Featured Post

12/11/10

एल्युमनी मीट सी कुछ रातें


इस बात को दो दशक से ज्यादा हो गए लेकिन अभी भी किसी मीठी नींद वाली रातों में क्यूं दिखाई देता है कांफ्रेंस रूम में मेजर का वो चेहरा, कांफिडेंस से भरा जिंदगी में हार ना मानने की नसीहत देता हुआ. सामने चेस्ट नंबर वाले वो चेहरे धडक़ते दिल से अपनी बारी के इंतजार में- सेलेक्शन होगा, नहीं होगा, होगा, नहीं होगा..अब भी क्यूं दिखते हैं कुछ चेहरे, याद आने लगतीं हैं कुछ पुरानी बातें. यादे हैं तो सपने हैं और सपने तो आएंगे ही. माना कि सपने टूटते हैं लेकिन तभी तो हम सपने बुनते हैं. ना जाने क्यूं एल्युमनाई मीट सी लगती है कुछ रातें.
चलिए हो जाए एल्युमनाई मीट जरा हट के. क्यों होती है एल्युमनाई मीट? पुरानी यादों को रिफ्रेश करने के लिए, पुराने दोस्तों को खोज निकालने के लिए, उनसे मिलने और साथ ठहाके लगाने के लिए, नोस्टेल्जिक होने के लिए. एल्युमनाई मीट में ऐसा लगता है कि ढेर सारी विंटेज कारें जमा हों और उनके इंजन शोर मचा रहे हों, इतरा रहे हों. आप भी शामिल हुए होंगे ऐसी किसी किसी मीट में. पता चलता है कि फलां तो बड़ा नेता बन गया, अरे वही चिरकुट दोस्त जो दीवाली के एक हफ्ते पहले से हॉस्टल में जुआ खेलने लगता था. खेल-खेल में एक बार उसका दूसरे हॉस्टल के एक लडक़े से झगड़ा हो गया था और उसने हाथ में काटने की कोशिश की तो उसके सामने के सारे दांत हिल गए थे और सब उसे लेकर भागे तो चीनी डाक्टर के पास. तब पता चला कि ये चीनी डाक्टर दांत पर भी प्लास्टर चढ़ा देते हैं. दो दशक बाद टीवी पर एक चेहरा दिखा मीडिया से मुखातिब. नाम जाना पहचाना, ध्यान से देखा तो याद आ गया...अरे ये तो एंडी राबट्र्स है. पहले तो इसके खूब घुंघराले बाल थे अब तो मैदान साफ है. जीआईसी में साथ पढ़ता था. उसके कैरेबियंस की तरह घुंघराले बाल थे बिल्कुल एंडी राबट्र्स की तरह. कॉलेज के बाद कभी मुलाकात नहीं हुई लेकिन टीवी पर देख सबकुछ याद आ गया. किसी ने बताया कि आर्मी में चला गया था फिर आर्मी छोड़ इंडियन पुलिस सर्विस में आ गया.
आर्मी से याद आया कि एसएसबी एल्युमनाई तो मैं भी हूं. एसएसबी समझ गए ना, डिफेंस सर्विसेज के अफसर बनाने वाला सर्विस सेलेक्शन बोर्ड. मुझे भी झक सवार हुई थी फौजी अफसर बनने की. रिटेन तो हर बार क्वालिफाई कर जाता लेकिन एसएसबी में गाड़ी अटक जाती थी. लेकिन पॉजिटिव सोच और जोश इतना कि ताबड़तोड़ फेस कर डाले कई एसएसबी बोर्ड. इलाहाबाद, बनारस, देहरदून, भोपाल, बेंगलुरू सब. आर्मी, एअरफोर्स, नेवी, कोई भी ब्रांच नहीं छोड़ी. इस दौरान ढेर सारे दोस्त बने. पता नही क्यों अब भी सपनों में कभी दिख जाता है सर्विस सेलेक्शन बोर्ड. याद आ जाते हैं एक मजेदार लमहे और शुरू हो जाती है एल्युमनाई मीट.
एसएसबी के लिए कॉल किए जाने वाले कुछ कैंडीडेट स्मार्ट होते और कुछ नमूने. ऐसा ही एक नमूना भोपाल के एसएसबी बोर्ड में था. चेस्ट नंबर और बेड एलॉट होन के बाद एक चुटई वाले साथी ने अपना बैग खोला तो उसमें एक छोटा प्रेशर कुकर और बड़ी सी कैंडल भी थी. ..अबे खाना तो यहां मिलेगा फिर कुकर क्यों ले आए, और ये कैंडल? ...कॉल लेटर देखो साफ लिखा है ट्रवेल बिद लाइट लगेज. सो लाइट के लिए कैंडल और राशन? आर्मी वाले तो राशन देते हैं सो पकाने के लिए कुकर. अगले दिन ग्रुप टॉस्क में जब उसकी कमांडर बनने की बारी आई तो वो एक कोने में खड़ा हो अपने ग्रुप को भाषण देने लगा ..साथियों मुझे लैंड माइंस से भरी इस खाई पार करने की टास्क दी गई, मैं तुम्हारा कमांडर हूं, इस खाई को पार करने का आर्डर देता हूं, कैसे? ये तुम्हारा काम है. कुछ साथी अवाक थे और कुछ लोटपोट हुए जा रहे थे.
एसएसबी बोर्ड बैंगलुरु. जज एडवोकेट जनरल ब्रांच के लिए हम सब वहां थे. मेरे स्कूल दिनों का एस साथी मेरे बैच में था. सब को किसी टॉपिक पर तीन मिनट का एक्सटेम्पोर लेक्चर देना होता था इंग्लिश में. हम सब हिन्दी मीडियम. यस को ‘या’ बोलने वाले को अंग्रेजीदां समझते थे. उसकी बारी आई तो पता नहीं क्यों वो हर सेंटेंस के बाद बोलता था-या.. जेंटिलमैन ..आज भी जब कोई येस को ‘या’ कहता है तो वो दोस्त याद आने लगता है. पास्ट जैसा भी हो अच्छा लगता सो सेलेक्शन भले ही ना हुआ हो लेकिन एसएसबी बोर्ड जब कभी सपनों में दिखता है तो मैं भी नॉस्टेल्जिक हो जाता हूं एल्युमनाई मीट के साथियों की तरह.

6 comments:

  1. एकदम्मे बिन्दास - 'या' टाइप ;)

    @ .कॉल लेटर देखो साफ लिखा है ट्रवेल बिद लाइट लगेज. सो लाइट के लिए कैंडल और राशन आर्मी वाले तो राशन देते हैं सो पकाने के लिए कुकर.

    हँसे जा रहा हूँ।

    ReplyDelete
  2. बताईये, दाँत हिल गये तो काटना सार्थक हो गया। चीनी डॉक्टर तो हैं ही इसीलिये। मनोहारी यादों में सार्थक डुबकी।

    ReplyDelete
  3. नॉस्टेल्जिक होना भी अच्छा है, एक बेहतरीन पोस्ट पढ़ने मिल जाती है. :)

    ReplyDelete
  4. ये पढ़ कर कुछ अपना पुराना समय और दोस्त याद आ गए जैसे ................... कुछ के रखहे हुए नाम .............पकौड़ी / गिरगिट / ठोसू / कबाड़ी .....वहीं कुछ गुरुजनों के नाम ...धोबी (हमेशा व्हाइट कपड़े) / पप्पू (कद मे छोटे ) / डाँगर इत्यादि । और भी पता नहीं क्या क्या याद आ गया।

    ReplyDelete
  5. Aapka ye post bahut achha hai....bechare aapke wo mitra kitne bhole the :)

    ReplyDelete
  6. ha ha ha ha ha........... me too experienced the SSB 2 times....... still not recomended...... going for third time......... To aakhir aapne landmines wlai jamin paar kaise ki ?????? :-D

    ReplyDelete

My Blog List