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5/1/10

...तुम्हारी याद सताती है



चलिए आज फॉरेन घूम आएं. लेकिन यहां फॉरेन की कार, कंपनीं, गेम और मेम का जिक्र नहीं करने जा रहा. एक समय था जब फॉरेन की कारें और फॉरेन रिटर्न लोगों का इंडिया में बड़ा क्रेज था. विदेश से आए लेटर्स को भी लोग सहेज कर रखते थे. जब छुट्टियों में विदेशी इंडियन अपने गंाव-देश आते तो सब पढ़े लिखे लोग उनसे ठेठ अंग्रेजी में ही बात करने की कोशिश करते भले ही विदेशी हिन्दुस्तानी बाबू उनका अवधी या भोजपुरी में जवाब देते हों. भला हो इस इंटरनेट और मोबाइल का, जिसने अंग्रेजी का इंडियनाइजेशन कर दिया और हिन्दी का वैश्वीकरण. अब तो कोई भी अंग्रेजी में एसएमएस और मेल ठोंके देता है. स्पेलिंग गलत हो तो भी चलेगा क्योंकि माना जाता है कि ये तो नेट या एसएमएस की लैंग्वेज है. नेट ने यूनीकोड के रूप में एक ऐसा शस्त्र दे दिया है कि दुनिया के किसी छोर पर बैठ कर दे दना दन थॉट्स की फायरिंग की जा सकती है. सो भाषा के विस्तार से ब्लॉग और ब्लॉगर कैसे बच सकते हैं.

परदेस में घर की याद ज्यादा सताता है. अपने देश की बातों और यादों से जुड़े रहने का बेहतर माध्यम हैं ब्लॉग्स. तो आज बात होगी फारेन में रह रहेे देसी इंडियन ब्लॉगर्स की. फॉरेन में फर्राटेदार हिन्दी में ब्लॉगिंग कर रहे ढेरों ब्लॉगर हैं. इनमें कोई साइंटिस्ट है कोई सॉफ्टवेयर इंजीनियर, कोई ब्रॉडकास्टिंग से जुड़ा है तो कोई प्रोफेसर है. लेकिन ये लोग अपनी भाषा, माटी और संस्कृति से किस कदर जुड़े हैं इसका अंदाज इनके ब्लॉग्स के कंटेंट पर नजर डालने से लग जाता है. इनमें से कुछ लोग तो अपनी भाषा औैर शब्दों का प्रयोग जिस ठेठ देसी अंदाज में करते हैं उससे तो लगता ही नहीं कि ये सात समुंदर पार बैठे हैं. स्तुति पांडे ऐसी ही ब्लॉगर हैं. उनके ब्लॉग का नाम है भानुमति का पिटारा. पिटारा खोलते ही जब चचुआ, सतुआ, बछिया और मचिया निकलने लगती है तो अपनी माटी की सोंधी खुशबू का एहसास होता है. वो पेशे से सिस्टम एनालिस्ट हैं लेकिन ब्लॉग का फ्लेवर ऐसा कि स्तुति पांडे नही सतुआ पांडे ज्यादा लगती हैं. ओटारियो, कनाडा में बैठे उडऩ तश्तरी यानी समीर लाल की चर्चा भी जरूरी है.
आपको सत्या फिल्म के कल्लू मामा तो याद होंगे. उनकी जो रिस्पेक्ट गैंगस्टर्स के बीच थी वैसी ही रिस्पेक्ट उडऩ तश्तरी की ‘ब्लॉगस्टर्स’ के बीच है. वो अच्छे दोस्त की तरह किसी भी ब्लॉगर को टिपिया देते हैं. अब कनाडा से कोई टिपिया रहा है तो ब्लॉगर दांत चियारेंगे ही. इसी तरह राज भटिया जी बैठे हैं जमर्नी में लेकिन उन्हें देसी हुक्के की याद सताती है. लिस्ट तो लम्बी है फिलहाल यादों का मजा लीजिए.

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