा ऊंचाई वाले इलाकों में मौसम ज्यादा तेजी से बदला है. इस लिए दुआ कीजिए कि इन दिनों खूब बर्फ गिरे तभी साल के बाकी दिनों हम सुकून से रह सकेंगे. बर्फ के पहाड़ टूटते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब हमारे ऊपर आफत के पहाड़ टूट पड़ेंगे.
रेटिंग का है ज़माना


कुछ साल पहले तक न टीआरपी का नाम सुना था और न ही पता था कि यह क्या बला है. अब बात बात पर इसका जिक्र होता है क्योंकि आजकल रेटिंग का जमाना है. सफलता-असफलता, पॉपुलैरिटी, पॉवर, इमेज, क्वालिटी, सब का आकलन रेटिंग से होता है. इलेक्ट्रानिक सामान हो या चैनल, सबसे पहले ध्यान उसकी रेटिंग पर जाता. नई मूवी रिलीज होते ही सबसे पहले लोग उसकी स्टार रेटिंग पर नजर डालते हैं. आजकल तो इंसानों की भी रेटिंग होने लगी है. हां, इसका पैमाना थोड़ा अलग है. इंसान की रेटिंग खासतौर से दशहरा, दीवाली, ईद, क्रिसमस, न्यू इयर या बर्थडे पर नापी जाती हैं. अगर आपके पास कार्ड्स, कैलेंडर, डायरी, गिफ्ट, मेल और मैसेज ज्यादा आते हैं तो समझ लीजिए कि आप अच्छी पोजीशन पर हैं, एटलीस्ट लोगों की नजर में. इत्तफाक से कुछ दिन पहले ही न्यू ईयर में प्रवेश किया है. इसी बहाने अपनी रेटिंग (सोकॉल्ड) का भी अंदाज लगाने की कोशिश की. और रेटिंग मीटर अभी भी एक्टिव है. हालांकि मंदी, रेसेशन के चलते इस बार रेटिंग मीटर ग्राफ के केवल दो पिलर- मेल और मैसेज ही आसमान छू रहे हैं. डायरी, कैलेंडर और काड्र्स का ग्राफ काफी नीचे है. मंदी की मार में कॉस्ट कटिंग और 'हींग न फिटकिरी और रंग चोखाÓ का फारमूला सबसे चोखा है. तो आप भी मेल और मैसेज के आधार पर अपनी रेटिंग कर सकते हैं कि आप कितने पावरफुल और पॉपुलर हैं.

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