
आजकल वॉक का मौसम है. क्रॉनिक वॉकर्स यानी बारहमासी वॉकर्स तो आलू की तरह कहीं भी मिल जाएंगे लेकिन मौसमी वॉकर्स दिसंबर में ज्यादा पाए जाते हैं. सुबह-शाम धुंध के बीच घूमने का मजा ही कुछ और है. वॉक करते समय दूसरे वॉकर्स को वॉच करने में घूमने का मजा बढ़ जाता है. इस बार एक बनारसी अड़ीबाज के ब्लॉग की चर्चा करेंगे. ब्लॉग का नाम है बेचैन आत्मा. रचयिता देवेंद्र पांडे बनारस में रहते हैं. किसी बडे़ शहर के मॉर्निग वॉकर्स और छोटे शहर के वॉकर्स में काफी फर्क होता है. बड़े शहर के वॉकर्स ब्रैंडेड स्पोर्ट्स शूज और ट्रैक सूट में नजर आते हैं, तो छोटे शहरों में पीटी शू, धोती, पजामा, चप्पल कुछ भी पहने नजर आ सकते हैं. तोंदियल वाकर्स दोनों जगह पाए जाते हैं. जो वॉक के बाद अक्सर दही-जलेबी उड़ाते हैं. देवेंद्र की नई पोस्ट मेरी पहली मार्निग वॉकिंग.. में बात हो रही है एक छोटे शहर बस्ती की. देवेंद्र लिखते हैं.छोटे शहरों की एक विशेषता होती है कि आपको कुछ ही दिनों में सभी पहचानने लगते हैं. इस शहर में नौकरीपेशा लोगों के लिए जीवन जीना बड़ा सरल है. 4-5 किमी लम्बी एक ही सड़क में दफ्तर, बच्चों का स्कूल, अस्पताल, सब्जी मार्केट, डाकखाना, बैंक, खेल का मैदान सभी है. एक पत्नी और दो बच्चे हों और घर में टीवी न हो तो कम कमाई में भी जीवन आसानी से कट जाता है. एक दिन कद्दू जैसे पेट वाले वरिष्ठ शर्मा जी मेरे घर पधारे और मॉर्निग वॉक के असंख्य लाभ एक ही सांस में गिनाकर बोले, पांडे जी आप भी मार्निग वॉक किया कीजिए आपका पेट भी सीने के ऊपर फैल रहा है. घबराकर पूछा,सीने के ऊपर फैल रहा है, क्या मतलब? शर्मा जी ने समझाया, सीने के ऊपर पेट निकल जाए तो समझना चाहिए कि आपके शरीर में कई रोगों का स्थाई वास हो चुका है. हार्ट अटैक , शुगर, किडनी फेल होने आदि की प्रबल संभाना हो चुकी है. डरते-डरते पूछा, कब चलना है? शर्मा जी ने कप्तान की तरह हुक्म दिया, कल सुबह ठीक चार बजे हम आपके घर आ जाएंगे.तैयार रहिएगा. आगे क्या हुआ, इसके लिए क्लिक करिए http://devendra-bechainaatma.blogspot.com