Featured Post
11/20/09
शुष्क शौचालय!
मैं भारतीय हूं. मुझे भारतीय होने पर गर्व है. लेकिन मुझे उन ढेर सारे भारतीयों पर गर्व नहीं हैं जो अपनी संतुष्टि के लिए मुंह में शौचालय चला रहे हैं. शायद शुष्क शौचालय. पता नहीं आम भातीय इतना क्यों थूकता है. कहीं भी कभी भी. जो पान और पान मसाला खाते हैं वो भी और जो नहीं खाते वो भी. जैसे कुत्ता दीवार देख कर पेशाब किए बिना नही रह सकता वैसे ही कुछ लोग दीवार और कोना देख कर थूके बिना नहीं रहते. लिफ्ट तक को नही छोड़ते लोग. पहले मैला ढोने वाली भैंसा गाड़ी आगे जारही होती थी तो हम लोग रुक जाते थे या रास्ता बदल देते थे. लेकिन अब किस किस से बचेंगे. लोग तो मुंह में मैला लिए फिरते हैं. कौन कब आगे निकल कर पिच्च से कर देगा और उसकी फुहार आपके तन मन को पीकमय कर देगी, पता नहीं. और आप का भी मन करने लगेगा कि पीक से भरी बाल्टी और पिचकारी लेकर उसके पूरे खानदान के साथ फागुन खेल आएं. पान और मसाला जिसको खाना हो खाए लेकिन दूसरों का जीवन क्यों नर्क बना रहे हैं ये पीकबाज. अच्छे खासे मुंह को शौचालय बना रखा है. मुंह में मसाला डाला, जरा सी नमी आई तो पिच्च. फिर मुंह शुष्क. फिर मसाले का एक और पाउच, फिर नमी फिर पिच्च. अब ऐसे लोगों का मुंह शुष्क शौचालय नहीं हुआ तो और क्या हुआ. पान और मसाले खाने वालों से कोई नाराजगी नहीं, नाइत्तफाकी है तो बस उसके डिस्पोजल के तरीके से.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सतत सजगता का परिणाम -- यथार्थ लेखन।
ReplyDeleteयही तो भारतीयता की निशानी रह गई है :)
ReplyDeletebahut shi likha hai aapne .uch logo ne isse nijat pane ke liye lifts me bhagvan ke photo bhi lgakar
ReplyDeleterakhe hai taki log kuch to sharm kre .
सभी जागरुक हों तो ही बात बन सकती है
ReplyDeleteमारक व्यंग्य हिंसक आनन्द की सीमा तक जाता हुआ। विद्रूप अपने चरम पर!
ReplyDeleteकार वाले का डिस्पोजल का तरीका विकृत मानसिकता को भी प्रदर्शित करता है। ऐसे लोग या तो सेंसलेस होते हैं या विकृत।
..
अब जो लोग यहाँ टिप्पणी नहीं करें, उन पर यह संदेह किया जा सकता है कि वे गुटका वगैरा चबाते हैं ;)
हा हा हा. कहावत है ना कि चोर की दाढ़ी में तिनका.... तो ऐसे लोग दूर ही रहेंगे. ;-)
ReplyDeleteऐसे महापुरुष भूल जाते हैं कि अपने आस पास पिच्च पिच्च कर आस पास तो गंदगी फैला रहे हैं, अपने लिये नर्क बना रहे हैं. आज कल टीवी पर एक विज्ञापन आता है, मुंह के केंसर के बारे में. उस विज्ञापन में दिखाये गये मुंह देखे भी नहीं जाते. हे! ईश्वर इन्हें सदबुद्धि दे ताकि हमें साफ आस पडोस मिले और उन्हें जीवन.
ReplyDeleteहमें तो अपनी पोस्ट याद आ रही है - अजब थूंकक प्रदेश है यह!
ReplyDeleteये देखिये:
ReplyDeletehttp://www.youtube.com/watch?v=cunivTfRrU8
हा, हा, हा...बिल्कुल ठीक कहा, सड़क पर इधर उधर थूकने से बड़ी च्यूतिया गिरी कोई दूसरी नहीं लेकिन च्यूतिया नंदनों को समझ आए तब ना.
ReplyDeleteaapkee sajagta ko salaam.
ReplyDeleteसही कहा आपने। ये बहुत गम्भीर रोग हो गया है। जिसे देखो वही शुष्क शौचालय लिये फिरता है।
ReplyDelete