रिजॉर्ट में ठुमकती बोरियां!हालांकि अभी खरमास चल रहा है हिंदुओं में मांगलिक कार्य ठप है लेकिन खरमास के पहले ही के धूम-धड़ाके का हैंगओवर अभी भी बाकी है। आजकल डेस्टिनेशन मैरेज या शहर से बाहर जाकर कहीं रिजॉर्ट में शादी करने का चलन बढ़ता जा रहा। शादियां इवेंट में तब्दील होती जा रहीं। दिखावे का जमाना है। बड़े बुजुर्ग फूफा जीजा ताऊ खिलाकर हैं अपनी बला से। किस तरह समाज को राह दिखाई जाए, किस तरह समाज को दिखावे के दंश से मुक्त किया जाए।
हम बात करेंगे शादी समारोहो में होने वाली भारी-भरकम व्यवस्थाओं और उसमें खर्च होने वाले अथाह धन राशि के दुरुपयोग की। आपको लग सकता है कि तेल जले तेली और तशरीफ़ जले मशालची की। यहां बात धन दानवों की नहीं है, बात उनकी देखा देखी नकल की चपेट में आने वाले साधारण लोगों की है। ऐसे में हाड़ तो जलेगा ही। पहले घर से ही शादियां होती थी उसके बाद मोहल्ले के कम्युनिटी सेंटर या धर्मशाला में शादी का चलन बढ़ा और अब शहर के बाहर रिजॉर्ट या वर वधु के घर से दूर किसी दूसरे शहर में डेस्टिनेशन मैरिज का चलन बढ़ गया है। कम्युनिटी सेंटर अबउपयोग में नहीं लाए जाते हैं। शादी समारोह के लिए यह सब बेकार हो चुके हैं।कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियां होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है। अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में शादियां होने लगी हैं।
शादी के 2 दिन पूर्व ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है। आगंतुक और मेहमान सीधे वही आते हैं और वहीं से विदा हो जाते हैं। इतनी दूर होने वाले समारोह में जिनके पास अपने चार पहिया वाहन होते हैं वहीं पहुंच पाते हैं। और सच मानिए समारोह के मेजबान की दिली इच्छा भी यही होती है कि सिर्फ कार वाले मेहमान हीरिसेप्शन हॉल में आएं। और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है ।
दो तीन तरह की श्रेणियां आजकल रखी जाने लगी हैं। किसको सिर्फ लेडीज संगीत में बुलाना है, किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है, किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है और किस वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है। इस आमंत्रण में अपनापने की भावना खत्म हो चुकी है।
सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है।
लेडीज संगीत कहने को तो महिलाओं के लिए ही होता है, परंतु इसमें भी डिनर की व्यवस्था रिसेप्शन की तरह ही इतनी भारी-भरकम होती है कि
एक आम व्यक्ति अपने दो बच्चों की शादी का रिसेप्शन कर ले।
महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं। इसमें घिसे घुटनों के कारण डगर मगर चलने वाली, भारी शरीर वाली महिलाएं भी कुछ देर के लिए खुद को माधुरी दीक्षित समझते हुए ठुमकती हैं। ऐसा लगता है जैसे झुंड में बोरियां नाच रही हों।
हर काम के लिए प्रोफेशनल एक्सपर्ट बुलाए जाते हैं। मेहंदी लगाने के लिए आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे हैं। हल्दी लगाने के लिए भी एक्सपर्ट बुलाए जाते हैं। ब्यूटी पार्लर को दो-तीन दिन के लिए बुक कर दिया जाता है।
प्रत्येक परिवार अलग-अलग कमरे में ठहरते हैं।
दूरदराज से आए बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता कहीं खत्म सी हो गई है।क्योंकि सब अमीर हो गए हैं पैसे वाले हो गए हैं। मेल मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका है।
मेहमान रस्म अदायगी पर मोबाइलो से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते हैं।
सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते हैं, और यही अमीरीयत का दंभ उनके व्यवहार से भी झलकता है।
कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता।
वे अपना अधिकांश समय करीबियों से मिलने के बजाय अपने कमरो में ही गुजार देते हैं।
रिसेप्शन हाल की पार्किंग और बाहर खड़ी गाड़ियों से अंदाजा लग जाता हे कि अंदर व्यवस्था कितनी आलीशान होगी।
मुख्य स्वागत द्वार पर नव दंपत्ति के विवाह पूर्व आलिंगन वाली तस्वीरें
हमारी बाजारू हो चुकी संस्कृति पर
सीधा हमला करते हुए दिखती हैं।
मेहमान मखमल के कालीनो पर चल कर आगे बढ़ते हैं, सुगंधित धुएं के मदहोश करने वाले गुब्बारे स्पर्श करते हैं। ऐसा लगता है किसी पांच सितारा मधुशाला या नवाबी मुजरे मे पहुंच रहे हों।
अंदर एंट्री गेट पर आदम कद स्क्रीन पर नव दंपति के विवाह पूर्व आउटडोर शूटिंग के दौरान फिल्माए गए फिल्मी तर्ज पर गीत संगीत और नृत्य चल रहे होते हैं। क्योंकि इस तरह की शादिया, एंटरटेनमेंट स्पाट ज्यादा लगती हैं।
आशीर्वाद समारोह तो कहीं से भी नहीं लगते हैं। स्क्रीन पर पूरा परिवार प्रसन्न होता है अपने बच्चों के इन करतूतों पर। पास में लगा मंच
जहां नव दंपत्ति लाइव गल - बहियाँ करते हुए मदमस्त दोस्तों और मित्रों के साथ अपने परिवार से मिले संस्कारों का प्रदर्शन करते हुए दिखते हैं।
मंच पर वर-वधू के नाम के बैनर में
अब वर वधू के नाम के आगे कहीं भी चि० और सौ०का० नहीं लिखा जाता।
क्योंकि अब इन शब्दों का कोई सम्मान बचा ही नहीं। नाम अब अंग्रेजी में लिखे जाने लगे हैं।
शादी/रिसेप्शन में क्या-क्या वेराइटी थी, बताना बेकार है। क्योंकि वहां इतना कुछ होता है कि उसमें किए गए खर्चे से साधारण परिवार की एक दर्जन कन्याओं का विवाह हो सकता है।
रिसोर्ट में होने वाले एक शादी समारोह का कम से कम 25 से 30 लाख खर्च आता है। हमारी संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा एसे ही अति नव संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाए रखा है।
हम कितने ही सामाजिक नियम बना लें, कितनी ही आचार संहिता बना लें
परंतु कुछ हल नहीं निकलने वाला।
समाज में पैदा होने वाली हर सामाजिक बुराई इन्हीं लोगों की देन है। इन लोगो के परिवार मे हमारी संस्कृति का कोई अंश बचा ही नहीं है। और यह लोग अब अपनी बुराइयां
मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग को देना चाहते हैं।
मध्यमवर्गीय समाज बंधुओं से अनुरोध है आपका पैसा है , आपने कमाया है, आपके घर खुशी का अवसर है, खुशियां मनाएं पर किसी दूसरे की देखा देखी नही,कर्ज लेकर
अपने और परिवार के मान सम्मान को खत्म मत करिए।
जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा करिएगा। 4 - 5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है। और आप कितना ही बेहतर करें,लोग जब तक रिसेप्शन हॉल में है तब तक आप की तारीफ करेंगे और लिफाफा दे कर आपकी आवभगत की कीमत अदा करके निकल जाएंगे। मेरा नई पीढ़ी से भी अनुरोध है कि अपने परिवार की हैसियत से ज्यादा खर्चा करने के लिए अपने परिजनों को मजबूर न करें,
लोगों की झूठी तारीफ से ज्यादा
आपके अपने परिवार की इज्जत और सम्मान अधिक महत्वपूर्ण होता है।
आपके इस महत्वपूर्ण दिन के लिए
आपके माता-पिता ने कितने समर्पण किए हैं यह आपको खुद माता-पिता बनने के बाद ही पता लगेगा। दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए। अपना दांपत्य जीवन सर उठा के , स्वाभिमान के साथ शुरू करिए और खुद को अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइए।■ (कंटेंट के कुछ अंश सोशल मीडिया से साभार)