हेल्लो, अपमार्केट ! पता है ये क्या बला है? अपमार्केट का
मतलब अमीर और डाउनमार्केट का मतलब गरीब नहीं होता. कहने भर से ही थोड़े हो जाता है, अप और डाउन. सब दिमागी कीड़ा है बॉस. ये तो
स्टेट ऑफ माइंड है. जिसे देखो वही कद्दू जैसी तोंद और भिंडी जैसी टांगों पर बरमुडा
टांगे घूम रहा है अपमार्केट बना. तो चलिए आपको मार्केट की थोड़ी सैर करा दूं -
नोएडा टू लखनऊ वाया दिल्ली. वैसे हर जगह मार्केट एक जैसा ही है- थोड़ा अप, थोड़ा डाउन.
आप नोएडा के किसी सेक्टर में हैं और मेट्रो
स्टेशन के लिए के ऑटो हायर करते हैं तो आप अपमार्केट और अगर शेयरिंग वाले
डग्गेमार ओवरलोडेड टेम्पो पर बैठते हैं तो डाउन मार्केट. लेकिन मेट्रो में बैठते
ही अप-डाउन का भेद मिट जाता है. पूरी ट्रेन एसी और वहां थूकने-गंदगी फैलाने की
बहुत गुंजायश नहीं. इसके बाद आ जाता है नई दिल्ली रेलवे
स्टेशन. अप और डाउन मार्केट को समझने के लिए भारतीय रेल से बेहतर कुछ नहीं. जब एसी
कोच नही थे तब ट्रेन में फर्स्ट, सेकेंड और थर्ड क्लास हुआ करते थे. फर्स्ट और
सेकेंड अपमार्केट और थर्ड क्लास डाउन मार्केट था. फिर सेकेंड और थर्ड क्लास खत्म
कर एसी, स्लीपर और जनरल
कम्पार्टमेंट शुरू किए गए. तब जनरल कम्पार्टमेंट
डाउनमार्केट और एसी और सेकेंड क्लास स्लीपर अपमार्केट था. धीरे-धीरे सेकेंड क्लास
स्लीपर भी डाउनमार्केट हो गया और जनरल कम्पार्टमेंट तो वेजीटेबल क्लास हो गया माने
यहाँ यात्री बोरियों में साग-सब्जी की तरह ठुंसे रहते हैं.
तो चलते हैं दिल्ली से लखनऊ. सेकेंड क्लास
स्लीपर या साधरण दर्जे की चेयरकार अप-डाउन मार्केट का मिक्स मसाला है. सामने बैठा
बंदा ‘एक्स’ फैक्टर वाला परपफ्यूम लगाए अपनी सूखी टांगों
में घुटन्ना फंसाए समार्ट फोन से चैट कर रहा हो तो वो अपमार्केट है लेकिन जैसे ही
एक रूपये छाप सस्ता गुटखा पाउच फाड़ कर फांके और पिच्च करे तो डाउन मार्केट है. ईयर
फोन लगा ढिंचैक म्यूजिक का मजा लेने वाली जींस क्लैड लेडी अपमार्केट लेकिन अगर वो
बैग से तीखे लहसुन की गंध वाली रसेदार-मसालेदार सब्जी और चावल सीट पर फैला कर
खाने-खिलाने लगे तो सीट पर रायता और कम्पार्टमेंट में जो बॉस फैलेगी वो
डाउनामर्केट है....अरे बात करते करते लीजिए लखनऊ आ गया...चमकता चारबाग स्टेशन.
रिक्शा.. गंज
चलोगे ? जी बाबूजी, एक और सवारी
बैठा लें ? नहीं... एक और सवारी बैठा ली तो दोनों
डाउनामर्केट. उफ्फ...अचानक अपनी सोच डाउनमार्केट लगने लगी
थी. क्या बिगड़ जाता अगर उसको एक सवारी बैठा लेने देता. लेकिन कभी-कभी हम इन जरा
सी बातों पर अपने बड़े से ईगो के कारण कितने छोटे हो जाते हैं. अपमार्केट और
डाउनमार्केट तो सोच होती है, व्यक्ति नहीं. तभी हजरतगंज आ गया. गंज में
फुटपाथ पर दुकान सजाए चाट, चनाजोर और मूंगफली वाले सब अपमार्केट हैं. एसयूवी
से सफेद जूतों और सफारी में उतरे बाबूसाहब अपमार्केट हैं लेकिन वो जैसे ही फुटपाथ
की स्टायलिश बेंच पर बैठ कनमैलिए से कान साफ करने लगते हैं तो
डाउनमार्केट हो जाते हैं. किसी शोरूम के सामने बोरा बिछाए, कंधों खिलौने
सजाये कोई विकलांग डाउन मार्केट कैसे हो सकता है क्यूंकि उसके कस्टमर्स अपमार्केट
हैं... अब घूरिये मत, घूरने वाले भी डाउन मार्किट केटेगरी में आते
हैं .
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