ये कहानी कानपुर शहर की है. स्टेशन से ऑफिस तक रिक्शेवाले के साथ एक छोटा सा सफर...
ओ रिक्शा.. खाली है? जी बाबूजी. चलो.. एक सवारी और बैठा लें बाबू? क्यों, पैसा तो पूरा दे रहे हैं, सीधे चलो, लेट हो जाऊंगा. बाबू, पांच रुपया और कमा लेते..! नहीं.. ठीक बाबू, जैसा कहें... और रिक्शा वाला बढ़ चला कभी 'साम्बा' कभी 'हिप-हॉप' करते. पता नहीं क्यों ज्यादातर रिक्शे वाले सीट होते हुए भी उसी तरह 'हिप-हॉप' स्टाइल में रिक्शा चलाते हैं. जी हां, इसे 'हिप-हॉप' ही कहूंगा. वो ऐसे ही चलाते हैं. एक बार हिप्स उछाल के दाएं साइड, फिर उछाल के बाएं, भले ही सवारी हो ना हो. ये बात मुझे हमेशा परेशान करती है कि रिक्शे वाले अपनी सीट पर बैठ कर क्यों नहीं चलाते.
तभी 'हिप-हॉप' करते उस रिक्शे वाले का मोबाइल बजा. वो रिक्शा चलाते बतियाने लगा. एक हाथ में मोबाइल दूसरे में हैंडल...अरे यार ड्राइव करते समय मोबाइल पर बात नहीं करते...रिक्शा पल्टाओगे क्या? उस पर कोई असर नहीं पड़ा था.
वो कुछ परेशान सा फोन पर बाते कर रहा था...मम्मी जी अब और नहीं कर सकता, घर छोड़ आया हूं. मेरा ध्यान उसके हुलिए पर गया. पैंट-शर्ट, साधारण सा जूता और स्वेटर. मुझे लगा ये स्कूली बच्चों को ले जाता होगा, कुछ तकरार हो गई होगी, शायद उसी बारे में किसी मेमसाहब से बातें कर रहा है. ..ये मम्मी जी कौन हैं? जी, मेरी सास हैं...कितना पढ़े हो?..ग्रेजुएट हूं..नाम? फलाने शुक्ला..सास क्या करती हैं? ..ग्राम प्रधान हैं.
अचानक मुझे लगा कि परेशान सा यंग ग्रेजुएट, जिसके हाथ में मोबाइल था और जो अपनी ग्राम प्रधान सास को मम्मीजी बोल रहा था, वो भला डाउन मार्केट कैसे हो सकता था. भले ही वो चला रिक्शा रहा था.
अब सास थी तो वाइफ भी होगी, सो मैंने पूछ ही लिया.. कितने दिन पहले शादी हुई है?...15 जनवरी को. अरे वाह..फिर क्या प्रॉब्लम है? बाबूजी वही तो प्राब्लम कर रही है. क्यों..? ठीक से नहीं रखते क्या, लव मैरेज की थी? बहुत ज्यादा दहेज तो नही मांग लिया, सताते तो नहीं..? सवालों की बौछार से वो थोड़ा नाराज हो गया... अरे बाबू जी, पांच भाइयों के बीच छह एकड़ खेत है. क्यों सताऊंगा, ससुराल वालों ने अच्छा दहेज दिया है, पल्सर बाइक भी दी है. उसका बहुत ध्यान रखता हूं. आज उसका व्र्रत था, आधा किलो अंगूर और सेब रख कर आया हूं. किसी चीज की कमी नहीं है फिर भी पता नही क्यों नाराज रहती है...अच्छा तुमने वाइफ को बताया है कि रिक्शा चलाते हो? नहीं..
रोज रिक्शे से कितना कमा लेते हो? ...जब तक चार सौ नहीं कमा लेता घर नहीं जाता. रोज वाइफ को चालीस रुपए देता हूं,जबकि सारा राशन-पानी घर से आता है...
उफ्फ...अचानक, मुझे अपनी सोच डाउन मार्केट लगने लगी थी. क्या बिगड़ जाता अगर उसको एक सवारी बैठा लेने देता, दस रुपया और कमा लेता. लेकिन कभी-कभी हम इन जरा सी बातों पर अपने बड़े से ईगो के कारण कितने छोटे हो जाते हैं. रिक्शा चला रहे उस ग्रेजुएट की सोच तो किसी भी अपर या अपर मिडिल क्लास यंगस्टर्स जैसी ही थी, जिसमें सेल्फ रिस्पेक्ट था. तभी तो वो घर से पैसा नहीं लेना चाहता था. अपने बूते आगे बढऩा चाहता था, वाइफ साथ नहीं दे रही थी फिर भी हार मानने को तैयार नहीं था.
क्या ये मेड सर्वेंट, चौकीदार, चायवलों और रिक्शेवालों जैसे सो-कॉल्ड डाउन मार्केट लोग सपने नहीं देख सकते? सो-कॉल्ड अपमार्केट सोसायटी का काम क्या इन सो कॉल्ड डाउन मार्केट मेड सर्वेंट, माली, गार्ड, ड्राइवर और रिक्शेवालों के बिना चल पाएगा? दरअसल अपमार्केट और डाउनमार्केट तो सोच होती है, व्यक्ति नहीं. पता नही क्यूं रिक्शेवाले ने वाइफ को नहीं बताया कि वो रिक्शा चलाता है? ये उसका ईगो था या सेल्फ रिस्पेक्ट, पता नहीं. पर ये सवाल मुझे परेशान कर रहा था और रिक्शे वाला मेरी इस उधेड़-बुन से बेखबर बढ़ा जा रहा था अपनी मंजिल की ओर- हिप-हॉप, हिप-हॉप..हिप-हॉप, हिप-हॉप..
ye desh ki asli halat hai aaj k dour mein,,,,
ReplyDeleteIt is a story of Common Man by a Common Man .... Very interesting Rajiv Bhai
ReplyDeleteSanjay M. Johri
Bhaisahab, log pooch rahe the ..aap ke saath hi aisa kyun hota hai...? Mujhe lagta hai aisa sab log kabhi na kabhi aisi situation se roo-b- roo hote hain..bus thoda sensitivity mangta... :-)
Deletehhmmm...
ReplyDeleteIs hhmmm..ko mai kya samjhun Engineer Sahab .. :-)
DeleteSahab nahin Mam :)
Deletelekh to vakai kabile tarif hain par un logo ke liye ek sabak hain jo ta umra sirf kismat ko dosh dete rahte hain vaise is rikshe vale se kbhi dubara mulakat ho to kah digiye ga ki kaam koi chota ya bada nahi hota bus kaam karne me sidadat honi chahiye =)
ReplyDeleteKanpur station se parade- ek sawari ka 8 rupaya. do sawari ka 5-5 rupaya.
ReplyDeleteab pata nahin kitna hai :)
Abhishek ji abhi Ghantaghar se Parade ka rate hai 10 rupya sawari... :-)
DeleteI like it very much,,,,,,,,,,,,so touchy and sensitive
ReplyDeleteसच कह रहे हैं आप, जब चढ़ाई में दम लगाकर शरीर ऐंठता है रिक्शावाला, तो लगता है कि हिप हॉप कर रहा है।
ReplyDeleteRikshawwala hi kyun, chadhyee pe hamsab bhi to hip hopp kerne lagte hain :-)
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ReplyDeleteganga mein dubki lagane se insan pavitra to nahi , but haan ganga jarur maili ho gai hai.
2.) logon ki astha ke sath khilwaad hai....phone mein agar balance nahi bachta...to boyfriend bana lo.
kya sujhao hai...nirmal baba ki jai ho...
NIRMAL baba is not NORMAL:)
BILKUL,,AJ BHI KAI AISE LOG HAI JO IS WESTERNISATION MEIN BHI PURANE 4MAT KE SATH JEE RHE HAIN AND SARE RULES KO FOLLOW KARTE HAIN.
youth syndrome. very well written sir ji.
aaj kuch toofani karte hain:)
jitne padhe..sabke comment kie hain sir..
gud mrng, have a nice day.
-Shalu Awasthi
ग्रेजुएट होकर भी रिक्शा चलाना पड़ रहा है. खेदजनक.
ReplyDeleteNice one. This is the progress. Our rikshawale's are also graduate. Symbol of new society.
ReplyDeletesir , yeh to har jagah ke story hai. I like it realy its heart touchy and sensitive real story
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