दरअसल तेंदुआ सदमें में है। उसे शहर में इतने घटिया ट्रीटमेंट की उम्मीद नहीं थी। मान लीजिए शहर घूमने का मन हो ही गया तो इसमें मजमा लगाने जैसा क्या है। लोग कामधाम छोड़ कर तमाशा देखने लगे। एक तो मजा ले रही भीड़ और ऊपर से एक्सपर्ट शिकारी की जगह लाठी-डंडे से लैस सिपाही और होमगार्ड भेज दिए स्थिति संभालने के लिए। जैसे तेंदुआ ना होकर आंदोलित आंगनबाड़ी कार्यकर्ता या दिहाड़ी संविदा कर्मी हो कि जब चाहो लाठिया दो।
तेंदुए ने नहीं सोचा था कि शहर में जंगली जानवरों के साथ सडक़ छाप कुत्तों जैसा ट्रीटमेंट होता है। वैसे तो वो चुपचाप निकलने के फिराक में था लेकिन सामने डंडायुक्त पुलिस देखकर उसे तैश आ गया और उसने पुलिस वालों को लगा दिए दो-तीन लप्पड़। छुपते छिपाते वो मॉल के बेसमेंट में इंतजार कर रहा था कि टीवी चैनल वाले उसकी बाइट लेने जरूर आएंगे। पहले शहर से जंगल लौटे उसके एक साथी ने बताया था कि लकड़ी गोदाम में छिपे होने के बावजूद टीवी चैनल वाले उसके पास बाइट लेने पहुंच गए थे। बड़े तेज हैं, ये चैनल वाले, कहीं भी छिपो खोज निकालते हैं। इसी चक्कर में वो रात भर पॉश एरिया में टहलता रहा लेकिन जब चैनल वाले नहीं आए तो जंगल लौट गया। अगले दिन पता चला कि उसके लप्पड़ का व्यापक असर हुआ था और सेना बुलानी ली गई थी। जहां पहले दिन तमाशाइयों का मजमा था वहां अखबारों में कफ्र्यू जैसे सन्नाटे की फोटो छपी थी। उसे अफसोस हुआ कि नाहक जल्दबाजी की, शहर में एक-दो दिन और रुक जाना था। तेंदुआ फिलहाल जंगल में है। उसे इंतजार है कि कोई चैनल वाला उसकी बाइट लेने आए तो वो बताए कि उसका अगला कदम क्या होगा।