
सोचिए जब कैमरा या स्मार्टफोन नहीं थे तब लोगों का काम कैसे चलता होगा। क्योकि समय के साथ इंसान ने प्रगति की है लेकिन हमारी मूल सोच(बेसिक इंस्टिंक्ट) में बहुत बदलाव नहीं आया है। जब कैमरे नहीं थे तब लोग, चित्रकार के सामने सज संवर कर बैठ जाते थे और वो कैनवास पर उनकी तस्वीर उतारता था (जैसे टाइटेनिक में हीरो के सामने हीराइन ने बैठ कर स्केच बनाया था)। लोग तेजी से सेल्फियाना हो रहे हैं। डर लगता है कि कहीं कोई प्राण न्योछावर न कर दे, जैसा कि जैसा कि प्राचीन ग्रीस में नारसिसस के साथ हुआ था। कहा जाता है कि नारसिसस(नरगिस) नाम का खूबसूरत युवक पानी में अपना प्रतिबिंब देख, उस पर इतना मोहित हुआ कि उसका हार्ट फेल हो गया था। लेकिन लगता है ‘सेल्फियाना’ बुखार भी जल्द ही उतर जाएगा। पहले सेल्फी केवल टेक सैवी अपर क्लास का शगल माना जाता था। अब कबाड़ी और खोमचे वाले भी अखबार और करैला तोलते हुए वाट्-एप और फेसबुक पर सेल्फी फेंक रहे हैं और जो ‘खास’ चीज आम हो जाए उस पर कोई जान क्यों देगा।