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8/8/10

झंडुओं का बाम



दो गाने टाप पर बाकी सब झंडू. एक महंगाई डायन दूसरा मुन्नी डार्लिंग का झंडूबाम. झंडू खुदा की नियामत है, ऊपर वाले का नायाब तोहफा. कब कौन झंडू हो जाए कहा नहीं जा सकता. पहले दर्द भगाने वाला एक ही बाम होता था अमृतांजन लेकिन झंडूबाम ने बाकी सब बामों की वाट लगा दी है. झ़ंडुओं का दर्द समझना है तो बनारसियों से पूछिए. अब झंडूबाम की ठंडी-ठंडी जलन सभी झंडुओं को महसूस होने लगी है. ‘मलाई-का’ भाभी ने ठुमके लगा-लगा के जिस तरह अपने कूल्हे पर झंडूबाम मला है उसकी चुनचुनाहट उनको भी हो रही है जिनकी बैटरी डाउन हो चली थी. फिलिम आने से पहले ही गाना सुपरहिट. लेकिन डर तो ये लग रहा है कि ये झंडूबाम सल्लू भाई का काम ना लगा दे. वैसे झंडू शब्द सबसे पहले बनारस में सुना था. तब सिंगल डिजिट वाला एक रुपए का डेली लॉटरी टिकट उसी तरह पॉपुलर था जैसे आजकल गुटखे का पाउच. उस समय दिन में कई बार हल्ला होता था...का राजा दुग्गी निकलल कि छक्का? नंबर मैच कर गया तो आवाज आती थी... जीया राजा बनारस.. और जिनकी नहीं निकली वो ...का हो ..हो गइ-ल झंडू.. यानी बर्बाद.
कब कौन सा शब्द चलन में आ जाए कहा नहीं जा सकता. जैसे एक शब्द है डेंगू. दूसरों का पता नहीं लेकिन मीडिया में ‘डेंगू’ शब्द का खास मतलब होता है-लीचड़. अगर किसी का फीडबैक लेते समय किसी ने कह दिया कि अबे वो तो ‘डेंगू’ है, तो समझिए उसका लग गया काम.
इसी तरह पहले कुछ शब्द थे जिसका प्रयोग सिर्फ लौंडे-लपाड़ी करते थे अब तो लड़कियां भी धड़ल्ले से कर रही हैं. ये शब्द हैं ‘बजाना’ और ‘फाडऩा’. अब तो कब कौन लडक़ी किसकी बजा दे या फाड़ दे पता नही. टीवी रियलिटी शो में तो बात-बात पर महिला एंकर और जज एक- दूसरे की बजा और फाड़ रहे हैं. इन शब्दों का असली अर्थ पता चलने पर बड़ों-बड़ों की बज जाएगी. शायद तब वो बजाने से बाज आएंगे. लेकिन ये शब्द लोगों की जुबान पर इतने चढ़ गए हैं कि सुन कर किसी की नहीं फटती. लेकिन जब से मुन्नी ने झंडूबाम कूल्हे पर मलना शुरू किया है दूसरे गानों की बज गई है.खतरा तो इस बात का है कि दबंगई में मुन्नी मल कर निकल जाए और सल्लू झंडू ना बन जाए. सोच सोच कर उनके फैंस की फट रही है. फिलहाल आप झंडूबाम की चुनचुनाहट का मजा लें.

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