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10/2/09
गांधी बोले तो मुन्नाभाई वाले बापू!
साल में एक बार फिर याद आए बापू. अब आप इसे मजबूरी का नाम महात्मा गांधी कहें या कुछ और. अखबार के दफ्तर में ढेर सारे प्रेस नोट आए गांधी जयंती को लेकर. लगा कल कुछ और नहीं होगा सिर्फ गांधी जयंती मनाई जाएगी. पूर्व संध्या पर हमने भी शहर का चक्कर लगाया कि पता करें लोग गांधी जी के बारे में क्या सोचते हैं. कुछ को गांधी जी का पूरा नाम याद नही था. कुछ के लिए गांधी जयंती का मतलब था छु्ट्टी, गांधी का मतलब था मुन्नभाई वाले बापू और गांधीगिरी, गांधी का मतलब था फेशन लेकिन थोड़ा डिफरेंट. गांधी उनके हीरो थे लेकिन अलग कारणों से. गांधी साहित्य कम ही लोग पढ़ते हैं लेकिन माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ लोग इस लिए पढऩा चाहते हैं क्योंकि यह बेस्ट सेलर है. अब यहां 'बेस्टसेलर' की बहस में नही पडऩा चाहता. बेस्ट सेलर तो जसवंत सिंह की जिन्ना भी है. आज गांधियन थॉट नहीं, गांधी का नाम बिकता है अब यह चाहे टी-शर्ट पर हो या फिल्मों में. आज गांधी जयंती के दिन दोपहर शहर में संडे जैसा सन्नाटा है. लोग हफ्ते में दूसरी बार संडे मना रहे हैं गांधी की बदौलत. हो सकता है शहर के कुछ सभागारों में मुट्ठीभर लोग गांधी पर चर्चा कर रहे हों, हो सकता है कुछ लोगों ने सुबह गांधी की प्रतिमा पर फूल चढ़ाए हों, हो सकता है शाम को कुछ लोग उनकी प्रतिमा पर कैंडल भी जलाएं लेकिन ये भी सच है कि आज शाम मॉल्स में भीड़ कुछ ज्यादा होगी, रेस्त्रां में लोग कुछ स्पेशल खाएंगे और ये भी सच है कि आज मैं देर से उठा क्योंकि आज छुट्टी है, क्योंकि आज गांधी जयंती है.
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सर, आपकी बात से मैं सहमत हूँ। काफी चीज़ें जैसी सोची जाती हैं वैसी हो नहीं पातीं। शायद यही हुआ। मैं कुछ और सोचे बैठा था। लेकिन कभी कभी दिशा का फरक भी पड़ता है। लाइन ऑफ़ एक्शन जैसा होगा वैसा ही परिणाम आएगा। भाई लोगों ने हो सकता है आइडिया सही से समझा न हो। उस रस्ते पर काम करते तो जरुर कुछ न कुछ मिलता। खैर मैं किसी व्यक्ति विशेष या संस्थान विशेष की आलोचना या समालोचना नहीं करना चाहता, न ही ये मेरा ध्येय है। कई बातें मुझे सीखने को मिली हैं आपसे। शायद सोच और परिपक्व होगी।
ReplyDeleteसादर।
मुझे तो टी शर्ट पर बने गांधी जी की फोटो पर एतराज है। चेहरा किसी भी तरह से नहीं मिलता। चश्मा, खल्वाट सिर और झुर्री से थोड़े गान्धी जी बन जाते हैं। अब हमलोग उनके फोटो भी ठीक से नहीं बना पाते, आप मार्केटिंग की बात कर रहे हैं।
ReplyDeleteछुट्टी मनाइए।
@गिरिजेश: गांधी जी तो खादी पहनने, सूत कातने और भजन करने से भी नही बनते. मार्केटिंग का मतलब गांधी बनना नहीं गांधी बेचना है. यही तो विडम्बना है कि गांधी के नाम पर टेढ़ामेढ़ा सब बिक जाता है.
ReplyDeleteफोटो बदल कर ठीक किए। अब गान्धी जी लग रहे हैं। लग रहा है कि आज दिन भर गान्धी छाप टी शर्ट ही ढूढ़ते रहे हैं। आप की प्रतिबद्धता को नमन।
ReplyDeleteये वाली टीशर्ट और एक तकली खरीदनी है। गांधीजी को जीवित रखने के लिये!
ReplyDeleteटी-शर्ट तो मैं बहुत दिनों से ढूंढ़ रहा हूँ मिल नहीं पा रही है. चे-गुएआरा की भले मिल गयी गाँधीजी वाली नहीं मिल पायी. और १५ लाख वाली कलम कोई गिफ्ट कर दे तब तो पक्का गांधीवादी बन जाऊँगा :)
ReplyDeleteगांधी सामान बन रहे हैं पर गांधी आश्रम खाली हैं. गांधी प्रिय हैं पर जो गांधी को प्रिय है वो नदारद. वस्त्र हों या विचार हों या हो विरोध. अभी हाल ही में लगभग प्रति दिन विरोध के लिये बस स्टेशन स्कूल जलाने के समाचार आते रहे. गांधी टी शर्ट पर तो ठीक पर टी शर्ट के बाहर भी आयें तो बेहतर.
ReplyDeleteछुट्टी के बहाने ही सही...गांधीजी को याद तो किया जाता है ..!!
ReplyDeletegdndhi to har kisi ke dil mein hai.jarurat khojne ki hai
ReplyDeletenice
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