कैसा विरोधाभास है 4जी और 5जी युग में अंधविश्वास लोगों के सर चढ़ बोल रहा है। इस समय उत्तर भारत खासकर उत्तर प्रदेश, हरियाना और पंजाब के ग्रामीण इलाकों में चोटी काटने वाली महिला का खौफ है। आगरा में तो चोटीकटवा महिला के शक में एक वृद्धा को लोगों ने पीटकर मार डाला । वेब और टीवी पत्रकारिता के युग में इस तरह की अफवाह सोशल मीडिया में ईंधन का काम करती हैं। हर दिन नए मामले आ रहे हैं। मीडिया उन्हें चटपटे ढंग से परोस रहा है। ख़ास बात है कि किसी भी मामले में चोटी काटने वाली तथाकथित महिला को पकड़ा नहीं जा सका। छोटी कटाई का शिकार होने वालों में ज्यादातर युवा लडकियां हैं। घटना के बारे में शिकार लड़की को कुछ याद नहीं रहता। बस उसको चोटी कटी मिलती। घटना के कुछ चश्मदीद के अनुसार एक महिला अचानक प्रगट हुई। छोटी काटने के बाद वो बिल्ली बन गयी और खिड़की से कूद कर भाग गयी। चश्मदीद के चेहरे से उसका झूठ साफ़ नजर आ रहा था। लेकिन सावन में मीडिया को ऐसी सनसनीखेज ख़बरें मिलें रहीं हैं तो वो देखा रहा है। कुछ समझदार मीडिया वाले इसे संतुलित ढंग से दिखा रहे और लोगों को समझाने की कोशिश भी कर रहे कि यह अफवाह मानसिक बीमारी की उपज है जिसे आप हिस्टीरिया भी कह सकते हैं। यह समाज में अशिक्षा का भी नतीजा है। कोई अपनी चोटी को बुरी नजर से बचाने के लिए मिर्ची नीम्बू बांध रहा तो कहीं महिलाएं हेल्मेट पहन कर सो रहीं।
अलग अलग रूप में प्रगट होता अंधविश्वास
वैसे तो भूत पिशाच हर काल में चर्चा का विषय रहे हैं। पिछले 17 साल में इसके किरदार नए नए रूप में प्रगट होते रहे हैं। 2001 में दिल्ली और आसपास के क्षेत्र में मंकीमैंन का जलवा कुछ महीनो तक था। वो रात में छत पर, गली में अचानक प्रगट होता और लोगों को नोच कर भाग जाता। शिकार, घटना के बाद लोगों को जख्म दिखात और सब दहशत में आ जाते। रात रात जागते रहो चिल्ला कर पहरा देते। यह सब कुछ महीनो तक चला। मंकीमैंन नहीं पड़ा गया। कुछ दिन बाद वो गायब हो गया । इसके बाद 2002 में मुहंनोचवा उत्तर भारत के ग्रामीण इलाको में प्रगट हुआ। वो लोगों का मुहं नोच भाग जाता था। किसी ने उसे रोबोट की तरह बताया किसी ने उड़नतश्तरी से आया एलियन बताया। कुछ ने कहा उसकी ऑंखें लाल लाल थी और मोटर साइकिल के इंजन की तरह आवाज करता आता था। वह बरसात के मौसम में प्रगट हुआ और दर्जनों का मुंह नोच कर गायब हो गया। तब उसपर गाना भी बना था - लाल लाल चोंचवा से मुह नोच लेई मुंह नोचवा, बच के रहा चाची बच के रहा बचवा। 2-3 महीने सनसनी फैलाने के बाद मुंहनोचवा भी गायब हो गया। अब 2017 में मंकी मैंन या मुंह नोचावा, बाल काटने वाली महिला का रूप धरकर आया है। मीडिया इस अफवाह को सावन में गरम पकोड़े की तरह बेच रहा है। संयोग से इस बार भी बारिश के मौसम में ही चोटी चोर आंटी आई है। देखना है चोटी चोर कितने दिनों तक लोगों की नीद चुराती है ।
चुड़ैल नहीं मास हिस्टीरिया
इस तरह की अफवाह, मानसिक रूप से बीमार लोगों को सबसे पहले चपेट में लेती। हिस्टीरिया और मनोविकार के शिकार लोगों में यह अफवाह तरह तरह का आकर ले कर प्रगट होती रही है। जैसे इस बार चोटी काटने वाली महिला के रूप में। कुछ लोग मीडिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए भी मनगढ़ंत किस्से सुना इस तरह की अफवाह को हवा देते। अब तक न मंकीमैंन पकड़ा गया न मुंहनोचावा, इसी तरह चोटी काटने वाली चुड़ैल भी कभी नहीं पकड़ी जाएगी। कुछ दिनों बाद इस चुड़ैल का गायब होना तय है। लेकिन अफवाह के चक्कर में कुछ निर्दोष लोगों की जान और अमन चैन खतरे में है। यह चिंता का विषय है। दरअसल यह अशिक्षा और विवेकशून्यता का नतीजा है। मीडिया और प्रशासन का फोकस लोगों में जागरूकता बढाने पर होना चाहिए। बेहतर होगा ऐसी अफवाहों की अनदेखी की जाये । जब ऐसी खबर नहीं होगी तो लोगों को हिस्टीरिया के दौरे भी नहीं पड़ेंगे। तब न चोटी कटेगी न चोटी काटनेवाली महिला दिखेगी। इन मामलों में सबसे जरूरी है शिकार लड़की या महिला का मानसिक इलाज क्योंकि छोटी काटने वाली महिला कहीं बहार नहीं उनके अन्दर ही मौजूद है।