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1/25/09

स्लम, शिट, स्मेल...जय हो

क्रिकेट खेलते बच्चे
आई एम प्राउड ऑफ स्लमडॉग मिलिनेयर, जय हो! आई एम प्राउड आफ इंडियन सिनेमा, जय हो! एक सच्चे भारतीय की तरह मुझे भी खुशी हो रही है कि भारतीय परिवेश पर बनी फिल्म स्लमडॉग मिलिनेयर ने गोलडेन ग्लोब अवार्ड जीत लिया. एक पेट्रियाटिक इंडियन की तरह इस खबर से और एक्साइटेड हूं कि ऑस्कर अवार्ड की दस कैटेगरीज के लिए इस फिल्म को नॉमिनेट किया गया है और इसमें तीन कैटेगरीज में एआर रहमान है. कैसा संयोग है कि रिपब्लिक डे मना रहे हैं और किसी भारतीय संगीतकार का डंका ऑस्कर अवाडर्स के लिए बज रहा है. ये देख कर अच्छा महसूस हो रहा है मीडिया में २६/११ की खौफनाक खबरों के बाद नए साल में कुछ अच्छी खबरें आ रही हैं. इंडियन मीडिया में अब स्लमडॉग् मिलिनेयर की धूम मची हुई है. अखबार-टीवी पर इसकी जय हो रही है. होनी भी चाहिए. लेकिन एक बात थोडी खटकती है. देश में अच्छी फित्म बनाने वालों की कमी नहीं है. रंग दे बसंती, चक दे इंडिया, तारे जमीं पर, गज़नी.. इधर बीच कई अच्छी फिल्में आईं. इनके रिलीज होने से पहले इन पर काफी चर्चा हुई, शोर हुआ हर कोई जान गया कि फलां फिल्म बड़ी जोरदार. इनमें से कुछ ने ऑस्कर में नॉमिनेशन के लिए दस्तक भी दी लेकिन सफलता नहीं मिली. लेकिन स्लमडॉग मिलिनेयर एक बहुत ही शानदार फिल्म है, इसका म्यूजिक लाजवाब है, इसका पता हमें बाहर से तब चलता है विदेशों में इसकी जय होती है. ठीक है फिल्म वल्र्ड के लोग और क्रिटिक इसके बारे में जानते होंगे लेकिन आम आदमी को इसके बारें में बहुत नहीं पता था. न इंडियन मीडिया में इसका कोई शोर था. लोगों का ध्यान तब गया जब इसने गोल्डेन ग्लोब अवार्ड जीता. मैंने स्लमडॉग मिलिनेयर देखी, एक फिल्म की तरह बहुत अच्छी लगी. कुछ लोगों अच्छा नहीं लगा कि भारत के स्लम, शिट, स्मेल को सिल्वर फ्वॉयल में लपेट कर वाहवाही लूटी जा रही है. फिल्म देखते समय मुझे कभी अमिताभ, कभी दीवार, कभी कभी जैकी श्राफ याद आ रहे थे और तो कभी मोहल्ले की बमपुलिस (सुलभ शौचालय का पुराना मॉडल...अमिताभ बच्चन ने यह नाम जरूर सुना होगा) के बाहर क्रिकेट खेलते बच्चे. मुझे तो फिल्म में गड़बड़ नहीं दिखी. बाकी तो लोकतंत्र है. यह आप पर है कि स्लम के स्मेलिंग शिट, और गारबेज पर नाक दबा कर निकल जाएं या उसके कमपोस्ट में कमल खिलाने का जतन करें.

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