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10/8/09

बारिश, बादल और सूंस



अक्टूबर के पहले हफ्ते में कई ऐसी चीजें हुई जो अलग-अलग होते हुए एक-दूसरे से जुड़ी हुईं हैं. पूरे देश में वन्य जीव सप्ताह मनाया गया. पिछले संडे शरद पूर्णिमा थी और 7 अक्टूबर को करवाचौथ था. ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में आकाश से अमृत बरसता है. इस लिए रात को छत पर खुले आसमान के नीचे खीर रखने की परम्परा है. सुबह उस अमृत युक्त खीर को लोग ग्रहण करते हैं. अब कम ही लोग ऐसा करते हैं क्योंकि आसमान पॉल्युशन से भरा होता है. करवाचौथ पर महिलाएं चांद देख कर व्रत तोड़ती हैं लेकिन अब पक्का नहीं कि 7 अक्टूगर को कहां-कहां आसमान साफ था. हो सकता है कि आकाश बादलों से ढंका हो. शरद पूर्णिमा के आसपास तो आसमान साफ और शीतल होता था. इस बार सब उल्टा-पुल्टा हो रहा है. बारिश के मौसम में सूखे की नौबत थी और अब शरद ऋतु में झमाझम पानी. इसी बीच एक और खबर आई कि सरकार ने गंगा की डालफिन को नेशनल एक्वाटिक एनिमल घोषित कर दिया है. ऐसा विलुप्त होती डालफिन को बचाने के लिए किया गया है. कभी पूरी गंगा डॉलफिंस से भरी रहती थी, कहा जा रहा है कि अब यहां मुश्किल से दो सौ ही बची हैं. बादलों में शरद ऋतु का चांद, बेमौसम बारिश और गायब होती डॉलफिंस, ये सब पर्यावरण में बदलाव के खतरनाक संकेत हैं. बचपन में अपने गांव में गंगा किनारे मुश्किल से आधा घंटा खड़े रहने पर पानी में गोता लगाती सूंस(डॉलफिन) दिख जाती थीं लेकिन अब नहीं दिखतीं. गंगा की डॉलफिन समुद्र्र में नहीं रह सकती और गंगा का पानी हमने इनके रहने लायक नहीं छोड़ा. बाघ और मोर के बाद गंगा की डॉलफिन को नेशनल एक्वाटिक एनिमल का दर्जा मिलना गर्व की बात तब होगी जब इनके वजूद को बनाए रखने में हम कामयाब होंगे. डॉलफिन के बहाने हमें पर्यावरण के खतरों को समझना होगा. वरना कहीं डॉलफिंस हमेशा के लिए ना चली जाएं.

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