वाह क्या बात है फिर 31 दिसंबर. कुछ मीठा तो एक जनवरी बहुत हुआ चलो गुरू बात करते हैं 31 दिसंबर को क्या हुआ. आज थोड़ा चिकनी चमेली वाला पौव्वा, सॉरी ‘क्वार्टर’ हो जाए. बहुत लोग 31 दिसंबर को इसी के जुगाड़ में थे . पौव्वा तो थोड़ा डाउन मार्केट है, यहां बात ‘क्लास’ ·की हो रही है. हर अच्छी ब्रांड ·का अलग केमिकल लोचा होता है पर लगता है एक ही ब्रांड का अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग असर होता है. आपने भी पार्टी-शार्टी में देखा होगा, लोग कैसे चीयर्स करते हैं. कुछ साथी पूरी बाटली के बाद भी एकदम सिगरेट सुलगा थिंकर -फिलॉस्फर की तरह बिलकुल धीर-गंभीर और कुछ दो पेग में बाद ही केश्टो मुकर्जी.. आंख की दोनो पुतलियां बीच में और चावल-सब्जी सूट पर दाएं-बाएं. कुछ पार्टी एनिमल तो बिल्कुल खुली किताब होते हैं कि वो क्या ·रेंगे..·कुछ तीन पेग के बाद गाना गाने की जिद करेंगे और ·कुछ दो पेग के बाद ही अपने ‘हरी साडुओं’ डीके बोस’ की उपाधि से नवाजने लगेंगे. लेकिन असर खत्म होते ही वो बन जाते हैं एकदम भीगी बिल्ली... याद ही नहीं रहता. ऐसे टल्ली साथियों का भूत उतारने और उन्हें घर तक पहुंचाने ·का जिम्मा अक्सर मेरा होता है. एक जनाब पार्टी में हाई होने ·के बाद उल्टी जरूर करते हैं. एक दोस्त ऐसे हैं जो इतना पी लेते हैं कि अगले दिन ऑफिस आने कि हालत में नहीं रहते, कभी हैंगओवर से कभी ठोकाई की वजह से. पार्टीज में ऐसे वेटरन बूजर्स भी होंते हैं जिनकी सोशल रिस्पासिंबिलीटज भी होती हैं. जैसे साथयों ·की पसंद माफि· पेग बनाना, किसे ऑन द रॉक्स चाहिए, किसे विद सोडा और कौन खालिस पानी से चाहता है. खास कर बॉटम्स अप वालों पर नजर रखनी होती है क्योंकि सबसे पहले ऐसे ही लोग आउट होते हैं. इनमें से ही कुछ पार्टी बिगाड़ू का भी रोल अदा करते हैं, हंगामा करने वाले लोगों को संभालना भी सोशल रिस्पांसिबिलिटी है. ऐसे ही एक वेटरन बूजर को जानता हूं जो हर पार्टी में चुपचाप ड्रिंक्स वाला कोना पकड़ कर उसी तरह बैठ जाते हैं जैसे किसी प्याऊ पर ·पर सोशल वर्कर . लेकिन लोगों कि प्यास बुझाने के साथ-साथ वो अपनी भी प्यास बुझाते चलते हैं पर क्या मजाल कि बहक जाएं.
पार्टीज में बहकता तो मैं भी नहीं क्योंकि मैं ड्रिंक नहीं करता लेकिन हॉस्टल लाइफ में कोई भी ऐसी प्रीमियम ब्रांड नहीं बची थी जिसे टेस्ट नहीं ·किया हो. लोग ·हते हैं हर ब्रांड किक अलग होती है लेकिन रम से लेकर स्कॉच तक तक सब ने मुझे एक जैसी ही किक लगाई. इसी टेस्ट के चक्कर में एक बार तो मेरे ·कान में जिन घुस गया था. बात कई साल पहले है, वो भी ऐसे ही 31 दिसंबर की रात थी. न्यू इयर ईव पर हॉस्टल में साथियों ने व्यवस्था की साथी कहीं से जिन ले आया था. बोला थोड़ा ले लो जुकाम ठीक हो जाएगा. लाओ देखें जरा.. स्टाइल में मैंने भी थोड़ी जिन ले ली. पता नहीं क्या हुआ कि गले 15 दिन तक मेरा सीना जकड गया, सूंघने और सुनने की क्षमता जाती रही, लोग कुछ बोलते थे तो मैं कान के पास हाथ ले जाकर आंय-आंय करता था. जब दोस्तों को पता चला कि ये जिन का नतीजा है तो सब ने खूब मजा लिया. बात पूरे हॉस्टल में फैल गई कि ·अबे.. ओझवा के कान में जिन्न घुस गया है. उसे सुनाई नही पड़ रहा है. बाद में यह जिन एंटीबायटि· लेने से ही भागा. उस दिन से कान पकड़ा .तो दोस्तों पार्टी होती ही मस्ती के लिए. पार्टी ऐसी हो जो बार-बार याद आए. जम कर मस्ती करिए लेकिन इतना टल्ली ना हो जाएं कि घर ना पहुंचने पर आप· अपने घबराएं. बार-बार फोन आएं और अगले दिन लोगग खिल्ली उड़ाएं.
पार्टीज में बहकता तो मैं भी नहीं क्योंकि मैं ड्रिंक नहीं करता लेकिन हॉस्टल लाइफ में कोई भी ऐसी प्रीमियम ब्रांड नहीं बची थी जिसे टेस्ट नहीं ·किया हो. लोग ·हते हैं हर ब्रांड किक अलग होती है लेकिन रम से लेकर स्कॉच तक तक सब ने मुझे एक जैसी ही किक लगाई. इसी टेस्ट के चक्कर में एक बार तो मेरे ·कान में जिन घुस गया था. बात कई साल पहले है, वो भी ऐसे ही 31 दिसंबर की रात थी. न्यू इयर ईव पर हॉस्टल में साथियों ने व्यवस्था की साथी कहीं से जिन ले आया था. बोला थोड़ा ले लो जुकाम ठीक हो जाएगा. लाओ देखें जरा.. स्टाइल में मैंने भी थोड़ी जिन ले ली. पता नहीं क्या हुआ कि गले 15 दिन तक मेरा सीना जकड गया, सूंघने और सुनने की क्षमता जाती रही, लोग कुछ बोलते थे तो मैं कान के पास हाथ ले जाकर आंय-आंय करता था. जब दोस्तों को पता चला कि ये जिन का नतीजा है तो सब ने खूब मजा लिया. बात पूरे हॉस्टल में फैल गई कि ·अबे.. ओझवा के कान में जिन्न घुस गया है. उसे सुनाई नही पड़ रहा है. बाद में यह जिन एंटीबायटि· लेने से ही भागा. उस दिन से कान पकड़ा .तो दोस्तों पार्टी होती ही मस्ती के लिए. पार्टी ऐसी हो जो बार-बार याद आए. जम कर मस्ती करिए लेकिन इतना टल्ली ना हो जाएं कि घर ना पहुंचने पर आप· अपने घबराएं. बार-बार फोन आएं और अगले दिन लोगग खिल्ली उड़ाएं.
अब चमेली जी से ही पूछा जायेगा कि उन्हें कैसा लगा?
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