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9/13/19

गणपति बाप्पा मोरया, अपना चूहा लेता जा…!

गणपति बाप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ….इस उद्घोष के साथ गुरूवार 12 सितम्बर को गणपति प्रतिमा का विसर्जन धूमधाम से हुआ। लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि मुझे कहना पड़ा- गणपति बाप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ लेकिन अपना चूहा तो लेता जा…! गणपति का वाहन चूहा है, यह सब जानते हैं।
घर में चूहा या चुहिया दिखना कोई खबर नहीं होती। गणेशोत्सव के दौरान भी दिखते हैं। घर में यदाकदा दिखने वाले चूहों को चूहेदानी में फंसा कर दूसरी गली में छोड़ने, पेस्टीसाइड या रैट-किल से टपका कर छुटकारा पाने का आम चलन है।
वैसे जीव प्रेमियों के लिए आजकल रैटपैड भी लोकप्रिय है जिसमें चूहे चिपक जाते लेकिन मरते नही। उन्हें आप कहीं दूर जाकर लकड़ी की डंडी से छुड़ाकर फेक आते हैं। मेरे घर में भी यही परम्परा चली आ रही थी। घर में जीव हिंसा निषेध क़ानून लागू है। लेकिन कुछ दिन पहले अचानक कुछ ऐसा हुआ कि घर में चूहा दिखना सामान्य घटना नहीं रह गयी।
अब चूहा दिखते ही आपातकाल लागू हो जाता है। कश्मीर के आपरेशन आलआउट की तर्ज़ पर ऑपरेशन चूहा शुरू हो जाता है और तबतक जारी रहता है जब तक उसका सफाया न हो जाये या उसे घर के बहार न खदेड़ दिया जाये। घरों में चूहों और चुहिया लोगों का आना जाना तो लगा ही रहता है।
कुछ दिन पहले भी घर में एक मोटा “मूस” ( मोटा चूहा जो रेलवे स्टेशन की पटरियों के नीचे पाया जाता) किचन की पाइप से घुस आया था क्योंकि सिंक की जाली फिक्स नहीं थी। एक दो दिन उसकी खटर पटर जारी रही। हम लोग इग्नोर करते रहे कि चला जायेगा अपनेआप।
लेकिन फिर एक दिन तडके करीब साढ़े तीन बजे गहरी नींद में था अचानक पैर की उंगली में तेज दर्द हुआ, नीद खुल गई। हडबडा के उठ बैठा। लाइट जला देखा कि पैर में अंगूठे की बगल वाली उंगली से खून निकला रहा था। समझते देर न लगी कि उसी कमीने चूहे ने बाईट ली है, क्योंकि ऐसा सुना नहीं कि सांप तीसरी मंजिल तक चढ़कर काटते हैं।
तभी एक खरगोश टाइप “मूस” आलमारी के नीचे से निकल कर दूसरे कमरे में जाता दिखा। पूरे घर में जाग हो गयी। तुरंत ऑपरेशन चूहा शूरू हुआ, जो करीब आधे घंटे तक जारी रहा जबतक चूहा घर के बाहर नहीं खदेड़ दिया गया। उस दिन ऑफिस में बताया तो साथी हंसने लगे एक ने सलाह दी कि जंगली चूहे ने डसा है इस लिए ATS की मदद लेनी पड़ेगी।
मैंने कहा, अबे चूहा था आतंकी नहीं। बतया गया ATS मतलब टिटनेस का इंजेक्शन। सो डॉक्टर के पास पहुंचा। डाक्टर ने पूछा जमीन पर सोये थे क्या। नहीं डॉक्टर, कमीने ने बाकायदे बेड पर चढ़ कर उंगली चबाई है। डाक्टर बोला चूहा जंगली था सो रैबीज के चार इंजेक्शन लगेंगे जो कुत्तों के काटने पर लगते हैं। चार इंजेक्शन की प्रक्रिया एक माह में पूरी हुई। हाइड्रोफोबिया (रैबीज से होने वाली बीमारी) तो नहीं हुआ लेकिन तब से चूहाफोबिया जरूर हो गया है।
रा खट-पट हुई नहीं कि चूहे की आशंका से नींद उड़ जाती है। इस बीच गणेश प्रतिमा विसर्जन की रात किचन में करीब साढ़े दस बजे चूहा देखे जाने की ब्रेकिंग न्यूज़ आई। फिर शुरू हुआ ऑपरेशन “मूस”। दोनों कमरे बंद कर दिए गए। घर का मुख्य द्वार खुला रखा गया। फिर किचन में चूहे की खोज शुरू हुई। लेकिन करीब 20 मिनट तक सन्नाटा, कोई सुराग नहीं लग रहा था।
चूहा दम साधे कहीं दुबका था। तभी खिड़की के शीशे और जाली के बीच कमीना नजर आ गया। बड़ी चतुराई से जाली के सहारा लम्बवत खड़ा था। जाला मारने वाले डंडे से शीशा ठोंकते ही वह कुलांचे मारता हुआ किचन से निकला और पलक झपकते ही मुख्यद्वार से फरार हो गया।सब ने राहत की सांस ली। इस तरह ऑपरेशन चूहा कम्प्लीट हुआ। मैंने गणपति बाप्पा का नमन किया कि अगले बरस तू जरूर आ लेकिन फिलहाल अपनी सवारी तो लेता जा….!

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