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1/7/09

ऐसी ही होती हैं बेटियां

ऐसी ही होती हैं बेटियां

फ्राइडे को टीवी के प्राइम टाइम पर यूं ही चैनलों के बीच टहल रहा था. टॉप चैनल्स पर टॉप क्लास के सीरियल्स और रियलिटी शोज कहीं बालिका वधू, कहीं कहीं जुनून, कहीं इंडियन आइडल तो कहीं एक खिलाड़ी एक हसीना, किसी चैनल पर वायस आफ इंडिया चल रहा था, किसी पर सारेगामापा की तरंगें थीं, तो कहीं बिग बॉस का जलवा. प्राइम टाइम में सभी चैनल्स अपना बेस्ट झोंक देते हैं. इसलिए इन शो की टाइमिंग एक होती है या उनमें ओवरलैपिंग होती. एक ही समय में उन सभी शोज को इंज्वॉय करना अपने में चुनौती है. इसमें महारत या तो मुझे हासिल है या मेरी छोटी बेटी को. मेरी बेटी तो रोज ही परिवार की नजरें बचा कर रिमोट को चैनल्स पर एक-दो बार भांज देती है. हां, मैं यह काम सिर्फ फ्राइडे को ही कर पाता हूं क्योंकि उस दिन मेरा संडे होता है यानी वीकिली ऑफ। सो आफ के दिन प्राइम टाइम में एक चैनल पर रियलिटी शो में टॉप contestant चार लड़कियों को देख रुक गया। एक अच्छी सी लड़की अच्छा सा गाना गा रही थी. वह मध्य प्रदेश के छोटे शहर रीवां से थी. उसने गजब के confidence के साथ कहा, टैलेंट है तो फर्क नही पड़ता कि वह छोटे शहर से है या बड़े. दूसरी टॉप contestant यूपी के फैजाबाद से थी. उसने भी बड़े गर्व से कहा, रियलिटी शो में इस बार लड़की ही होगी चैंपियन, व्हाई शुड ब्वाय हैव आल द फन? मजा आ गया, लगा कि आजकल ऐसी ही होती हैं बेटियां. कभी तितलियों सी, कभी नटखट गुडिय़ों सी, कभी छुईमुई की पत्तियों सी तो कभी शैतान दोस्त और कभी गंभीर स्त्रियों सी लगती हैं बेटियां। परिवार का स्पंदन और रिश्तों का बंधन होती हैं बेटियां। मुझे न जाने क्यों अच्छी लगती हैं बेटियां। लोगों को बोझ लगती होंगी, मुझे तो भीनी- भीनी सुगंध सी लगती हैं बेटियां।

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