सल्लू की फिल्म जय हो देखी । बड़ा हल्ला मचा रखा था। बिजनेस चाहे जैसा करे लेकिन फिल्म ने भेजा फ्राई कर दिया । रजनीकांत सर जब थोड़ा और बूढ़ा होने पर येड़ा हो जाएंगे तो वो जैसे रोल करेंगे वैसा सल्लू ने इस फिल्म में किया है। सीमेंट वालों को अपने विज्ञापन में हाथी की जगह सलमान को रख लेना चाहिए। अपनी खोपड़ी से कुछ फोड़ पाएं या ना फोड़ पाएं लेकिन खोपड़ी सलामत रहेगी।
फिल्म देख्र कर लगा कि साला सेंसर बोर्ड वाला भी सटक गया है। लगता है वहां भी जेन-एक्स वालों का बोलबाला है। ये लोग सेक्स और सब्जी में कोई फर्क नहीं करते। तभी तो छोटे चूहे वाला लौंडा पूरी फिल्म में मम्मी जैसी लडक़ी की कच्छी का रंग बताता घूम रहा है। यहां फिल्म समीक्षा नहीं हो रही, मुद्दा कच्छी का है। चूहे वाले लौंडे की उम्र को हमने पटरे वाली जांघिया पहन कर बिताया । ढीली ढाली और इतनी हवादार कि कभी कभी भीतर कुछ ना पहनने का अहसास होता था। पता ही नहीं चला कब पटरे वाली जांघिया विंटेज कारों की तरह धरोहर बन गई। उसकी जगह स्लीक, स्मार्ट कच्छियों ने ले ली। सच बताऊं शुरू में छोटी वाली कच्छी पहनने में शर्म महसूस होती थी। लगता था कि इसे तो लड़कियां पहनती हेंैं। किसी ने बताया, अबे ये तो फ्रेंची हैै, लड़कियां जो पहनती उसे पैंटी कहते हैं। लगता है छोटी चड्ढी सबसे पहले फ्रेंच लोग पहनते होंगे तभी इसका नाम फ्रेंची पड़ा। अब से मैं फ्रेंच भाइयों को छोटे चूहे वाला कहूंगा।
कच्छी बाबा की जय.. कच्छी बाबा की .........
ReplyDeleteहा हा हा । करारा व्यंग्य। मेरी बत्तीसी बाहर आ गई। व्यंग्य विधा की सफलता भी इसी में निहित है कि पढ़ने वाले की बत्तीसी होठों से बाहर आ जाए। छोटे चूहे वाला लौंडा । आ हा हा । क्या बात है। ऊ पटरे वाला जांघिया अपन भी पहने हैं , इक्का दुक्का। एयर सर्कुलेशन और एयर कंडीशन जैसे पैमानों पर एकदम खरा है । चूहों को नागवार गुज़रा कि 'शिकारी' पटरा पहन पर पटरी पर आए , सो उन्होंने कतर दिया । अगले दिन एक-एक कतरन लिए दुनिया के सभी तरह के चूहों को कोस रहा था ।
ReplyDeleteचूहा कितना भी छोटा क्यों ना हो, कॉन्फिडेंस गज़ब का है...
ReplyDeleteजय हिंद...
ऐसी ग़ज़ब की धुलाई करनी थी तो कहानी क्यों रखी थी।
ReplyDeleteहा हा हा । करारा व्यंग्य
ReplyDeletevery nice post.
ReplyDeletevery nice post
ReplyDeletenice post sir
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