आजकल टीवी में एक वीडियो
वायरल है। इसमें एक लड़की का साया बंदर की
माफिक ऊपर चढ रहा है। कहा जा रहा कई अस्पतालों की ईमारत पर रात 3 बजे ऐसा साया
चढ़ता दिखाई देता है। लाखों लोग इसे मुंह
खोले देख रहे। इसे देख मुझे ताड़ के पेड़ पर सुबह शाम चढ़ता ताड़ी वाला याद आता है जो
कमर में छोटी सी मटकी लटकाए ताज़ी ताड़ी निकलने के लिए बंदर की तरह सटासट चढ़ जाता था।
पटना में बचपन के दिनों ऐसे दृश्य आम थे क्योंकि वहां तब ताड़ के पेड़ बहुत थे। उन पेड़ से ताड़ी निकलने वालों के लिए यह काम बाएं
हाथ का खेल था। जिसने भी फर्जी वीडियो बना
कर सोशल मीडिया पर डाला है उसने अगर ताड़ी वाले को देखा होता तो आसानी से पकड़ में
आने वाले ऐसे झूठे वीडियो न बनता, लेकिन उसे पता है भारत में पढ़े लिखे अनपढ़ों का बहुमत है जो किसी भी झूठे
वीडिओ को वायरल करने को हमेशा तैयार रहते।
ताड़ी से मुझे लोहा सिंह
याद आ रहा है। पटना में हमारे ग्वाले का
नाम लोहा सिंह था।10-12 बढ़िया जर्सी गाय
थीं उसके पास। उसके नेपाली अस्सिटेंट का
नाम बहादुर था जो चारा और गायों को सानी वानी लगाने का काम देखता था। तब पैकेट वाले दूध का चलन नहीं था। सो सुबह शाम ताजा दूध के लिए डब्बा लेकर ग्वाले के
पास जाना पड़ता था। शाम को मेरी ड्यूटी
लगती थी। लेकिन शनिवार शाम तनाव में
बीतती थी। क्योंकि उस दिन शाम को लोहा
सिंह ताड़ी पी लेता था और वहीं खटाल में खटिया पर लेटा लेटा अपने रिश्तेदारों को गरियाता
था। गाय दुहने का काम उस दिन बहादुर करता
था। हालांकि तड़ीयल लोहा सिंह दूध लेने आये
लोगों को कुछ नहीं बोलता लेकिन फिर भी मुझे डर लगता था।